पिछले दो माह से ज्यादा समय से चल रहे किसान आंदोलन का आज एक नया रूप देशवासियों के सामने आया। देश के किसानों ने रेल रोको आंदोलन के तहत कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक इस आंदोलन के माध्यम से सीधा संवाद करने का प्रयास किया। आंदोलित किसानों ने यात्रियों को समझाया कि उन्हें इस तरह रेल रोकने की जरूरत क्यों पड़ी। साथ ही केन्द्र सरकार द्वारा लागू किये गये तीनों कृषि कानूनों की विसंगतियों से भी अवगत कराया।
किसानों ने यात्रियों को यह भी बताया कि आज आप जिस सरकारी रेल में यात्रा कर रहे हैं, भविष्य में हो सकता है कि आपको निजी रेलगाड़ी में यात्रा करनी पड़े और ‘तेजस’ की तरह निजी टे्रन में 50 प्रतिशत अधिक रेल किराये का भुगतान करना पड़े। साथ ही रेलवे स्टेशनों के प्लेटफार्म पर जाने के लिये भी 100 रुपये तक शुल्क अदा करना पड़ सकता है। अत: आप लोग इस किसान आंदोलन को सहयोग करें ताकि सरकार को अपनी गलत आर्थिक नीतियों पर पुन: विचार करना पड़े।
आज का किसानों का यह 12 से 4 बजे तक चला रेल रोको आंदोलन अपने आप में अनूठा था। किसानों ने जिन स्टेशनों पर रेलगाडिय़ों को रोका वहाँ यात्रियों को चाय, दूध, जलेबी, हलवा खिलाया गया साथ ही फूल देकर उन्हें हुई असुविधा के लिये माफी माँग कर किसानी कार्य में आ रही परेशानियों से भी अवगत कराकर यात्रियों की सहानुभूति ली गई। ऐसा नहीं कि सिर्फ पंजाब और हरियाणा में ही यह आंदोलन प्रभावी रहा, देश के अन्य हिस्सों उत्तरप्रदेश, राजस्थान, बिहार, कर्नाटक, महाराष्ट्र, उड़ीसा, झारखंड और जम्मू-कश्मीर के किसानों ने भी रेल रोकी है।
पंजाब, हरियाणा में तो कई जगह हजारों की संख्या में आंदोलनकारी किसान मौजूद थे और महिलाओं की बड़ी संख्या में हिस्सेदारी रही, जिसमें दादी-नानी और छोटे बच्चे भी शामिल थे इनकी उपस्थिति चौंकाने वाली थी। आंदोलनकारियों में हर धर्म-हर तबके और हर उम्र के लोग शामिल थे। केन्द्र सरकार ने इस आंदोलन के मद्देनजर 20 हजार से ज्यादा रेलवे सुरक्षा बल के जवानों को गड़बड़ी की आशंका को देखते हुए तैनात किया था। इसके अलावा पुलिस के जवान अतिरिक्त तैनात किये गये थे परंतु पूरे देश से किसी भी प्रकार की हिंसा के समाचार नहीं है।
शायद देश की आजादी के लिये किये गये अनेक आंदोलनों में भी आंदोलनकारियों ने ऐसा कुछ नहीं किया होगा जो आज कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों ने कर दिखाया। जिसमें किसानों ने अपने व्यवहार से रेल यात्रियों का दिल जीत लिया, और हाँ जो 37 रेलगाडिय़ां प्रभावित हुई थी। उनके यात्रियों के लिये चिकित्सा सुविधा की व्यवस्था भी आंदोलनरत किसानों ने की थी। देश की मीडिया से निराश होकर किसानों ने देशवासियों से रेल रोको आंदोलन के माध्यम से जो सीधा संवाद कायम किया है यह काबिले तारीफ है। उम्मीद है आने वाले दिनों में आंदोलन के और कई रंग भारतीयों को देखने को मिले।
जय जवान-जय किसान