शहर का चक्कर: मिलावटी से मुक्ति अभियान : कलेक्टर सम्मुख किन्नर : रैदास जयंती डांडा गाड़ पूर्णिमा

मिलावटियों को मारो. आम जन की जान बचाओ. पुण्य कमाओ. महाकालश्री के शिव रात्रि दर्शन से अधिक लाभ मिलेगा. शिवजी ने गरल पिया नीलकंठ बने. आम भक्तों को जहर से बचाया.
मारने वालों से बचाने वाला महान होता है.
बाबा महाकाल से मांगा और प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए. चाह पूरी हुई. माननीय मुख्यमंत्री कमलनाथजी ने सर्वश्रेष्ठ कार्य किया था. खाद्य पदार्थ में अपमिश्रण करने वालों को पकड़ा. जीवन से खिलवाड़ करने वालों को पकड़ो. रासुका में जकड़ो. कोई भी हो छोड़ो मत!
यह भी अच्छी बात है कि वर्तमान मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह ने कमलनाथ के शुभ अभियान को निरंतर रखा. कुछ व्यापारी इसलिए सत्ताधारियों के करीबी शुभचिंतक, दानदाता, सदस्य बनते हैं कि मिलावटी को पकडऩे वाला स्वास्थ्य विभाग से बचे रहे. व्यापारी किसका? जो सत्ताभोगी हो उसका.
नमकीन दुकानें सील. ढाबों पर छापे. प्रतिष्ठानों से लाखों रुपयों का अर्थदण्ड वसूला. उपभोक्ता की दुआ ली. मीठा जहर धीरे-धीरे खिलाने वालों को शीघ्र कैलाश पर्वत पर भेज दो. वहां महाकाल श्री से प्रतिदिन मिलता रहे. पाप से मोक्ष पाता रहे.
‘‘मिलावट से मुक्ति’’
यह अभियान निरंतर रहे. जीवन बचाना, सुरक्षा देना. स्वास्थ्य बचाना उत्कृष्ट सेवा कार्य है.
पहला सुख निरोगी काया.
फिर मिले धन और माया.
सात दिन पूर्व खाद्य एवं सुरक्षा विभाग १७ कुंतल मावा जब्त किया. घी-क्रीम का सैंपल लिया. जांच के लिए प्रयोगशाला भेजा.
हमारे मित्र एडवोकेट दूध-पानी मिलावटी डेरी वालों के प्रकरण लड़ते थे. बचाते थे. आरोपी इसलिए बचते थे कि नपानि का इंस्पेक्टर जांच में कई खामियां रख देता था. कानूनी कमी देख छोड़ देता था. आरोपी वकील साहब से बोलता. साहब! प्रयोगशाला भोपाल में कोई परिचित हो तो बताओ! जो भी लगेगा देंगे. सैंपल पास होना चाहिए. अपराधियों के हाथ बहुत लंबे होते हैं. भ्रष्टों की कतार बड़ी है.
यदपि वर्तमान में खाद्य एवं स्वास्थ्य सुरक्षा अधिकारी उज्जयिनी, प्रधानमंत्री मोदी जी के सूत्र को याद रखते हैं. ना खाऊंगा ना खाने दूंगा.
होटल विक्रमादित्य पर ३० हजार का दण्ड किया. छोटी होटल पर विक्रेता नमकीन भी अमानक होता है. गरीब तो ठेलों पर ही शौक पूरा करता है. सडक़ किनारे बनते कचोरी, समोसे, भजिए की भी जांच होते रहना चाहिए.
कोरोना पुन: प्रवेश कर रहा है. होटलों, ठेलों, चाट दुकानों की निगरानी रखें. नागरिकों को बचाया जाए.
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युग बदले लेकिन कुमार शिखंडी की परंपरा निरंतर है. सवा पांच हजार साल पहले धर्मयुद्ध में महापराक्रमी सर्वश्रेष्ठ पितामाह भीष्म श्री ने शिखंडी के सामने तीर चलाना उचित नहीं समझा और युद्ध की दिशा बदल गई.
शिखंडी को आज तक अनेक नामों से जाने जाने वाले किन्नर समूह समाज का महत्वपूर्ण अंग रहा है. इस समुदाय के मित्रों ने युद्ध लड़ा, दान दिया, वीर सैनिकों का सम्मान किया. रक्तदान किया. साम्प्रदायिकता से अछूता यह समाज शुभ कार्य की शोभा बढ़ा देता है. जनता को मनोरंजन देता है.
बचपन की हिजड़ा मौसी आबा हमें याद है. कबीटपुरा, कबीट के नीचे वो बड़ा सा डब्बा लेकर बैठती थी. जो महिला अपना लाड़ला लेकर पैदल निकलती मौसी आबा उसे डिब्बे से मु_ीभर सूखा मेवा कभी फल, चना-चुरंजी देती. बच्चे प्रणाम करते. वो ढेरसारा आशीर्वाद देती, सिर पर हाथ रखती, जीवाजीगंज के लोगों में लोकप्रिय थी. प्रकृति की देन के साथ कई किन्नर बड़े माननीय सम्मानीय परिवार के सुशिक्षित युवा निकलते हैं. याद है एक किन्नर तो महापौर भी रही है. विधायक का चुनाव भी लड़े हैं.
भारत की धार्मिक नगरी बड़ी दीदी तिलभर सबसे बड़ी धार्मिक नगरी अवंतिका में ही गत सिंहस्थ में इनके अखाड़े को मान्यता दी है. इनकी शाही सवारी निकली थी. हमारे शैव और वैष्णव अखाड़ों ने ‘‘श्री हरि वैष्णव वैश्विक संघ’’ के नाम से जाने जाते हैं. जनसुनवाई के दिन कलेक्टर श्री आशीष सिंह के सामने किन्नर खड़े हो गए.
जनता की सुनवाई और निराकरण बद्ध कलेक्टर ने उतरकर सस्नेह सुना और ७० हजार रुपये की चैक राशि का लिखित वादा किया. फिर चारपहिया चढ़े गए. व्यवस्था की लापरवाही से अनेक दुखी होते हैं. कलेक्टर को पता नहीं कि कितनी आरआरसी की वसूली नहीं हो रही है. तहसीलदार की टीम के कारण सरकार बदनाम होती है.
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संत रैदास महाराज जयंती हमारे मन में बाल्यकाल से बसी है. उनका आना और हमारा डांडा गाडऩा. आपकी माघ पूर्णिमा स्नान दान पुण्य सरिता की डुबकी और हमारे मित्र कुल्हाड़ी ढूंढते जंगल जाते और चंदन काट लाते.
पुरानी उज्जयिनी के भैरुनाले पर रैदासजी मंदिर धर्मशाला (तब बनी नहीं थी) मैदान पर डांडा गाड़ते शाम रैदासजी के भजन ढोलक पर गाये जाते और डांडे की पूजा के साथ होली की तैयारी शुरू हो जाती.
तुम चंदन हम पानी.
डांडा गाड़ पूर्णिमा माद्य पूर्णिमा पर एक मास का स्नान पूर्ण हो जाता था तो दाल-बाट-चूरमा का आनंद आता था. नई बस्ती अर्थात ठा. शिवप्रतापसिंह ब्रिज के इधर डांडे दिखे ही नहीं. आज भी त्योहार का आनंद तो देवासगेट-इंदौरगेट से कार्तिक चौक, सराफा, अब्दालपुरा, नयापुरा, पीपलीनाका, अंकपात, दरवाजा क्षेत्र में मिलता है. पुलिया के पार उजाड़ रेगिस्तान इधर धुमाल, हरियाली, सरोवर, धर्म, शांति, सुकून मिलता है. अवंतिका में सेवानिवृत्त श्रीमानों के भवन अधिक मिलेंगे. समरसता का भक्ति रस बहाने वाले सबकों गले लगाने वाले जगताचार्य रामानंदजी ने कोयला खदानों में मोती चुने. ऐसे हीरे बनाये जिन्होंने समाज को चमकाया कुरीतियों को दफनाया.
रामानंद मोही गुरु मिल्यो, पायो ब्रह्मविसास।
रामनाम अमीरत पिओ, रैदास ही भयौ पलास।।
रैदासजी ने अवतार लिया तब खेत सूख जाते हैं. फसल आ जाती है. पत्ते सूख जाते हैं तब जंगल सुर्ख लगता है क्योंकि पलास खिलता है. पलास का खिलना मधुमास का आना होली के गीत फडक़ती ढोलक पर अलापना. मन को मस्त कर देता है. संतों में रैदासजी सदैव मनमोहक पलास रंग में रहे रहते हैं.
रैदास कहै जाके ह्रदै, रहे रैन दिन राम।
सो भगता भगवंत सम क्रोध न व्यापै काम।।
रैदासजी के करीब जो गया वो रंगीन हो गया. रंग खेलता रहा होली मनाता रहा.
मेवाड़ की महारानी मीराबाई सामने बैठ गई तो रंगमय हो गई. गुरु पा गई.
‘‘प्रभुजी तुम स्वामी हम दासा’’
मीराबाई गाने लगी;
रैदास संत मिले मोहि, दीन्ही सुरत सहदानी।
मैं मिली जामा पाय पिये अपना, तब मोरी पीर बुझानी।।
संत प्रेमानंद जी ने रैदासजी को जीवन यापन में कठिनाई आने पर पारस पत्थर का उपयोग करने के लिये दिया था. प्रेमानंद जी ने झोपड़ी में कपड़े में लपेट फंसा दिया. बोल गए. रैदास संकट में उपयोग कर लेना. उपवास कर मत सो जाना. सबको भोजन कराना.
स्वामी प्रेमानंदजी एक-दो वर्ष बाद लौटे तो देखा. रैदास ने पारस का उपयोग कभी नहीं किया. वैसे ही जूते सीने में जो मिलता उससे गुजारा कर लेते. स्वामी प्रेमानंद जी श्रद्धाभिभूत हो उठे.
स्वामीजी को लगा कि रैदास वास्तविक अर्थ में देवी संपदा से युक्त है. सच्चे साधु हैं. महात्मा हैं. स्वामीजी आत्मविभोर होकर रैदास के संमुख नतमस्तक हो गए. चितौड़ की झाली रानी ने रैदासजी को गुरु मान दीक्षा ग्रहण की. उनका हाथी पर जुलूस निकाला और एकमास तक गुरु सेवा की. अपार स्वर्ण मुद्रा भेंट की. जब चितौड़ से बिदा ले रैदासजी काशी को प्रस्थान किया तो कुछ भी साथ लाने से मना कर दिया. जैसे गए थे वैसे लौट आए.
वे आर्थिक अलिप्सा निरीहता त्यागशिलता की मूर्ति थे. संतशिरोमणि रैदासजी की जयंती भव्य रूप से मनाई. शानदार चल समारोह निकला. लेकिन संतजी का जीवन जीने का भाव कितने अनुयाइयों ने अपने जीवन में उतारने का प्रण लिया?
प्रभु तुम दीपक हम बाती।
जाकी जोति बरै दिन राती।।
प्राथमिक शाला से कालेज तक रैदासजी को पढ़ा समझा उनके पद पूजा में गाए लेकिन भक्त शिरोमणि रैदासजी को ‘‘रविदासजी’’ क्यों कहा जाने लगा समझ में नहीं आया. रैदासजी को रविदासजी कहो और भी नाम चाहो दो हमें सब स्वीकार है.
हमने कल्याण का भक्त गायक संतों का अंक पढ़ा लेकिन भक्त शिरोमणि महात्यागी रैदास को रविदास कहीं नहीं पढ़ा.
हां! एक संत रवि साहेब जी का उल्लेख है जो गुजरात गणछा ग्राम के संवत १८०० के हैं. रामनाम के महाउपासक थे.
राम नाम बिना नहिं निस्तारा रे
जाग-जाग मन. क्यू सोता
जागत नगरी में चोर ना लूटे. झक मारे जमदूता रे
संतश्री रवि साहेब ने सैकड़ों भक्ति पद लिखे.
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