शहर का चक्करः अवंतिका में बगलामुखी मां : शिक्षकों ने ताला तोड़ा : कलेक्टर बने जनसेवक

नमो नमो पीतांबरा भवानी,
बगलामुखी नमो कल्याणी।
भक्त वत्सला शत्रु नशानी,
नमो महाविद्या वरदानी।
कोरोना आया और लाकडाउन लगा. तभी मां पीतांबरा अवंतिका नगरी की धर्मप्राण जनों का कष्ट निवारण हेतु आई और उज्जयिनी के उत्तरी भाग पावन क्षिप्रा के किनारे आम्रकुंज में मलंग बाबा के साधना स्थल पर ठहर गई.

मृत्युलोक के महाराजाधिराज महाकालश्री दक्षिण में विराजमान है तो उत्तर में विक्रांत और भैरव मंदिर के सामने मां बगलामुखी महाविद्या साधना में रत हो गई.

जग में केवल तुम्हीं सहारा
सारे संकट करहुं निवारा.

उज्जयिनी के उत्तरी छोर सीमा मंत्र साधना स्थली है. क्षिप्रा तट स्थित ऋणमुक्तेश्वर, बृहर्तरी, मत्स्येंद्रनाथ, महाकाली, काला-गोरा भैरु, काल भैरव, विक्रांत भैरव मंत्र तंत्र साधना सिद्ध करने के पावन स्थल हैं. शमशान घाट महावीर दुर्गादास जी की छत्री से गंगाघाट श्रद्धेय मौनी घाट तक गढक़ालिका क्षेत्र तंत्र मंत्र सिद्ध साधना स्थल में मां बगलामुखी का एक साला मंदिर जुड़ गया है.

इस नाथ सम्प्रदाय के समाज जागृत सेवा कार्य प्रमुख उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री गोरक्षा पीठाधीश्वर महंत योगी श्री आदित्यनाथ महाराज विशाल उत्तरप्रदेश को भयमुक्त बनाने में लगे हैं.

२ अप्रैल को एक साल साधना पर्व आयोजित था ११०० दीप जगमगाए.
कोरोना होने से विशिष्टजन भक्तगण ही उपस्थित हुए.
गौरखनाथजी मत्स्येंद्रनाथ पिंगला भृर्तहरि को मालवा के माच में सुना जाना. माली समाज के कलाकार रात १२ बजे से सुबह पांच बजे तक ढोलक फडक़ाते गाते थे. हम सुनते थे. बाबा डबराल जी ने अभी प्रमाणित कर दिया और विक्रांत भैरव को जगत प्रसिद्ध कर दिया.
३ अप्रैल शनिवार को पौत्री परी के आग्रह पर नलखेड़ा दर्शन करने गया. लौटते उज्जयिनी के एक साला मां बगलामुखी मंदिर ले गया. बिटिया प्रसन्न होकर बोली. अब तो यहीं दर्शन करने आयेंगे. इतनी दूर क्यों जाएं?
पावन अवंतिका में सभी धर्म देव विराजित हैं. अब मां बगलामुखी भी भक्तों की सुरक्षा के लिए आ गई है. उज्जयिनी सहित मालवा खण्ड को अब कोई नजर नहीं लगा सकता. दस महाविद्या में बगलामुखी आठवीं महाविद्या है. इनका प्राकट्य सौराष्ट्र क्षेत्र माना जाता है. हल्दी रंगजल से प्रकट होना माना जाता है. इसलिए पीताम्बरा देवी भी कहते हैं. स्वर्ण क्रांति युक्त छबि, तीन नेत्र, चार हाथ, सोने का सिंहासन, पीला परिधान, सदा बिखरती मुस्कान का स्वरूप आकर्षिक करता है.
एक वर्ष में भव्य मंदिर विकास कर रहा है.
अष्टाधिक चत्वारिंश दण्डाढया बगलामुखी।
रक्षां करोतु सर्वत्र गृहेरण्ये सदा मम।।
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खोद खोद मूषक मरे,
रहने लगे भुजंग.
जिला प्रशासक-पुलिस प्रशासक और नेताओं ने विक्रम विश्वविद्यालय को चक्रम बना दिया है. जो चाहे वो विविवि के भवनों में घुस जाता है. आश्चर्य तो यह है कि कुलपतिजी दम के साथ अधिकार का उपयोग नहीं करते हैं. अथवा यूं कहो कि संबंधों को मधुर करने में लग जाते हैं. प्राध्यापकगण शहर मेें रहते हैं.
राजनीतिक दलों के विधायक-सांसद शारदा भवनों का राजनीति में उपयोग करते हैं. क्या जनप्रतिनिधि बनते ही नेता विशेष योग्यताधारी हो जाते हैं?
शिक्षक संघ के साहसी सदस्यों को बधाई. एकत्र हो नारे लगाए. कोरोना के नियम का पालन किया. प्रदर्शन किया. भवन आवंटन का कोई निश्चित नियम नहीं है. जो फुफकारता है डरा देता है. घुस जाता है.
सरस्वती के भवनों में तुम्हारा क्या काम है? अपना बेटा तरसे पड़ोसी के बच्चों को जलेबी खिलाए. वाह रे विश्वविद्यालय के प्रशासन का कमाल.

पुलिस साहब हो अथवा नेताजी रहवासी भवनों के परिसर को पावन नहीं रख सकते. प्रदूषित अवश्य कर सकते हैं.

शिक्षक संघ के सदस्य दमदार हैं इसलिए अध्यक्ष कानियाजी, मीणा ने मैदान संभाल लिया. ताला तोड़ा बहुत अच्छा किया. शारदा मां के अंगना में तुम्हारा क्या काम?

एसपी साहब को चाहिए अपने विभाग के अधिकारी को परिसर के निवास को तुरंत रिक्त करा दे. राजनेताओं का प्रवेश प्रतिबंध कर दे. माननीय राज्यपालजी जो कुलाधिपति भी माने जाते हैं शिक्षक संघ के निवेदन को अविलंब स्वीकार कर ले. विश्वविद्यालय क्षेत्र में तो शारदा भक्तों को ही रहना चाहिए. पर्यावरण विशुद्ध रहे.
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वृक्ष जब फलबहार से भर जाता है झुक जाता है. जो चाहे आसानी स्वाद ले सके. इसे बड़े लोग वृक्ष की विनम्रता कहते हैं.
जब कोई सर्वअधिकार संपन्न अफसर स्वयं को जनसेवा को समर्पित हो जाता है तो लोकप्रिय हो सालों याद किया जाता है.
हमे स्मरण है. नीलकण्ठजी बुच, श्री सिंगल और आपातकाल के कलेक्टर श्री विष्णुप्रतापसिंह कुछ नाम भूल रहा हूं. यह सब इतने सहज सरल थे कि जननेता हो गए थे.
नौकरी इसीलिए ही की जाती है कि परिवार चलाने को वेतन मिले और जनता के काम आए.
वर्तमान कलेक्टर कोरोना काल में समर्पण भाव से लोग सेवा में लगे हैं. अच्छा है जीवन को सार्थक कर रहे हैं. यह भी सच है अधीनस्थ अधिकारी गच्चा देने में कम नहीं. हमारा कभी प्रत्यक्ष परिचय नहीं है. आवश्यक भी नहीं है. सूरत और नाम से नहीं कर्म से परिचय होता रहता है.
हां! आशीषसिंह जी साहब हैं. जो व्यक्ति के जीवन सुरक्षा के लिए जी तोड़ काम करते. मानव सेवा ही प्रभु सेवा है.

वे अचानक कहीं भी पहुंच जाते हैं. ढोल की पोल का पता लगा लेते हैं.
विभिन्न कालोनियों में बने कंटेनमेंट झोन जाकर निरीक्षण करते हैं. व्यवस्था सुधार करते हैं. बहुत ही संवेदनशील कर्म करते हैं. कोरोना पाजीटिव मरीजों के घर पहुंच बाहर से हालचाल पूछते हैं. परिवार के सदस्यों को मास्क पहनने की याद दिलाते हैं. परिजनों से व्यवस्थाओं की कमी पूछ लेते हैं.
मिस्टर कलेक्टर लगे रहो प्रभु सेवा करते रहो. अधिकार जन हिताय हो
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