महापौर जी! निगम के खाली खजाने को भरने का जतन कीजिये

mukesh tatwal

भारतीय जनता पार्टी के स्थानीय अनेक धुव्रों के बीच लगातार परिक्रमा कर रहे शहर सरकार के अत्यन्त विनम्र, सहज, सरल, भोले भंडारी मुखिया, महापौर श्री मुकेश टटवाल जी के नेतृत्व में नगर सरकार ने अपने 60 माह के कार्यकाल के लगभग साढ़े तीन माह पूर्ण कर लिये ह ैं। शेष बचे 56 माह 15 दिन भी बीत ही जायेंगे। बीते दिनों ही 100 दिन पूरे होने पर महापौर जी द्वारा कुछ समाचार पत्रों को दिये गये साक्षात्कार में उन्होंने अपनी प्राथमिकताएं भी बतायी।

सीधे-सादे मुकेश जी मन के भी बहुत भोले हैं। राजनीति में कौन उनका मार्गदर्शन कर रहा है यह तो हम नहीं बता सकते परंतु उनके सामने सबसे बड़ा संकट तो यह है कि वह किसकी सुने दक्षिण की सुने तो उत्तर नाराज, उत्तर की सुने तो दक्षिण नाराज और यदि दोनों की सुने तो दिल्ली नाराज। और उज्जैन की राजनीति का यह चरित्र रहा है कि यहाँ उत्तर, दक्षिण, दिल्ली कभी एक होते नहीं। और शायद यही दुर्भाग्य महापौर जी के कार्य करने में भी आड़े आ रहा है जिसके कारण उनकी द्वारा की जा रही बातें और कार्ययोजना ‘खिचड़ी’ या ‘पंचमेल दाल’ की तरह नजर आ रही है।

बीते दो से अधिक वर्षों से निगम का खजाना खाली पड़ा है ‘आमदनी अठन्नी खर्चा रुपया’ की तर्ज पर चल रहे नगर निगम दो सौ करोड़ से भी ज्यादा का कर्जदार है। ठेकेदारों को कई महीनों से एक धेले का भुगतान नहीं हुआ है जिसके कारण सारे निर्माण कार्य रूके हुए हैं। सारे विभागों के मद शून्य है चूँकि पिछली देनदारियां ही बाकी है तो चालू वित्तीय वर्ष में मद शून्य होना स्वाभाविक है। सीधा सा अर्थ है निगम के अधीन कार्यरत सारे विभाग नया बजट आने तक कोई भी नया कार्य नहीं कर सकेंगे।

निगम में निविदाएं निकलना ही बंद सी पड़ी है इक्का-दुक्का निविदाएं निकलती भी है तो ठेकेदार भाग नहीं ले रहे हैं। महापौर जी की राजनैतिक सलाहकारों के अलावा निगम अधिकारियों के रूप में मिलने सलाहकार भी शायद सही भूमिका का निर्वहन नहीं कर पा रहे हैं। आपने जिन-जिन कार्यों के लिये टास्क फोर्स गठित की है उसमें एक भी चेहरा नया नहीं है सब वही चेहरे हैं जो पहले से कार्यरत हैं और इन बंद पड़े कार्यों के लिये जवाबदार हैं।

मार्ग चौड़ीकरण कंठाल से सतीगेट, केडीगेट से आगे तो गाड़ी अड्डा चौराहे से बियाबानी होते हुए कंठाल तक का भी होना है इन जिन्नों को आप बोतल से बाहर मत निकालों 10-11 माह बाद ही विधानसभा चुनाव होने हैं। राजनीति की शतरंज पर बिछात जमना शुरू हो गयी है ऐसे में यह सब मुद्दे नुकसानदेह साबित होंगे। यदि उद्धार ही करना है तो पहले वाहन पार्किंग की योजना तलाश कीजिये। मार्ग के दुकानदारों को पुराने निगम या नयी मल्टी लेवल पार्किंग में निशुल्क पार्किंग दीजिये। छत्रीचौक स्थित पानी की टंकी एवं चिकित्सालय के स्थान पर भी मल्टी लेवल पार्किंग का निर्माण वर्तमान और भविष्य की मांग है ताकि नागरिक वहाँ अपने वाहन खड़े करके गोपाल मंदिर से कंठाल के बीच खरीददारी कर सके। कंठाल से लेकर गोपाल मंदिर तक सभी प्रकार के वाहन प्रतिबंधित कीजिये।

बीच में लगने वाली दुकानों या ठेलों के लिये वैकल्पिक स्थान की तलाश करवाइये। चौड़ीकरण जब होगा तब होता रहेगा। सुदामा मार्केट निर्माण में हुयी तकनीकी त्रुटियां निगम के गले की हड्डी बन गयी है यदि यह पिटारा खुला तो निगम के इंजीनियरों के साथ ही पूर्व निगमायुक्त भी लपेटे में आ जायेंगे इसलिये पिटारा ध्यान से खोलिये।

महापौर जी होना तो यह चाहिये था कि सबसे पहले आप निगम के खाली हो चुके खजाने को किस तरह भरा जाए इसकी कार्ययोजना बनाते, निगम की देनदारियों को कैसे चुकता किया जाए, ठेकेदारों के लंबित भुगतान कैसे हो इस पर विचार मंथन करना था। निगम के अधिकारियों, पार्षदों, मेयर इन कौन्सिल के सदस्यों, विधायकों, सांसद जी को साथ लेकर भोपाल में जाकर मुख्यमंत्री जी के आवास पर धरना देना था और बिना कोई ठोस आश्वासन लिये बिना शहर नहीं लौटना था।

जहाँ मध्यप्रदेश की सरकार पर हजारों, लाखों करोड़ का कर्ज है थोड़ा कर्जा और बढ़ जाता और क्या होता। प्रदेश सरकार महाकाल लोक जैसी योजनाओं और स्मार्ट सिटी परियोजना पर करोड़ों खर्च कर ही रही है तो निगम के साथ सौतेला व्यवहार क्यों? या फिर एक रास्ता और है स्मार्ट सिटी के पास करोड़ों रुपये फंड पड़ा है जिस महाकाल लोक के प्रथम चरण में खर्च 300 करोड़ के ऊपर का बताया जा रहा है वास्तविक में उसमें अभी तक 250 करोड़ के लगभग ही खर्चा हुआ है अभी तो दो चरण और बाकी है। महाकाल लोक की तरह ही नगर की सडक़ों के चौड़ीकरण का श्रेय भी स्मार्ट सिटी परियोजना को ही मिलेगा आपकी नगर सरकार को नहीं, पर इतना जरूर है शहर के नागरिक सुखी हो जायेंगे। जय राम जी की

– अर्जुन सिंह चंदेल

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