शिप्रा में काई की परत जमी, नगर निगम नहीं ले रहा सुध

सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम नहीं, जनप्रतिनिधि भी मौन

उज्जैन, अग्निपथ। तीन साल बाद सिंहस्थ- 2028 में मोक्षदायिनी जिस शिप्रा नदी में लाखों संत और करोड़ों श्रद्धालु स्नान करेंगे, उसकी दुर्दशा पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। आम दिनों में ही शिप्रा स्नान के लिए देशभर से लोग आते हैं लेकिन नदी के मुख्य रामघाट पर ही काई की लंबी हरी परत जमी हुई है और नगर निगम के अधिकारी शिप्रा की सुध नहीं ले पा रहे। शिप्रा नदी की सफाई व्यवस्था पर नगर निगम द्वारा हर महीने लाखों रुपए खर्च किए जाने का दावा किया जाता है, इसके बावजूद नदी से न तो काई साफ हो रही है, न काई हटाई जा रही।

इतना ही नहीं शिप्रा के घाटों पर भी इसी काई की वजह से सीढिय़ों पर इतनी फिसलन है कि पैर रखते ही श्रद्धालु गिर रहे हैं। होमगार्ड कमांडेंट संतोषकुमार जाट ने बताया कि होमगार्ड के पर्याप्त जवान तैनात है व सुरक्षा व्यवस्था को लेकर समय-समय पर नगर निगम को अवगत कराते हैं।

इधर, शिप्रा नदी के लिए वृहद प्लान अभी से तैयार किया जाना चाहिए। सिंहस्थ को ध्यान में रखते हुए ठोस व कारगर प्लान की जरूरत है। सबसे ज्यादा जरूरी शिप्रा नदी के घाटों के एक जैसे प्लेटफॉर्म बनाए जाने की आवश्यकता है। शिप्रा के घाटों पर कई लोगों की जिंदगी बचाने वाले तैराक विनोद चौऋषिया का कहना है कि कई सालों से हम ये मुद्दा उठाते आ रहे हैं। एक बार फिर से शासन का ध्यान इस ओर आकर्षित करा चुके हैं। ये तस्वीर शिप्रा नदी के रामघाट की, जहां बुधवार शाम को काई की ऐसी लंबी हरी परत नदी में तैर रही थी।

13.30 करोड़ की योजना तीन साल बाद भी शुरू नहीं

स्मार्ट सिटी ने शिप्रा नदी के घाटों और सौंदर्गीकरण समेत सुरक्षा के लिए 13.30 करोड़ रुपए का प्लान बनाया था लेकिन तीन साल बीतने को आ गए, अभी तक इस योजना पर काम ही नहीं हुआ। स्मार्ट सिटी के अधिकारी समेत नगर निगम आयुक्त आशीष पाठक हर बार ये कहकर पल्ला झाड़ते आ रहे हैं कि हम तो दो बार टेंडर निकाल चुके हैं लेकिन कोई टेंडर लेने के लिए नहीं आया।

घाट पर सूचना बोर्ड और रैलिंग भी नहीं

शिप्रा नदी के घाटों पर सुरक्षा के भी इंतजाम नहीं है। नदी की गहराई के बारे में बाहर से आने वाले लोगों को पता रहे इसके लिए सूचना बोर्ड होना चाहिए, वह भी नहीं है। इसके अलावा गहरे पानी में जाने से रोकने के लिए रेलिंग की जरूरत है जो कई जगह टूटी हुई है।

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