नई दिल्ली। नए कृषि कानूनों के खिलाफ में दिल्ली की सीमाओं पर लगातार 57वें दिन भी किसानों का हल्लाबोल जारी है। किसान संगठनों और केंद्र सरकार के बीच बुधवार को हुई 10वें दौर की वार्ता में सरकार ने एक और कदम आगे बढ़ाते हुए इन कानूनों को डेढ़ साल तक टालने का प्रस्ताव दिया है, जिस पर आज संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक में विचार किया जाएगा और शुक्रवार को 11वें दौर की बैठक में किसान सरकार को अपने फैसले से अवगत कराएंगे।
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कल कहा था कि किसान संगठनों के साथ बेहद सकारात्मक बातचीत हुई। चर्चा के दौरान, हमने कहा कि सरकार एक या डेढ़ साल के लिए कृषि कानूनों को रखने के लिए तैयार है। मुझे खुशी है कि किसान यूनियनों ने इसे बहुत गंभीरता से लिया है और कहा है कि वे कल इस पर विचार करेंगे और 22 जनवरी को अपना फैसला बता देंगे। तोमर ने कहा कि मुझे लगता है कि वार्ता सही दिशा में आगे बढ़ रही है और 22 जनवरी को एक प्रस्ताव मिलने की संभावना है। बैठक के दौरान सभी मुद्दों पर विस्तार से चर्चा हुई।
– लग रहा है कि सरकार ने थोड़ा विचार करना शुरू किया है। कल के प्रस्ताव पर हमने कहा है कि इस पर चर्चा करनी पड़ेगी। चर्चा में जो आम सहमति बनेगी उसे हम सरकार के पास रखेंगे: अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव हन्नान मोल्लाह
आज दो बजे संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक हो रही है। कानूनों को रद्द करने और MSP पर नया कानून बनाने से नीचे कुछ भी मंजूर नहीं है। 26 जनवरी का कार्यक्रम अटल है और ये हर हाल में होगा, उसमें कोई भी बदलाव नहीं किया जाएगा : सिंघु बॉर्डर से किसान मजदूर संघर्ष समिति के अध्यक्ष सतनाम सिंह पन्नू
– कृषि कानूनों के खिलाफ सिंघु बॉर्डर पर किसानों का विरोध प्रदर्शन आज 57वें दिन भी जारी है। एक प्रदर्शनकारी ने कहा कि कल की बैठक में हमने देखा कि सरकार थोड़ा बैकफुट पर जा रही है। कानून स्थगित नहीं रद्द होना चाहिए। ये कानून पश्चिमी देशों में पहले लागू हो चुके हैं और वहां फेल हुए हैं।
गौरतलब है कि केंद्र के तीन नए कृषि कानूनों को लेकर गतिरोध अब भी बरकरार है। कानूनों को रद्द कराने पर अड़े किसान इस मुद्दे पर सरकार के साथ आर-पार की लड़ाई का ऐलान कर चुके हैं। इसके लिए दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का आंदोलन आज 57वें दिन भी जारी है। केन्द्र सरकार इन कानूनों को जहां कृषि क्षेत्र में बड़े सुधार के तौर पर पेश कर रही है, वहीं प्रदर्शन कर रहे किसानों ने आशंका जताई है कि नए कानूनों से एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) और मंडी व्यवस्था खत्म हो जाएगी और वे बड़े कॉरपोरेट पर निर्भर हो जाएंगे।