पूर्व कुलसचिव स्वास्थ्य खराब होने का हवाला देकर लोकायुक्त दफ्तर नहीं आए है
उज्जैन, अग्निपथ। पीएचडी कांड में घिरे पूर्व कुलसचिव प्रशांत पुराणिक की वाइस रिकॉडिंग को मैच किया जाना है। इसके लिए लोकायुक्त पुलिस ने उन्हें कार्यालय में बुलाया था। मामले में तत्कालीन एचओडी रहे गणपत अहिरवार और वीरेंद्र उचारे को भी बुलाया गया था। वीरेंद् उचारे गवाह के बतौर लोकायुक्त आफिस में गए थे। परन्तु वाइस रिकॉडिंग को मैच किए जाने की प्रक्रिया पुराणिक के नहीं जाने की वजह से नहीं हो पाई।
इस संबंध में जांच अधिकारी दीपक शेजवार का कहना है कि लोकायुक्त पुलिस ने वाइस रिकॉर्डिंग के लिए पूर्व कुल सचिव प्रशांत पुराणिक के तलब किया था। परन्तु उन्होंने स्वास्थ्य खराब होने का हवाला दिया है। इसलिए आज वे नहीं आए हैं। अब उन्हें फिर से वाइस रिकॉर्डिंग को मैच करने के लिए बुलाया गया है। इसके बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी।
उल्लेखनीय है कि कांग्रेस नेता और वकील बबलू खींची ने विक्रम विश्वविद्यालय का पीएचडी कांड उजागर किया था। इसमें विक्रम विश्वविद्यालय के परीक्षा प्रक्रिया से जुड़े प्रोफेसरों और पूर्व कुलसचिव पर कुछ विद्यार्थियों को लाभ देने के आरोप लगाए गए थे। मामले की जांच के दौरान साबित हो गया था कि इस मामले में अनियमितता की गई है।
गड़बड़ी की पुष्टि होने के बाद लोकायुक्त ने भ्रष्टाचार का मामला मानते हुए पूर्व कुलसचिव प्रशांत पुराणिक, सहायक कुलसचिव विक्रम विश्वविद्यालय वीरेंद्र उचवारे, प्रोफेसर विक्रम विश्वविद्यालय गणपत अहिरवार, प्रोफेसर विक्रम विश्वविद्यालय पीके वर्मा और प्रोफेसर शासकीय इंजीनियरिंग कालेज उज्जैन के वाय एस ठाकुर के खिलाफ 20 जून 2023 को एफआईआर दर्ज की थी। इसमें सभी के खिलाफ धारा 420.468, 471, 201,120 बी के तहत प्रकरण दर्ज किया गया था।
11 विद्यार्थियों की ओएमआर शीट में कांटछांट पाई गई थी : लोकायुक्त की जांच में विक्रम विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों और अफसरों ने 11 विद्यार्थियों को पीएचडी में पास करने के लिए उनकी ओएमआर शीट में कांटछांट की थी। इसकी पुष्टि जांच के दौरान उपलब्ध कराए गए रिकॉर्ड से हुई थी। जांच में पाया गया कि पूर्व कुलसचिव के हस्ताक्षर से जारी नोटशीट के माध्यम से रात 11.30 बजे रिजल्ट को अपलोड किया गया था।
इस मामले में डॉ इंद्रेश मंगल की अध्यक्षता में गठित विभागीय जांच में भी ओएमआर शीट में कांटछांट किया जाना पाया गया था। कुछ सदस्यों ने बगैर रिपोर्ट दिए ही इस्तीफा भी दे दिया था। पुराणिक को नई जांच समिति गठित करने के निर्देश दिए गए थे। परन्तु छह माह तक उन्होंने नई जांच समिति ही नहीं बनाई थी।