पिछले दिनों नगर निगम ने मुहिम शुरू की थी, पशु मुक्त शहर। अफसरों ने बड़े-बड़े दावे किए थे कि शहर में सडक़ों पर घूमने वाले पशुओं को शहर से बाहर किया जाएगा और उनके पालकों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। जिसमें आपराधिक कार्रवाई का दावा भी किया गया था। कुछ समय अभियान चला। मवेशियों को पकड़ा और बाद में फिर छोड़ दिया गया। अब न तो कहीं मुहिम दिख रही है और न ही पशुपालकों पर कार्रवाई।
सडक़ पर आवारा मवेशी और सूअर बेधडक़ घूम रहे हैं। निगम गलियारों में खबर है कि पशुपालकों को आश्रय भी नगर निगम कर्मचारी ही देते हैं। जिनसे मन (धन) मिल जाते हैं उनके पशु/सूअर बिना किसी रोकटोक के आराम से सडक़ों पर घूम सकते हैं और मन नहीं मिलाने वाले के पशुओं को कांजी हाउस का रास्ता दिखा दिया जाता है और पशु बाड़ा तोड़ दिया जाता है। जब भी शहर में पशुओं के कारण कोई बड़ी घटना या दुर्घटना होती है, तब अफसरों के फरमान जारी होते हैं कार्रवाई करो।
तब कार्रवाई होने के एक दिन पहले निगम गैंग के जिम्मेदार और चहेते पशुपालक सामाजिक न्याय परिसर में रात को मिलते हैं और तय करते हैं कि कल किस पशुपालक पर कार्रवाई करना है। इस तरह की कार्रवाई स्थाई हल कभी नहीं दे सकती।