अखिल भारतीय कालिदास समारोह का रंगारंग प्रस्तुतियों के साथ समापन

महाकवि कालिदास की रचनाओं में प्रकृति के प्रति प्रेम का अद्वितीय चित्रण है – मंत्री चेतन्य काश्यप

उज्जैन, अग्निपथ। सोमवार को प्रदेश के उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा एवं आयुष मंत्री इंदर सिंह परमार एवं सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्री चेतन्य काश्यप के आतिथ्य में 66 वें अखिल भारतीय कालिदास समारोह का रंगारंग प्रस्तुतियों के साथ समापन कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता अखिल भारतीय त्रिपदी परिवार के अध्यक्ष डॉ.प्रदीप तराणेकर ने की। बतौर सारस्वत अतिथि कार्यक्रम में श्री सर्वेश्वर रघुनाथ मंदिर माउण्टआबू राजस्थान के स्वामी श्री सियाराम दास जी महाराज शामिल हुए।

कार्यक्रम का शुभारंभ अतिथियों द्वारा दीप प्रज्जवलित कर किया गया। इसके पश्चात कलाकारों द्वारा सुरबहार वादन, घुंगरू वादन एवं सरोद वादन की प्रस्तुति दी गई। कार्यक्रम में स्वामी श्री सियाराम दास जी महाराज ने अपने उद्बोधन दिया कि जिस प्रकार समुद्र के रत्नों का लाभ वहीं उठा सकते हैं जो ज्यादा गहरा गोता लगा सकते हैं। उसी प्रकार भारतीय दर्शन का लाभ वही ले सकते हैं जो महाकवि कालिदास की कृतियों को आत्मसात कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि महाकवि कालिदास सिर्फ कवि नहीं थे वह अपने समय के महान वेदांती एवं मिमांसी थे।

कार्यक्रम में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्री चेतन्य काश्यप ने कहा कि अखिल भारतीय समारोह एक प्रतिष्ठित समारोह है। यह समारोह में 7 दिन तक संगीत, नाटक, वाद-विवाद, संगोष्ठी, व्याख्यानमाला, सांस्कृतिक कार्यक्रम सफलता पूर्वक आयोजित किए गए। कहा कि महाकवि कालिदास एक महान विद्वान थे। उनके ग्रंथ सिर्फ काव्य नहीं है अपितु उनमें समाज के कल्याण के लिए संदेश भी निहित है। उनके काव्यों ने समाज में धर्म एवं संस्कृति का समावेश किया है। इसी के साथ उनकी रचनाओं में प्रकृति के प्रति प्रेम का अद्वितीय चित्रण है।

महाकवि कालिदास की कर्म भूमि उज्जैन रही है, वे विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक रहे हैं। मैं भगवान श्री महाकालेश्वर की पावन भूमि अवंतिका को प्रणाम करता हूँ। उन्होंने कहा कि यह वर्ष उज्जैन के लिए गौरवशाली रहा है यहां के नेतृत्वकर्ता डॉ.मोहन यादव को प्रदेश का मुख्यमंत्री भी बनाया गया है। मुख्यमंत्री डॉ.यादव के नेतृत्व में कालिदास समारोह में देश की महान विभूतियाँ शामिल हुई है।

यह सांस्कृतिक विधाओं के प्रति मुख्यमंत्री डॉ.यादव की प्रतिबद्धता दर्शाती है। इस समारोह के माध्यम से महाकवि कालिदास एवं संस्कृत विषय में विद्यार्थियों की रूचि पुन: जागृत हुई है, यह हमारे सांस्कृतिक उत्थान एवं अभ्युदय का प्रतीक है। यह समारोह हमारी भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण योगदान देता है।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा एवं आयुष मंत्री श्री इंदर सिंह परमार ने कहा कि भारत की महान ज्ञान परंपरा का दर्शन महाकवि कालिदास के ग्रंथों से होता है। यह समारोह हमारी ज्ञान परंपरा का उत्कृष्ट उदाहरण है। भारत में 300 साल पहले तक 7 लाख से ज्यादा गुरूकूल थे जो कि शिक्षा के प्रमुख केन्द्र थे। भारत में नालंदा, विक्रमशीला, तक्षशीला जैसे विश्व में ज्ञान की गंगा बहाने वाले विश्वविद्यालय पुरातनकाल से रहे हैं। हमारा ज्ञान आध्यात्म के साथ-साथ विज्ञान एवं गणित में भी परिपूर्ण एवं समृद्ध रहा है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पुन: उस परंपरा को नई शिक्षा नीति 2020 से पाठ्यक्रम में शामिल किया है। नई शिक्षा नीति में भारत के विचारकों, वैज्ञानिकों एवं दार्शनिकों का ज्ञान सम्मिलित किया गया। उन्होंने कहा कि भारत की संस्कृति सभ्यता और कृतज्ञता की संस्कृति है। हमारे पूर्वज लाखों सालों से पेड़, जलाशय, सूर्य, पशु-पक्षी आदि को कृतज्ञता के कारण पूजा करते रहे हैं। यही हमारी ज्ञान परंपरा है जिसमें हम सभी को सम्मान देते हैं और उनके दायित्वों के निर्वहन पर कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। हमारे पूर्वज इतने शिक्षित थे कि वह अनादिकाल से जानते थे कि सूर्य ही उर्जा का केन्द्र है।

भारतीय ज्ञान परंपरा में शिक्षा के साथ-साथ खेल को भी जीवन का अभिन्न अंग माना गया है। गुजरात में 5000 वर्ष पुराने खेल के स्टेडियम भी पाए गए हैं जो कि ओलंपिक खेलों के पूर्व से स्थापित थे। यह हमारे ज्ञान परंपरा के गौरवशाली इतिहास को दर्शाते हैं। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी एवं मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव की डबल इंजन की सरकार 2047 तक भारत को सभी क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ.प्रदीप तराणेकर ने कहा कि मैं भगवान महाकालेश्वर, महाकवि कालिदास, वराहमीहिर व विक्रमादित्य की अवंतिका नगरी में आना मेरा सौभाग्य है।

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