बदनावर, (अल्ताफ मंसूरी) अग्निपथ। क्षेत्र में संरक्षित वन्यजीव नीलगाय का आंतक तेजी से बढ़ रहा है। 50-60 के झुंड में जिस खेत में घुस जाती है वहां की पूरी फसल चौपट कर देतेी है। फोरलेन क्रास करने के दौरान वाहन चालकों को भी दुर्घटनाग्रस्त कर देती है। खेतों में किसानों पर कभी कभी हमला भी कर देती है। सक्षम और उद्यानिकी खेती करने वाले किसान जालीदार तारों की बागड़ लगा रहे है। तो कुछ झटका यंत्र का प्रयोग भी करते है। लेकिन अधिकांश किसानों केी फसलें इनसे असुरक्षित ही रहती है। पिछले एक दशक में इनकी संख्या में भी अप्रत्याशित वृद्धि हो चुकी है। यदि समय रहते इनकी रोकथाम नही की जाती है तो किसानों को खेती करना मुश्किल भरा जा जाएगा।
एक दशक के पहले केवल कुछ एक नीलगाय क्षेत्र में यदा कदा दिखाई देती थी। हिरण जैसी दिखने वाले इस पशु को देखकर शुरू शुरू में किसानों को कौतुहल होता था। लेकिन धीरे धीरे इनकी संख्या में वृद्धि होती गई और 10 से 12 सालों में ही यह किसानों के लिए सरदर्द साबित होने लगी है। अभी हाल ही में बैंगदा के किसान राजेंद्रसिंह डोडिय़ा ने चार बीघा मटर की फसल लगाई थी। फलन से पहले ही नीलगाय के एक झुंड ने पूरी की पूरी फसल रौंद डाली। किसान को करीब 50 हजार का घाटा उठाकर दोबारा बोवनी करना पड़ी।
इसके समीप ही छोटाकठोडिय़ा के किसान लाखनसिंह डोडिय़ा की मटर की फसल भी तहस नहस कर दी। तब उन्होंने इनके डर से मटर की बजाय लहसुन की बोवनी की। बलवंतसिंह की मटर की फसल रौंद दी है। किसान इनसे बचाव के लिए खेतों की मेढ़ पर बांस बल्ली लगाकर तार लगाने की जुगत लगा रहे है। गांव में रोज रात में किसान जंगल में आतिशबाजी कर नीलगाय को भगाने के लिए जतन करते है। हालाकि शासन द्वारा किसानों को तार फेसिंग करने के संबंध में कोई अनुदान का प्रावधान नही है। किसानों का कहना है कि खेतों की मेढ़ पर नीलगाय से सुरक्षा हेतु तार फेसिंग, जाली लगाने पर अनुदान का प्रावधान कर दिया जाता है तो छोटे किसान भी अपनी फसलों को नीलगाय से आंतक से बचा सकते है।
नीलगाय को स्थानीय किसान रोजड़ा कहते है। इन्हें तुवर और मक्का की फसल अधिक प्रिय है। इस कारण क्षेत्र के अधिकांश किसानों ने मक्का और तुवर लगाना ही बंद कर दिया। इनकी आबादी इतनी अधिक हो गई है कि हर तीसरे चौथे खेत में दिखाई देने लगे है। पहले एक दो तहसीलों तक सीमित थी जो अब रतलाम, उज्जैन, धार, झाबुआ और इंदौर की सीमावर्ती तहसीलों तक दिखने लगी है। जिस खेत में झुंड इकटठा हो जाता है वहां पर व्यापक स्तर पर नुकसान कर देता है।
गाय शब्द जुड़ा होने और संरक्षित वन्य प्राणी होने के कारण इसका शिकार भी नही किया जाता है। नुकसानी पर शासन द्वारा उचित मुआवजे का प्रावधान नही है। वन विभाग मुआवजे के प्रकरण लेता भी है तो कार्रवाई इतनी जटिल है कि क्षेत्र के किसी भी किसान को अभी तक कोई मुआवजा नही मिल पाया है। पीडि़त किसानों ने स्थानीय विधायक, सासंद से लेकर मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री तक अपनी व्यथा पहुंचा दी है। सीएम हेल्पलाईन पर तो नीलगाय से हुई नुकसानी का अंबार लग चुका है। लेकिन संगठित आवाज या प्रदर्शन न होने के कारण सरकार ने अभी तक कोई ठोस योजना या कार्रवाई नही की है।