कलेक्टर कोरोना से तो एसपी फरार वारंटियों की धरपकड़ से कर रहे तमगा लेने के प्रयास

मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा।

यह शार्ट सांग कुछ समय पहले भारत की एकता अखंडता के लिए टेलीविजऩ पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों में रोज कानों में सुनाई देते थे। हालांकि देश की एकता,अखण्डता सम्प्रभु है जो आजादी के बाद बने संविधान में भी उल्लेखित है। किन्तु पश्चिमी मध्य प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य जिले झाबुआ में आने वाले आईएस और आईपीएस अधिकारियों ने सुर में सुर मिलवाने की कला न केवल सीख ली अपितु उसे अंजाम दे कर इस जिले से रवानगी डाल बड़े जिलों अथवा प्रदेश के मुखिया के खास सिपहसालार और मुख्य विभागों के वरिष्ठतम पद पर मलाई चाटने लगते हंै।

टेढ़ी नजर लगातार आने वाले आईएस, आईपीएस अधिकारियों द्वारा जिले में आने वाले इन दो बड़े विभागों के अधिकारियों के कार्यों पर नजर टेढ़ी की, हालांकि कुछ प्रशासनिक कार्य की चाल कछुआ गति चली किन्तु कार्य निरन्तर जारी है।

जिले का इतिहास कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक कार्यालय में उनकी टेबल के ठीक पीछे आने वाले दोनों अधिकारियों की सूची के बोर्ड सुनहरी अक्षरों में लिखे हंै। जिले वासी जो समझदार या यूं कहें कि वक्त की नजाकत भांपने वाले हैं वो तो सुर मिलाने में माहिर हो गए। इसी के चलते अपना स्वार्थ सिद्ध करने उठा तो चरण धोक हो जाते या अधिकारियों के सुर में सुर मिलने लगते हंै।

आश्चर्य तो यह कि धंधे के लिए अपना ईमान तक ताक रख देते बावजूद उसके इनकी गुलाम हुई राजनीति में इतना साहस नहीं कि अपने को अपना समझे और सेवाभाव की राजनीति करे। आश्चर्य तो यह कि राजनीति में बढ़ती गुटबाजी और बवंडरों को समझदार अधिकारी, कर्मचारी भली भांति समझ अपने कार्यों को बखूबी अंजाम दे देते हंै।

रही बात ठेठ ग्रामीणों की तो उन्हें दो जून की रोटी हेतु व दैनंदिनी से लेकर स्वास्थ्य, शिक्षा रोजगार की आवश्यकता है तो वह प्रशासनिक अमले से लेकर जनप्रतिनिधि समय समय पर उपलब्ध करवा देते हंै। बस इसी लिए आदिवासी बाहुल्य जिला आजादी के 8 दशक की दहलीज पर होने के बाद भी जिला नौ दिन चले ढाई कोस वाली कहावत चरितार्थ करते हुए नजर आता है।

इसी का फायदा जिले में आने वाले आईएस और आईपीएस अधिकारी उठा कर मेडल गले में ढंकवा कर उपलब्धी हासिल करते और जिला इस उपलब्धी पर खुशियां मानता है, किन्तु इस उपलब्धी का राज अफसरों की चाटुकारिता, सप्लायर, जनप्रतिनिधि और स्वयम जिले में आने वाले आईएस और आईपीएस अधिकारी ही समझते हैं। जिले के इन दोनों बड़े अधिकारियों के कार्यालय में लगे जिले में आने वाले आईएस और आईपीएस के नामों और उनके उल्लेखनीय कार्यों को याद करें तो किसी ने अपणी शिक्षा आपणो स्वस्थ्य, किसी ने उद्वहन सिंचाई योजना, किसी बयरां नी कुलड़ी, किसी ने मतदान, वोटर आईडी, किसी स्वछता मिशन तो किसी ने पर्यावरण और किसी ने सामाजिक, माफियाओं के नाक में नकेल तो किसी ने भांजगाड़ी प्रथा अपराध मुक्त झाबुआ बनाने का बीड़ा उठाया।

जिले वासियों का बखूबी उपयोग किया और उपलब्धी अपने खाते में डलवा कर रवानगी डाल दी। वर्तमान समय कोविड काल चल रहा है, पूर्व कलेक्टर और एसपी कोरोना काल में सफल नहीं होते दिखे तो उन्हें यहां से जाना पड़ा। वर्तमान कलेक्टर और एसपी ने कोरोना को लक्ष्य कर अपनी उपलब्धियों के द्वार खोलना शुरू कर दिए। हालांकि समय की यह मांग और आवश्यक भी किन्तु इसका मतलब यह नहीं कि दूसरी प्रशासनिक व्यवस्थाएं चरमराने दी जाए।

जिले में हालात यह है कि कुछ समय पहले फरार वारंटियों की धरपकड़ शुरू हुई थी उसे विराम लग गया। फलत: जिले में चोरियां व अन्य अपराध बढऩे लगे तो जिले के अन्य विभागों के कार्यों हेतु जनमानस को कार्यालयों के चक्कर काटने पड़ रहे हंै।

कोरोना के चलते कार्यालयों में अवकाश जैसी स्थितियां बनी रहीं। किन्तु अब कोरोना कंट्रोल में होकर जान जीवन सामान्य होने लगा तो प्रशासनिक अटके पड़े कार्य भी द्रुत गति से होना आवश्यक है। वैक्सीनेशन अत्यावश्यक है इसके लिए प्रशासनिक, सामाजिक, राजनीतिक व्यवस्था न केवल मैदान में उतार दी वरन परिणाम भी सुखद आने लगे तो जिले के दोनों प्रमुख अधिकारियों को अन्य विभागीय कार्यों पर भी ध्यान देना आवश्यक है। अन्यथा जिला एक बार पुन:अपने आपको ठगा सा महसूस करेगा।

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