मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन कर रहा सरकारी जमीन की तलाश
उज्जैन, अग्निपथ। मध्य प्रदेश के दो सबसे महत्वपूर्ण शहर, इंदौर और उज्जैन, को जोड़ने वाली बहुप्रतीक्षित इंदौर-उज्जैन मेट्रो परियोजना अब तेजी से आगे बढ़ रही है। इस महत्वाकांक्षी योजना का सबसे महत्वपूर्ण चरण, डिपो के लिए भूमि अधिग्रहण, अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच गया है। परियोजना के लिए लगभग 20 हेक्टेयर भूमि की तलाश जारी है, जिसमें सांवेर के पास रेवती क्षेत्र पर विशेष ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। यह विकास इस बात का संकेत है कि सिंहस्थ 2028 से पहले इस सपने को साकार करने की दिशा में ठोस कदम उठाए जा रहे हैं, जैसा कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने भी अपनी नियमित समीक्षाओं में जोर दिया है।
यह परियोजना न केवल इन दोनों ऐतिहासिक और आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण शहरों के बीच कनेक्टिविटी को मजबूत करेगी, बल्कि लाखों श्रद्धालुओं, पर्यटकों और व्यापारिक गतिविधियों के लिए एक सुविधाजनक और तीव्र परिवहन विकल्प भी प्रदान करेगी। भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को गति देने का निर्णय परियोजना के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ है, जो इसके समय पर पूरा होने की संभावना को बढ़ाता है।
डिपो के लिए भूमि अधिग्रहण: प्राथमिकता में सरकारी जमीन
मध्य प्रदेश मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (MPMRCL) इंदौर-उज्जैन मेट्रो डिपो के निर्माण के लिए लगभग 20 हेक्टेयर (लगभग 49.4 एकड़) भूमि की तलाश में है। यह भूमि मेट्रो ट्रेनों के रखरखाव, पार्किंग और परिचालन के लिए अत्यंत आवश्यक है। शुरुआत में, इंदौर और उज्जैन के आसपास इतनी बड़ी सरकारी जमीन आसानी से उपलब्ध नहीं हो पा रही थी, जिसके बाद सांवेर के पास रेवती क्षेत्र में जमीन के लिए प्रस्ताव भेजा गया है।
कॉर्पोरेशन की पहली प्राथमिकता सरकारी भूमि का अधिग्रहण है, क्योंकि यह निजी भूमि की तुलना में काफी आसान प्रक्रिया है। सरकारी भूमि के मामले में, सरकार अन्य विभागों की भूमि को मेट्रो कॉर्पोरेशन को आवंटित कर सकती है, और संबंधित विभागों को अन्य स्थानों पर वैकल्पिक भूमि प्रदान कर सकती है। यह प्रक्रिया भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 के तहत निजी भूमि अधिग्रहण की तुलना में कम जटिल और समय लेने वाली होती है। निजी भूमि के अधिग्रहण में कई किसानों से सहमति प्राप्त करने की आवश्यकता होती है, जिससे देरी हो सकती है, साथ ही मुआवजे की प्रक्रिया भी लंबी होती है, जिससे परियोजना की लागत और समय-सीमा दोनों प्रभावित हो सकते हैं।
हालिया अपडेट के अनुसार, उज्जैन कलेक्टर ने भी भूमि अधिग्रहण को लेकर मेट्रो अधिकारियों के साथ चर्चा की है, जिससे इस प्रक्रिया को और गति मिलने की उम्मीद है। कॉर्पोरेशन के अधिकारी लगातार भूमि की तलाश में हैं और रेवती के पास उपयुक्त स्थान की पहचान को अंतिम रूप देने के लिए प्रयास कर रहे हैं।
मेट्रो का स्वरूप: एलिवेटेड और अंडरग्राउंड का अनूठा मिश्रण
इंदौर-उज्जैन मेट्रो का रूट एक अभिनव मिश्रण होगा, जिसमें एलिवेटेड (ऊपर) और अंडरग्राउंड (भूमिगत) दोनों तरह के खंड शामिल होंगे। कॉर्पोरेशन के सूत्रों के अनुसार, इंदौर-उज्जैन रोड पर मेट्रो एलिवेटेड रहेगी। यह खंड सड़कों के बीच स्थित डिवाइडर पर पिलर लगाकर बनाया जाएगा, जो शहरी नियोजन और यातायात प्रवाह को ध्यान में रखेगा।
वहीं, उज्जैन के नानाखेड़ा से उज्जैन रेलवे स्टेशन तक मेट्रो अंडरग्राउंड रहेगी। यह भूमिगत खंड शहर के घनी आबादी वाले और ऐतिहासिक क्षेत्रों से गुजरेगा, जहां एलिवेटेड ट्रैक बनाना व्यवहार्य नहीं होगा। इंदौर-उज्जैन मेट्रो के एलिवेटेड और अंडरग्राउंड हिस्सों की सटीक लंबाई और उनके स्थान का निर्धारण विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) के अंतिम रूप दिए जाने के बाद ही स्पष्ट होगा। यह लचीला डिजाइन परियोजना को विभिन्न शहरी परिदृश्यों में कुशलता से काम करने में सक्षम बनाएगा।
दिल्ली मेट्रो की विशेषज्ञता से तैयार हो रही DPR
इंदौर-उज्जैन मेट्रो के लिए विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) तैयार करने का महत्वपूर्ण कार्य दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन (DMRC) के अधिकारी कर रहे हैं। DMRC का भारत में मेट्रो परियोजनाओं के विकास और कार्यान्वयन का व्यापक अनुभव है, और उनकी विशेषज्ञता इस परियोजना की सफलता के लिए महत्वपूर्ण है। यह रिपोर्ट जुलाई या अगस्त 2025 तक तैयार होने की उम्मीद है।
DPR में परियोजना की अनुमानित लागत, फंड जुटाने की योजना, रूट अलाइनमेंट, डिपो निर्माण का स्थान, स्टेशनों का सटीक लेआउट, अंडरग्राउंड और एलिवेटेड खंडों का विवरण, और अन्य सभी आवश्यक तकनीकी और वित्तीय पहलुओं पर विस्तार से जानकारी होगी। प्रारंभिक अनुमान के अनुसार, इस परियोजना पर लगभग 10,000 करोड़ रुपये की लागत आने की उम्मीद है। कुछ रिपोर्टों में सिंहस्थ 2028 को देखते हुए लागत 1500 करोड़ रुपये बताई गई है, जिसमें 60% फंडिंग लोन के जरिए और 20-20% केंद्र और राज्य सरकार द्वारा वहन की जाएगी। DPR का समय पर पूरा होना परियोजना के लिए आवश्यक केंद्रीय और राज्य स्तरीय अनुमोदनों (approvals) को प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण होगा।
135 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ेगी मेट्रो: हाइब्रिड मोड का कमाल
इंदौर और उज्जैन के बीच मेट्रो का संचालन हाइब्रिड मोड में किया जाएगा, जिससे यह 135 किलोमीटर प्रति घंटे की अधिकतम गति से चलेगी। यह उच्च गति यात्रियों को दोनों शहरों के बीच की दूरी को कम समय में तय करने में मदद करेगी। वर्तमान में, दिल्ली एयरपोर्ट एक्सप्रेस लाइन में इसी तरह के हाइब्रिड मोड में मेट्रो का सफलतापूर्वक संचालन किया जा रहा है, जो इस तकनीक की विश्वसनीयता और दक्षता का प्रमाण है।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि सिंहस्थ 2028 से पहले इस परियोजना को पूरा करने का लक्ष्य है, ताकि इस विशाल धार्मिक आयोजन के दौरान लाखों श्रद्धालुओं को सुगम यात्रा सुविधा मिल सके। हालांकि 10,000 करोड़ रुपये या उससे अधिक का बजट जुटाना राज्य शासन के लिए एक चुनौती है, फिर भी सरकार इस परियोजना को प्राथमिकता दे रही है और लगातार इसकी प्रगति की निगरानी कर रही है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव स्वयं इस परियोजना को सिंहस्थ से पहले साकार करने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं, और इसी कारण इस पर तेजी से काम चल रहा है।
इंदौर-उज्जैन मेट्रो के 8 स्टेशन बनाएंगे सफर को सुविधाजनक
प्रस्तावित इंदौर-उज्जैन मेट्रो रेल के लिए स्टेशनों की संख्या और अलाइनमेंट तय कर लिया गया है। 48 किलोमीटर लंबे इस रूट पर कुल आठ स्टेशन बनाए जाएंगे, जिससे यात्रियों के लिए पहुंच और सुविधा सुनिश्चित हो सके।
पहला स्टेशन इंदौर के बाहरी इलाके में स्थित लवकुश चौराहा पर बनेगा, जो शहर के केंद्र से यात्रियों को जोड़ने में मदद करेगा। अंतिम स्टेशन उज्जैन में महाकाल लोक के ठीक सामने प्रस्तावित है। यह स्थान महाकाल मंदिर के समीप होने के कारण भक्तों और पर्यटकों के लिए अत्यधिक सुविधाजनक होगा, जिससे उन्हें सीधे मंदिर परिसर तक पहुंचने में आसानी होगी। रूट पर लगभग 70 से 80 फीसदी काम सड़क की सेंट्रल लाइन के अनुसार ही किया जाएगा। यह रणनीति निर्माण के दौरान यातायात बाधाओं को कम करने और भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने में मदद करेगी।
यह इंदौर-उज्जैन मेट्रो मेट्रो परियोजना मध्य प्रदेश के शहरी विकास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगी। यह न केवल इंदौर और उज्जैन के निवासियों के जीवन को आसान बनाएगी, बल्कि दोनों शहरों के बीच आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों को भी मजबूत करेगी, जिससे प्रदेश की प्रगति को एक नई दिशा मिलेगी।