अर्जुन सिंह चंदेल
आज से ठीक 10 माह पहले यानि 6 जुलाई 2022 को उज्जैन शहर के 4 लाख 61 हजार 103 मतदाताओं ने जिसमें 2 लाख 30 हजार 879 पुरुष, 2 लाख 30 हजार 177 महिलाओं और थर्ड जेंडर के 47 मतदाताओं ने नगर सरकार के चुनावों में भाजपा के महापौर प्रत्याशी मुकेश टटवाल को तो विजयी बनाया ही साथ ही मतदाताओं ने पार्षदों के चुनाव में भी भाजपा को प्रचंड विजय दिलायी। 54 सीटों पर हुए चुनावों में 36 सीटों पर भाजपा तथा काँग्रेस के 18 प्रत्याशियों के पक्ष में मतदान किया।
चुनाव प्रचार के दौरान डबल इंजिन की सरकार के जुमले का भाजपा ने लाभ उठाया। उज्जैन के मतदाताओं के लिये 4-5 इंजिनों की सरकार चुनने का अवसर था। शहर के उत्तर-दक्षिण विधायक, सांसद, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री तक सब कुछ उज्जैन से लेकर दिल्ली तक सब के सब भारतीय जनता पार्टी के, यदि महापौर प्रत्याशी को भी जोड़ लिया जाए तो 6 इंजिनों की सरकार हो गयी थी।
शायद उज्जैन के मतदाताओं ने इसी विश्वास के पर नगर की कमान भाजपा के हाथों में सौंपी थी कि यह 6 इंजिन मिलकर उज्जैन की नगर सरकार की विकास ट्रेन को इतनी गति प्रदान कर देंगे कि मध्यप्रदेश के बाकी शहर इस नगर सरकार के आगे फीके साबित होंगे। 17 जुलाई को परिणाम आये और 6 अगस्त 2022 को इस नगर सरकार के नुमांइदों को शपथ दिलायी गयी।
आज 6 मई को कार्यकाल के 9 माह पूर्ण हो रहे हैं। 60 माह के कार्यकाल में से 9 माह यानि 15 प्रतिशत समय खत्म हो गया है। शेष 51 माह शेष है। नगर सरकार के अभी तक के कार्यकाल का लब्बोलवाब यह है कि शहर के नागरिकों को निराशा है। स्वभाव से सीधे भोले महापौर मुकेश टटवाल जी विकास की गति नहीं बढ़ा पा रहे हैं। नागरिकों की अपेक्षा व आशाओं पर अभी तक खरा नहीं उतर पा रहे हैं।
महाकाल लोक बनने के बाद इस शहर के लोगों की विकास के मुद्दे पर महत्वकांक्षाए परवान पर है और उन्हें सबसे ज्यादा उम्मीदें भी नगर सरकार से ही है। इसे इस परिषद का दुर्भाग्य ही कहना होगा कि जब यह परिषद अस्तित्व में आयी तब निगम का खजाना खाली था।
प्रशासनिक दृष्टि से भी निगम का ताना-बाना छिन्न-भिन्न था। शिवाजी भवन में अधिकारियों के शह और मात का खेल अपने चरम पर था।
कुछ तो कोरोना की मार कुछ प्रदेश सरकार की बेरूखी और भोपाल का खजाना भी खाली होने के कारण निगम को आर्थिक मदद नहीं मिल सकी।
‘आमदनी अठन्नी खर्चा रूपया’ की तर्ज पर काम कर रही उज्जैन नगर निगम का धीरे-धीरे पूरा ढांचा ही चरमराकर गिर पड़ा। उज्जैन के विकास में योगदान देने वाले ठेकेदार तीन वर्षों से भुगतान के लिये एक भिक्षुक की तरह निगमायुक्त की ओर टकटकी लगाकर देख रहे हैं। वर्तमान में उज्जैन में नगर निगम पर 80-85 करोड़ की देनदारियां है। बदहाली का आलम यह है कि ठेकेदारों ने निर्माण कार्यों की निविदाओं में भाग लेना ही बंद कर दिया है।
एक ही निविदा दो-दो, तीन-तीन बार निकालने पर भी ठेकेदार भाग नहीं ले रहे हैं एक प्रकार से पूरी तरह बहिष्कार। एक-दो कार्यों की निविदा में भाग ले भी लिया तो वह ऊँट के मुँह में जीरा है। नगर के सारे ही पार्षद हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। वार्ड के मतदाताओं से किये वायदों को पूर्ण करने की शुरुआत भी नहीं कर पा रहे हैं। पार्षद तो ठीक नगर के उत्तर-दक्षिण के विधायक भी निगम की गिरती साख से बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं विधानसभा चुनाव सन्निकट है। निगम से संबंधित निर्माण कार्यों के ठेकेदारों द्वारा बहिष्कार से विधायकों की साख पर धब्बा सा लग रहा है।
उत्तर विधानसभा के लोकप्रिय विधायक एवं पूर्व मंत्री तो केडी गेट मार्ग चौड़ीकरण एवं अन्य निर्माण कार्य ना होने पर मुख्यमंत्री तक अपनी गुहार लगा चुके हैं। यही स्थिति केबिनेट मंत्री एवं दक्षिण के विधायक मोहन यादव जी की भी है। सिंधी कॉलोनी तिराहे से हरिफाटक ब्रिज चौड़ीकरण की निविदा हो या देवास रोड स्थित पाश्र्वनाथ सिटी में 500 मीटर 6 इंची पाईप लाईन डालने का मामला हो या त्रिवेणी पर रोटरी का कार्य हो पुराना भुगतान ना होने के कारण ठेकेदार निविदा में भाग ही नहीं ले रहे हैं। जिससे विधायकों की छवि भी खराब हो रही है। एक लंबी फेहरिस्त है निर्माण कार्यों की द्वितीय-तृतीय निविदाओं की। निगम का स्थापना व्यय 65 प्रतिश की जगह 85-90 प्रतिक तक पहुँच गया है।
आउटसोर्स कर्मचारियों की बेवजह और भारी भीड़ से निगम अधिकारी नक्का-दुआ का खेल चला रहे हैं। वह तो स्मार्ट सिटी के निर्माण कार्यों की वजह से नगर सरकार की थोड़ी बहुत इज्जत बची हुयी है अन्यथा दो कौड़ी की इज्जत हो जाती। नगर के प्रथम नागरिक महापौर जी को चाहिये कि वह सारे ही पक्ष-विपक्ष के 54 ही पार्षदों को भोपाल ले जाकर मुख्यमंत्री के समय निगम को आर्थिक मदद दिये जाने के लिये धरना दे और आर्थिक मदद लाये तभी नगर सरकार के विकास की गति पर लगा ब्रेक हट सकेगा अन्यथा आने वाले विधानसभा चुनावों में भाजपा को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।