ब्राह्मण समाज जन वैदिक मंत्रोच्चार कर जनेऊ बदलेंगे
उज्जैन, अग्निपथ। श्रावण पूर्णिमा के अवसर पर श्रावणी उपाकर्म करने के लिए सोमवार को शिप्रा तट पर ब्राह्मण समाज के बटुक और जनेऊधारी ब्राह्मणों ने श्रावणी उपाक्रम की विधि करेंगे। वैदिक मंत्रोच्चार के बीच नदी में स्नान कर जनेऊ बदली जाएगी। इस दौरान वर्ष में जाने-अनजाने में हुए पाप कर्म का प्रायश्चित किया जाएगा।
सोमवार को श्रावण पूर्णिमा होने से श्रावणी उपाकर्म करने के लिए मोक्षदायिनी शिप्रा तट पर जनेऊधारी ब्राह्मण पहुंचेगें। श्रावण उपाकर्म करने के दौरान अपने पितरों का तर्पण कर जाने अनजाने में हुए समस्त दोषों से मुक्ति के लिए प्रार्थना की जाती है। कहा जाता है कि श्रावणी उपाकर्म करने से देवता व पितृ प्रसन्न होते हैं।
पूर्व में हुए दोषों के पश्चाताप व पितृ और देवता की कृपा प्राप्त करने का यह पर्व माना गया है। ब्राह्मण बंधुओं द्वारा प्रत्येक वर्ष रक्षाबंधन पर यह कर्म शिप्रा नदी तट पर वृहद स्तर पर संपन्न किया जाता है। इस वर्ष भी सोमवार को पूर्णिमा तिथि पर ब्राह्मण जन परंपरा का निर्वहन करने के लिए शिप्रा नदी तट पहुंच कर यहां श्रावणी कर जनेऊ बदली जाएगी।
गायत्री शक्तिपीठ पर सुबह 7.30 बजे
श्रावण पूर्णिमा, रक्षाबंधन पर्व पर सोमवार 19 अगस्त को मंगलनाथ मार्ग स्थित गायत्री शक्तिपीठ पर सुबह 7:30 से 9 बजे तक श्रावणी उपाकर्म का आयोजन किया गया है। शक्तिपीठ के प्रचार प्रसार सेवक देवेंद्र कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि श्रावणी उपाकर्म के लिए सभी सामग्री की व्यवस्था यहां रहेगी। उपकर्म के बाद सुबह 9 बजे से यज्ञ, चांद्रायण साधना की पूर्णाहुति, रक्षाबंधन और वृक्षारोपण होगा।
श्रावणी उपाकर्म के होते है तीन पक्ष
प्रायश्चित संकल्प, संस्कार व स्वाध्याय श्रावणी उपाकर्म के तीन पक्ष हैं। संकल्प लेकर गाय के दूध, दही, घृत, गोबर व गोमूत्र व पवित्र कुशा से स्नान करने के बाद वर्षभर में जाने-अनजाने में हुए पाप कर्मो के लिए प्रायश्चित किया जाता है। स्नान के बाद ऋषिपूजन, सूर्योपासन व यज्ञोपवीत पूजन करने का विधान है। नवीन यज्ञोपवीत या जनेऊ धारण करना आत्म संयम का संस्कार होना माना जाता है। उपाकर्म का तीसरा पक्ष स्वाध्याय है। इसमें ऋगवेद के मंत्रों से आहुति दी जाती है।