एक्सप्रेस वे निर्माण से रुका तालाब के पास आने-वाले खेतों का रास्ता, हंगामे के बाद काम बंद

आक्रोश : किसान बोले अफसर सीधे मुंह बात नहीं करते निर्माण में लगे डंपर अन्य मशीने रोकीं

खवासा (सुनील सोलंकी)। दिल्ली मुंबई एक्सप्रेस-वे ग्रीनलैंड प्रोजेक्ट है, ज्यादातर हिस्सा किसानों के खेतों से होकर निकल रहा है। मंगलवार को ग्राम भामल के ही किसानों ने एकत्रित होकर एक्सप्रेस वे पर प्रदर्शन किया और निर्माण में लगे डंपर समेत अन्य मशीनें रोक दी तो वहीं दिन भर काम रुका रहा। मौके पर लोगों ने तहसीलदार व अधिकारियों को बुलाने की मांग भी रखी। किसान आक्रोशित होकर बोले कि एक्सप्रेस-वे वाले अफसर सीधे मुंह बात तक नहीं करते हैं। ऐसे में काम नहीं रोकते तो क्या करतेे।

किसान बोले कि दिल्ली जाने वाले फराटे से इस रोड पर जायेंगे। लेकिन पहले किसानों के खेतों पर जाने का रास्ता भी बनाओ। दिल्ली मुंबई एक्सप्रेस वे 1250 किलोमीटर लम्बा एक्सप्रेस-वे का 244 किलोमीटर हिस्सा मध्यप्रदेश से गुजर रहा है। लेकिन समस्या खेतों के रास्तों की पैदा हो गई है। साथ ही गांव के राजा महाराजों के समय का बना पुराना तालाब जिससे मवेशी आदि गर्मी में अपनी प्यास बुझाते उस तालाब में रास्ता ही नहीं दिया जा रहा है। जिन किसानों के खेत के बीच में से एक्सप्रेस वे निकला रहा है। उन किसानों का खेत दो भागों में बट गया है और एक्सप्रेस वे किनारे पर तो वायर फेंसिंग या बाउंड्रीवाल बनेगी। ऐसे में किसान इसे क्रास नहीं कर सकते।

मंगलवार सुबह 10 बजे किसान जिनमें कमल देवड़ा, बालू सोलंकी, भूतपूर्व उपसरपंच केशव सोलंकी, रामसिंह सोलंकी, मांगूसिंह चौहान उपसरपंच, मांगूसिंग राठौर, हरिसिंह राठौड़, दशरथ सोलंकी, नाथूसिंग पटेल, आदि कई किसान एक्सप्रेस वे निर्माण स्थल पहुंचे और डंपर के आगे बैठकर काम रोक दिया। वह बोले कि एक्सप्रेस वे के उस पार गांव के सैकड़ों किसानों की जमीन है तो साथ ही गांव का तालाब भी है। जिससे वहां आने जाने का रास्ता दिया जाए। हमने थांदला एसडीएम राजस्व विभाग को भी 18 /03/2020 को एक आवेदन भी दिया।

जिस पर कोई सुनवाई नहीं हुई। आवेदन में ग्रामीणों ने कहा था कि गांव के मध्य से रोड निकल रहा है। यहां तालाब के जाने के लिए किसानों को रास्ता दिया जाए। लेकिन अभी तक रास्ता ही नहीं दिया गया। एसडीएम लेकर कई उच्च अधिकारियों को अवगत कराया है। लेकिन अभी भी समस्या जस को तस बनी हुई है। अब रोड बनने लगा है। अधिकारी हमारी नहीं सुनेंगे तो कब सुनेंगे। कहां से खेतों में आना जाना करेंगे। किसानों का कहना है कि सिर्फ खेत ही नहीं बल्कि राजा महाराजाओं के जमाने में बनाया गया तालाब में आने जाने का रास्ता भी नहीं दिया जा रहा है। एक्सप्रेस वे के तालाब के उस पार कई किसानों की जमीन है जिसमें रास्ता दिया जाए।

एक्सप्रेस वे निर्माण करने वाली कंपनी जीआर इंफ्रा प्रोजेक्ट के डीपीएम मनोज जी, लाइजनिंग मैनेजर अजय मोनावत ने किसानों से कहा कि हम तय मापदंड व ड्राइंग के हिसाब से ही काम कर रहे हैं। परंपरागत रास्ते की जगह कोई क्रॉसिंग प्रस्तावित नहीं है। इसलिए कैसे बना सकते हैं। इसलिए 300 मीटर दूर खाई में बरसाती पानी निकालने के लिए माइनर ब्रिज बनाया गया। वहां निकल सकते है, तब भी किसान नहीं माने और कहा कि सरकारी रास्ता यह जो पूर्व में था उसी जगह रास्ता बना दिया जाए।

जीआर कंपनी के अधिकारियों की माने तो एक्सप्रेस वे का डिजाइन ऐसा है कि औसतन हर 300 से 400 मीटर की दूरी पर कोई ना कोई क्रॉसिंग स्ट्रेचर है। इनकी दूरी तो नहीं है, लेकिन जहां पानी की निकासी करना है। वहां दो बाय दो मीटर की कल्वर्ट बनेगा। इनमें व्यक्ति पैदल निकल सकता है, जहां खाई या नाला है, वहां पर माइनर ब्रिज बन रहे हैं। इनमें से ट्रैक्टर समेत अन्य वाहन लेकर किसान जा सकते हैं।

वहीं जहां अन्य पक्के रोड क्रॉस हो रहे हैं वहां पर अंडरपास भी बन रहे हैं। साइड में सर्विलेंस होना चाहिए। वहीं मामले को लेकर जब राजस्व विभाग के पटवारी चेनालाल भायल से जानकारी ली तो उन्होंने कहा कि सर्वे न 554 में तालाब के सरकारी जगह में रास्ता है, यह नक्शे में दिखा रहा है, अगर यहा रास्ता बना दिया जाए तो किसानों को आने जाने में परेशानी नहीं होगी। साथ ही तालाब का भी उपयोग ग्रामीण कर सकते हैं।

एनएचएआई के इंजीनियर अजहर खान से जानकारी चाही तो उन्होंने बताया कि किसानों का एक आवेदन हमारे पास आयेगा तो हम उसके हिसाब से यहां रास्ते के लिए विभाग को अवगत करवायेंगे। जैसे ही कुछ होगा हम यहां रास्ता बना देंगे। लेकिन फिर भी किसानों ने उनकी बात नहीं मानी ओर धरने पर बैठे रहे।

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