अर्जुन के बाण : तरणताल से कोठी महल तक के निरीह, बेजुबान पेड़ों की मार्मिक पाती मुख्यमंत्री के नाम

अर्जुन सिंह चंदेल

हे परमश्रेष्ठ!

महाकाल के आँगन में पुष्पित पल्लवित गुरु सांदीपनी की धरती पर शिक्षा अर्जित करने वाले भगवान कृष्ण के कुछ अंशों की तरह 36 कलाओं में निपुण, 8 करोड़ प्रदेशवासियों की आशा के केन्द्रबिंदु संवेदनशील मुख्यमंत्री मोहन यादव जी आज आपसे एक निवेदन है। बीते कई दिनों से इसी उज्जैयिनी के निगौड़े नागरिक जब प्रतिदिन सुबह-सुबह हमारे आँचल तले हमारे द्वारा छोड़ी गयी शुद्ध ऑक्सीजन का लाभ अर्जित करने आते हैं तब हमारी ही मौत के बारे में अजीब-अजीब सी बातें कर रहे हैं जिससे हम भयभीत है।

इस न्यायप्रिय राजा विक्रमादित्य की नगरी के निवासी होने के फलस्वरूप परमश्रेष्ठ मुख्यमंत्री जी आपसे ही हमारा वृक्ष परिवार संशय दूर करना चाहता हैं। क्या हमारी मृत्यु सन्निकट है या यह सिर्फ मानवों द्वारा छोड़ा गया शिगूफा?

आप तो जानते हैं कि आज से लगभग 123 वर्षों पूर्व भारतीय वैज्ञानिक सर जगदीशचंद्र बसु ने यह प्रमाणित कर दिया था कि हम पेड़ों में भी प्राण बसते हैं। हम मनुष्य और पर्यावरण दोनों के लिये ही दुनिया के प्रमुख स्तंभ है। हम ही हैं जो पानी, हवा को शुद्ध करके बेहतर सामाजिक परिस्थितियों का निर्माण करके मानव को देते हैं। हम पेड़ भी इंसानों की तरह एक जटिल जीवित जीव हैं। हम भी जीवन चक्र में अनेक चरणों से गुजरते हैं जैसे बढऩा, प्रजनन करना और अंतत: मृत्यु को प्राप्त करना।

हे परमश्रेष्ठ! हम पेड़ पौधे दुनिया को यह दिखाते हैं कि जीवन को कैसे आगे बढ़ाया जाता है, हम यादें संजों कर रखते हैं, विश्वास को मूर्तरूप देते हैं और अपने दुखों को भी दर्शाते हैं। हमारे परिवार का एक पेड़ 24 घंटों में इतनी ऑक्सीजन का उत्सर्जन कर देता है कि जिससे 12 मनुष्य 1 वर्ष भर साँस ले सकते हैं।

माननीय मुख्यमंत्री जी हम में भी प्राण है तो हमें भी इंसानों की तरह जीवन जीने का अधिकार है। फिर आपके ही घर आँगन में हम बेजुबान-निरीह पेड़ों की बलि देने की तैयारी क्यों? हममें और मनुष्यों में मात्र एक ही अंतर है, मनुष्य में आत्मा होती है जो हम लोगों में नहीं।

तरणताल से लेकर कोठी महल तक खड़े हम पेड़ों के परिवार यहाँ अनादि काल से वास कर रहे हें, हमारी अनेक पीढिय़ां इसी जगह पर मर खब गयी है। हमने इस पुरातन उज्जैयिनी के अतीत और वर्तमान को देखा है और दैदीप्यमान भविष्य को भी देखने की इच्छा रखते हैं। हम इस अवंतिका नगरी की थाती है, गौरव है इसका। इस नगर में आने वाले हर अतिथि की इच्छा होती है कि अल सुबह और शाम को हमारे आँचल तले टहल कर शुद्ध ऑक्सीजन ग्रहण कर अपनी आयु में वृद्धि करे।

जब सुबह हम पेड़ों का परिवार ताजगी से भरपूर होता है तब इस मार्ग का नजारा जन्नत से कम नहीं होता है। हे परमश्रेष्ठ! यह सबक आपको बताने की जरूरत नहीं है क्योंकि आप तो स्वयं अनेक बार टहलने आते हैं आपने तो राहगिरी का भी आयोजन करवाया था।

हाँ हमने यह भी सुना है कि आप हमारे पेड़ों के परिवार के पास ही कुलपति भवन में रहने के लिये आ रहे हैं यह हमारे लिये अति प्रसन्नता का विषय है कि इस धरती का पुत्र, मध्यप्रदेश का गौरव हमारा ‘मोहन’ हमारे नजदीक आ रहा है। हम ‘पेड़’ कभी भी विकास के विरोधी ना थे और ना रहेंगे हमें तो इस शहर को आगे बढ़ते देखकर सबसे ज्यादा प्रसन्नता होती है। पर यह विकास हमारी ‘मौत’ की कीमत पर कदापि नहीं होना चाहिये।

निस्संदेह तरणताल से कोठीमहल तक फोरलेन बनना चाहिये, आपके पास तो विश्वकर्मा वंशजों की पूरी फौज है (इंजीनियरों की) एक से एक विशेषज्ञ है। मेहरबानी करके ऐसी योजना बनवाये कि हमारा भी जीवन बच जाये, हम भी मुस्कुराते रहे और सडक़ भी चौड़ी हो जाये। पेड़ों के पीछे साहब बहादुर के भी बंगले हैं, सरकारी दफ्तर है उनको पीछे करके नयी सडक़ का निर्माण किया जा सकता है वर्तमान सडक़ ऐसी ही रह जाये इससे इस मार्ग की सुंदरता में और चार चाँद लग जायेंगे और हमारी ‘हत्या’ भी नहीं होगी। आपसे उम्मीद करते हैं आप हमारी असमय हत्या होने से बचा लेंगे।
आपका ही पेड़ परिवार

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