5 दिवसीय दीपोत्सव का आज चरम है। आज माता लक्ष्मी की पूजा आराधना कर हिंदू धर्मावलम्बी धन और वैभव की कामना करते हैं। त्रेता युग से हिंदुओं के आराध्य प्रभु श्री राम द्वारा लंका पर विजय, माता सीता से पुनर्मिलन, असत्य पर सत्य की विजय पश्चात अपने गृहनगर अयोध्या वापसी पर अयोध्यावासियों द्वारा दीप जलाकर खुशियाँ मनाई गई थी और राज्याभिषेक होने पर पाँच दिनों के इस उत्सव का धनतेरस, अनर्क चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा और भाई दूज पर जाकर समापन होता है। यह परंपरा तभी से चली आ रही है।
अमावस स्याह अंधकार में एक छोटे-से दीपक द्वारा जग को आलोकित करने का यह प्रयास मानव समाज के लिये प्रेरणादायी है। सारी दुनिया में फैले भारतीयों द्वारा यह पर्व मनाया जाता है। पर शायद इस बार की यह दीपावली कुछ अलग है। कोविड-19 का दानव जिसने अभी तक (12 नवंबर तक की रिपोर्ट अनुसार) दुनिया के 5,24,32,517 लोगों को संक्रमित कर दिया है और 12,89,533 को चिरनिद्रा में सुला दिया है। यदि हमारे भारत की बात करें तो 87,28,795 भारतीय कोरोना संक्रमित हो चुके हैं और 1,28,668 भारतीयों की मौत हो चुकी है।
अमेरिका में 1,07,80,630 अमेरिकी संक्रमित हैं और 2,47,397 अमेरिकियों की मौत हो चुकी है। संक्रमितों की संख्या में हमारे भारत का नंबर दुनिया में दूसरा है। मानव जाति के लिये खतरा बने कोरोना के कारण फ्राँस में 5 नवंबर से 4 हफ्तों के लिये वापस लॉकडाउन लगा दिया गया है और इग्लैंड में दोबारा लॉकडाउन लगाये जाने का फैसला ले लिया गया है।
कोरोना के आतंक को लगभग 11 माह होने को आये हैं। हमारे देश में भी इसकी तीसरी लहर आ गई है जिससे सबसे ज्यादा प्रभावित देश की राजधानी दिल्ली है। भारत जैसे विशाल देश के लिये इससे उपजे आर्थिक संकट से निपटना असंभव तो नहीं परंतु बहुत मुश्किल भरा काम है। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा इस वर्ष की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में जी.डी.पी. ग्रोथ में 8.6 फीसदी की गिरावट का अनुमान लगाया गया है। इसके पूर्व वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में (अप्रैल-जून) देश की जीडीपी में 23.9 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी।
एक अनुमान के अनुसार पूरे वित्तीय वर्ष दौरान भारत की अर्थव्यवस्था में 9.5 फीसदी की गिरावट रहेगी जो पूरे देश के लिये चिंता का विषय है। आर्थिक रूप से कमजोर हो चुकी केन्द्रीय सरकार को शासन चलाने के लिये सार्वजनिक उपक्रम बेचने पड़ रहे हैं। सीधे भाषा में देश की जमा पूँजी और संपत्तियों को बेचकर व्यवस्थाएँ जुटाई जा रही है। इसी तरह राज्य सरकारें भी बाजार से कर्जा लेकर सरकारें चला रहे हैं। एक आम भारतीय को इन सब बातों की जानकारी नहीं रहती है परंतु मंजर है बहुत खतरनाक।
पिछले 8 माह से मौत के भय के साये में जी रहे देशवासियों ने इस बार कब रक्षाबंधन निकल गया, कब दशहरा चला गया महसूस ही नहीं कर सके। दीपोत्सव का यह पर्व भी महज औपचारिक रूप से ही मन रहा है। बाजार सूने हैं, इंसानों के चेहरों पर नकली मुस्कान है, धानी-पताशे वाले भी ग्राहकी ना होने से अपने घर की रोजी-रोटी के लिये चिंतित है।
जिस व्यवसायिक क्षेत्र दौलतगंज और फ्रीगंज में इन दिनों पैर रखने की जगह नहीं मिलती थी वहां आप आसानी से दो पहिया वाहनों से घूम सकते हैं। धनतेरस की खरीदी में भी परिवारों ने रस्म अदायगी की। रेडिमेड गारमेंट्स, जूते की दुकानों, इलेक्ट्रानिक आयटमों की दुकानों की स्थिति तो और भी बदतर है। नये वाहनों की बिक्री भी प्रभावित हुई है। इंसान के पास पैसा ही नहीं है तो खरीददारी कैसे करेंगे? एक निम्न और मध्यमवर्गीय परिवार के पास जितनी जमा पँूजी थी वह बीते 8 माहों के दौरान वह खर्च कर चुका है।
शायद बीती शताब्दी में इतनी फीकी दीपावली कभी नहीं मनी होगी जितनी की इस बार है।
हर आदमी हाल-ए-दिल का बयां किसी और के सामने नहीं कर पाता है और विशेषकर आर्थिक मामले में तो पिछले दो माहों से एक दिन भी ऐसा नहीं गुजरा है जिस दिन समाचार पत्रों में आत्महत्याओं की खबर ना हो और होने वाली आत्महत्याओं के पीछे कारण आर्थिक ही है। इस कारण इस बार की दीपावली के दीपक आदमी के अन्तसमन में छाये अंधकार को शायद ही आलौकित कर पाये? त्यौहार मनाने की महज खानापूर्ति होकर रह गई है इस बार की ‘कोरोना दीपावली’। फिर भी प्रकृति कहती है परिस्थितियां बदलेगी जरूर। किसी फिल्म की लाइनें
‘कहाँ तक ये मन को अंधेरे छलेंगे, उदासी भर दिन कभी तो ढलेंगे’
इन पंक्तियों के साथ दैनिक अग्निपथ परिवार की ओर से सभी देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएँ।