चंद्र गुरु आदित्य के संयोग में नवरात्रि का आरंभ होगा
उज्जैन, अग्निपथ। सामान्यत: तिथियों की गणित को लेकर हमेशा गड़बड़ की स्थिति बनी रहती है, किंतु इस बार चैत्र नवरात्रि पूरे 9 दिन की रहेगी। साधकों को पूरे 9 दिन साधना के लिए प्राप्त हो सकेंगे। साधना उपासना के लिए पौराणिक अनुक्रम से जो नक्षत्रों की विशिष्टता बताई गई उन नक्षत्रों का अनुक्रम प्रतिपदा से लेकर के नवमी तक रहेगा। चंद्र, गुरु, आदित्य के संयोग में नवरात्रि पर्व का आरंभ होगा।
पंचांग की गणना के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से देवी नवरात्रि का आरंभ हो जाता है। चैत्र नवरात्र से नव संवत्सर का भी आरंभ माना जाता है। इसी दिन गुड़ी पड़वा का त्यौहार भी मनाया जाता है। यही सृष्टि का आरंभ का दिवस भी है। पं. अमर डिब्बेवाला ने बताया कि भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ग्रहों की अपनी गति होती है। यदि त्यौहार या पर्व विशेष का आरंभ हो तो वह विशेष संयोग के अनुक्रम से जोड़ा जाता है। चैत्र नवरात्र का आरंभ बुधवार के दिन उत्तराभाद्रपद नक्षत्र शुक्ल उपरांत ब्रह्म योग किंस्तुघ्न करण उपरांत बालव करण तथा मीन राशि के चंद्रमा की साक्षी में हो रहा है।
चैत्र नवरात्रि पर त्रिग्रही युति संबंध
मीन राशि पर चंद्र, सूर्य, गुरु का त्रिग्रही युति संबंध भी रहेगा। हालांकि यह संबंध चंद्र की साक्षी से अगले दिन दोपहर तक ही रहेगा, किंतु चंद्र गुरु सूर्य का संयोग अपने आप में विशेष भी बताया जाता है। गुरु आदित्य के साथ चंद्रमा का होना धर्म अध्यात्म की दृष्टि से विशेष माना जाता है। बृहस्पति का एक राशि में परिभ्रमण तकरीबन 1 वर्ष का होता है। पुन: उसी राशि में आने का समय 12 वर्ष का लगता है।
इस दृष्टि से मीन राशि पर बृहस्पति का पुन: परिभ्रमण का अनुक्रम 12 वर्ष बाद बन रहा है और नवरात्रि का आरंभ मीन राशि के सूर्य से ही विशेष रूप से संबंध होता है। इस दृष्टि से गुरु आदित्य योग बना, यह योग विशेष मान्यता रखता है। इस योग में धर्म अध्यात्म के नए अनुसंधान और युग परिवर्तन की क्षमता होती है। इस दृष्टि से इस योग का महत्व है।