मेरी ‘धान के कटोरे’ छत्तीसगढ़ की यात्रा

– अर्जुन सिंह चंदेल

वर्षों पहले सुना था हमारे ही मध्यप्रदेश का एक हिस्सा बस्तर, दंतेवाड़ा बुरी तरह नक्सलवाद से प्रभावित है समय का चक्र घूमता रहा मध्यप्रदेश का विभाजन हुआ और हमारे प्रदेश के एक अंग को हम से जुदा कर दिया गया और इसे नाम दिया गया ‘छत्तीसगढ़’ नक्सलवाद प्रभावित अधिकांश भू-भाग छत्तीसगढ़ के पास चला गया।

320 विधानसभा क्षेत्र वाला हमारा प्रदेश 230 विधानसभा का ही रह गया 90 सीटें छत्तीसगढ़ के पास चली गयी। 23 वर्ष पूर्व जुदा हुआ ‘धान के कटोरा’ 1,35194 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला है और 2011 की जनगणना अनुसार इसकी आबादी 2 करोड़ 55 लाख है। विद्युत तथा स्टील उत्पादन की दृष्टि से यह भारत का महत्वपूर्ण राज्य है। जनसंख्या की दृष्टि से देश का 16वां बड़ा राज्य और क्षेत्रफल के नजरिये से भारत का 9वां बड़ा राज्य है जिसके भू-भाग का 44 प्रतिशत इलाका वनों से आच्छादित है। वन क्षेत्रफल की दृष्टि से छत्तीसगढ़ देश का तीसरा बड़ा राज्य है।

खैर, बचपन से पचपन तक जिस क्षेत्र के नक्सलवाद से प्रभावित होने की छवि दिलो-दिमाग में जमी हुयी हो एक लंबे अंतराल तक जहाँ की धरती खून की प्यासी रही हो, जहाँ हुयी हिंसा की खबरें रोजाना समाचार पत्रों की सुर्खियां बनी हो, जिस प्रदेश में भारत माता के वीर सपूतों ने देश की अखंडता एकता के लिये अपने प्राणों का उत्सर्ग किया हो ऐसी ही धरती को नजदीक से जानने-पहचानने का अवसर उम्र के 61 बसंत पार करने के बाद आ ही गया।

सोश्यल मीडिया पर घुमक्कड़ों के एक ग्रुप पर 22-23 जुलायी 2023 को छत्तीसगढ़ के ‘मैनपाट’ में जिसे वहाँ का शिमला कहा जाता है बैठक होने की सूचना प्रसारित हुयी। जन्मजात घुमक्कड़ी का शौक पाले हमारा जवान मन वहाँ जाने को बैचेन हो गया।

सफर बहुत लम्बा था लगभग 24 घंटे का, दिमाग में किन्तु परन्तु होने लगा। लम्बे सफर के लिये हमराहियों और हमसफरों की जरूरत होती है। अच्छे दोस्तों के साथ बिना तो शायद स्वर्ग में भी आनंद नहीं आता होगा। दोस्तों से चर्चा की हमख्याल होने के कारण पहले एक तैयार हुआ फिर दूसरा फिर तीसरा और ऐसा करते-करते 11 लोगों की टीम छत्तीसगढ़ जाने के लिये तैयार हो गयी।

आपातकालीन बैठक बुलाकर पूरी कार्ययोजना तैयार की गयी धनराशि एकत्र हुयी, आयोजक घुमक्कड़ी क्लब को प्रति व्यक्ति के मान से 4100/- रुपये की धनराशि उनके खाते में जमा की गयी नेट बैंकिंग के माध्यम से। आरक्षण का जिम्मा अनुभवी साथी रमेश श्रीवेया को दिया गया जिन्होंने आनन-फानन एक घंटे के अंदर ही यात्रा टिकट लाकर हाथ में रख दिये। अब सब काम पक्का हो चुका था। पाँच दिवसीय यात्रा के लिये नमकीन वगैरह खरीदने का जिम्मा हमेशा की तरह हरिकृष्ण घुड़ावत ने संभाला।

20 जुलायी को उज्जैन से 10 लोग जिसमें मेरे अलावा करण सिंह चौहान, दिलीप चौहान, चंद्रशेखर चौहान, प्रताप यादव, हरिबाबू, रमेश श्रीवेया, मुकेश गंगवार, सागर लोकायुक्त कार्यालय में पदस्थ मनीषा गुप्ता और उनका पुत्र मोहित गुप्ता हम 10 लोग नर्मदा एक्सप्रेस से अनुपपूर के लिये रवाना हो गये। हमारे दल के ग्यारहवें साथी श्री एन.पी. अग्रवाल भोपाल से टीम में शामिल होने वाले थे ।17 घंटों की यात्रा करनी थी नर्मदा एक्सप्रेस में। यदि साथ अच्छा हो तो सफर चाहे जिंदगी का हो या टे्रन का अच्छे से कट ही जाता है। वातानुकूलित डिब्बे में ताशपत्ती, अंताक्षरी, खाते-पीते मौज मस्ती करते हम सभी 11 लोग अनुपपूर पहुँच ही गये।

शेष अगले अंक में…

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