शहर के जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों ने शहर को एक बार फिर लॉकडाउन की ओर धकेल दिया है। शहर में एक बार फिर 10 दिन का लॉकडाउन लग चुका है। इस लाकडाउन का सीधा-सीधा असर रोज कमाने वाले गरीब आदमी पर पडऩा है। साथ ही साथ इसका सीधा-सीधा असर उच्च मध्यमवर्गीय परिवार पर भी पडऩा है। जो महीने की वेतन आदि पर अपना जीवन यापन कर रहा है। 10 दिन यदि कोई कर्मचारी काम पर नहीं जाएगा तो निश्चित रूप से उसका मालिक उसे वेतन नहीं देगा।
साथ ही साथ ऐसी स्थिति में गरीब और मध्यमवर्गीय लोगों को घर चलाने में भी दिक्कत आएगी। सब्जी भाजी और दूध जैसी रोजमर्रा की चीजों के लिए गरीब आदमी के पास कोई राशि उपलब्ध नहीं रहेगी। बंद कमरे में बैठकर निर्णय लेने वालों ने निर्णय ले तो लिया है।
किंतु उन्होंने कभी यह नहीं सोचा कि एक ठेला चलाने वाला, जूते-चप्पल सुधारने वाला, सब्जी बेचने वाला, मजदूरी करने वाला, आखिर इस लाकडाउन के दंश को कैसे झेलेगा।
सबसे मजेदार बात यह है लॉकडाउन करने का निर्णय वह जनप्रतिनिधि लेते हैं जो कभी भी अपने घरों से गरीबों को एक रोटी की मदद करने की उम्मीद नहीं रखते हैं।