उज्जैन, अग्निपथ। भारत के पास विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं नवाचार में एक समृद्ध विरासत है। देश एक बार फिर जगतगुरू बनने की दिशा में अग्रसर है। विक्रम विश्वविद्यालय में भारतीय ज्ञान-विज्ञान, शिक्षा एवं अनुसंधान केन्द्र की स्थापना एवं आगामी सत्र से विभिन्न अध्ययन शालाओं, इलेक्ट्रॉनिक्स, फॉरेंसिक, फूड टेक्नालॉजी, हार्टिकल्चर और मत्य्य पालन आदि 100 से अधिक पाठ्यक्रम प्रारम्भ किये जा रहे हैं। आशा है यह नवीन प्रयास क्षेत्र, राज्य और राष्ट्र के विकास में सहयोग कर विश्वविद्यालय के इतिहास में महत्वपूर्ण उपलब्धी हासिल करेंगे।
राज्यपाल श्रीमती आनन्दीबेन पटेल ने यह बात शनिवार को विक्रम विश्वविद्यालय के 24वे दीक्षान्त समारोह में सम्बोधित करते हुए कही। समारोह में कुलाधिपति श्रीमती पटेल ने 325 छात्रों को वर्ष 2018-19 की पीएचडी उपाधि, स्नातक वर्ष 2018-19 की उपाधि तथा स्नातकोत्तर वर्ष 2018-19 की उपाधि एवं मेडल वितरित किये गये।
इसके पूर्व समारोह स्थल पर राज्यपाल अकादमिक शोभायात्रा के साथ पहुंची। समारोह स्थल पर वागदेवी के सम्मुख अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलित कर दीक्षान्त समारोह का शुभारम्भ किया गया। इस अवसर पर उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. मोहन यादव, सांसद अनिल फिरोजिया, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष प्रो.डीपी सिंह, विधायक पारस जैन, कुलपति प्रो.अखिलेश कुमार पाण्डेय, कुलसचिव डॉ. उदयनारायण शुक्ल, विश्वविद्यालय कार्य परिषद के सदस्य श्री राजेशसिंह कुशवाह, श्री सचिन दवे, सुश्री ममता बेंडवाल तथा डॉ.विनोद यादव सहित गणमान्य अतिथि, संकायाध्यक्ष, छात्र एवं प्राध्यापकगण मौजूद थे।
दीक्षान्त समारोह में उच्च शिक्षा मंत्री डॉ.मोहन यादव ने सम्बोधित करते हुए कहा कि हमें एक नई शिक्षा नीति को स्वीकार करने का सुयोग प्राप्त हुआ है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, 21वी शताब्दी की प्रथम शिक्षा नीति है, जिसका लक्ष्य हमारे देश के विकास के लिये अनिवार्य आवश्यकताओं को पूरा करना है।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष प्रो.डीपी सिंह ने कहा कि राष्ट्ररूपी नौका का खिवैया युवावर्ग ही होता है।
उनमें छलकता हुआ जोश, कुछ कर गुजरने का जुनून, आंखों में संजोये हुए भविष्य के सपने, सुन्दर कल की उम्मीद, आसमान को छू लेने की ललक होती है। युवा ही शासक, प्रशासक, शिक्षक, वैज्ञानिक, संगीतकार, साहित्यकार, चिकित्सक, अभियंता एवं कलाकार के रूप में अपने योगदान से सम्पूर्ण विश्व में राष्ट्र की विशेष पहचान स्थापित करते हैं।
दीक्षान्त समारोह के आरम्भ में विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.अखिलेश कुमार पाण्डेय ने स्वागत भाषण में कहा कि अवन्तिका के विद्या वैभव को पुन: प्रतिष्ठित करने के उद्देश्य से 1957 ईस्वी में विक्रम विश्वविद्यालय की स्थापना की गई। स्थापना के वर्ष से वर्तमान तक विश्वविद्यालय निरन्तर अपने उद्देश्य की प्राप्ति हेतु अग्रसर है।
वर्तमान में विश्वविद्यालय का क्षेत्राधिकार उज्जैन संभाग के सात जिलों में फैला है, जिसमें कुल 188 महाविद्यालय एवं 14 शोध केन्द्र हैं। वर्तमान में विश्वविद्यालय द्वारा 31 अध्ययन केन्द्र संचालित किये जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि आज के दीक्षान्त समारोह में विशेष उपलब्धियों के लिये वर्ष 2018 और 2019 के स्नातक एवं स्नातकोत्तर स्तर के छात्र-छात्राओं को स्वर्ण पदक, शोधार्थियों को शोध उपाधियां एवं स्नातक व स्नातकोत्तर की उपाधियां इस तरह कुल सवा तीन सौ से अधिक दीक्षार्थियों को उपाधि एवं स्वर्ण पदक प्रदान किये गये हैं। संचालन कुलसचिव डॉ.उदय नारायण शुक्ल ने किया एवं अन्त में आभार भी उन्हीं के द्वारा व्यक्त किया गया।