पुलिस की बेजा कार्रवाई से ग्रामीण परेशान
झाबुआ। कोरोना महामारी के चलते प्रदेश के साथ आदिवासी बहुल झाबुआ जिला भी 16 अप्रैल से लॉकडाउन था। 45 दिनों पश्चात कोरोना के प्रकरणों में जब राहत मिलने लगी तो राज्य सरकार के आदेश व जिला कलेक्टर की गाइड लाइन अनुसार जिले की जनता को भी 1 जून को लॉकडाउन खुलने पर राहत मिली व दो जून की रोटी की जुगाड़ में मजदूर से लेकर व्यापारियों ने भी चैन की सांस ली।
आदेश कुछ स्प्ष्ट नही
-जिला आपदा प्रबंधन समिति की बैठक के बाद कलेक्टर सोमेश मिश्रा द्वारा जारी आदेश में जहां अभी कई मुद्दे अष्पष्ट है। जिससे अनेक व्यवसायी पेशोपेश में बैठे हैं। उक्त आदेश में प्रतिबंधित व खुलने वाले व्यवसाय में अनेक व्यवसाय के बारे में शपष्ट आदेश निर्देश नहीं है। जैसे चाय की होटल, शीतलपेय, हेयर सेलून जैसे व्यवसाय के बारे में निर्देश न तो प्रतिबंध में है न व्यवसाय करने में है। जबकि इन छोटे व्यवसाय के परिवार का पालन पोषण इसी पर निर्भर है।
शीतलपेय में आइसकेन्डी के कुल्फी, आइस्क्रीम के व्यवसाय को भले प्रतिबंधित श्रेणी में रखा जाय परन्तु आम रस व गन्ने के रस के विक्रेताओं को छूट इसलिए दिया जाना चाहिए कि वर्तमान में इनके व्यवसाय के सीजन का दौर होकर यह वर्ष में केवल 3 माह ही अपना व्यवसाय कर गुजारा करते हैं और इस समय गन्ना व आम की सीजन है। जो इस माह के अंत में खत्म हो जाएगी।
इन व्यवसायियों का पिछला वर्ष भी इसी तरह कोरोना महामारी में गुजरा व आर्थिक स्थिति खराब हुई और फिर इनका व्यवसाय भी डिस्पोजल पर चलता है। जिससे संक्रमण फैलने का खतरा नहीं होता है ठीक इसी तरह चाय की ठेला गुमठी लगाकर व्यवसाय करने वाले को भी डिस्पोजल के साथ व्यवसाय करने, दुकान के बाहर ही भीड़ न कर चाय बेचने की अनुमति दी जाने चाहिए।
जब होटल रेस्टोरेंट (भोजन) को अनुमति है तो इन छोटे व्यवसाय वालों को भी शर्तों के साथ अनुमति दी जाना चाहिए। जिससे वे अपने परिवार का गुजारा कर सकें। एक ओर रेडीमेड वस्त्रों के दुकानदार व्यापार कर रहे हैं तो कपड़ा व बर्तन व्यवसायी पर प्रतिबंध होने से इस वर्ग के व्यापारियों में भी इस आदेश से आक्रोश फैल रहा है।
जिले के हर क्षेत्र से मजदूर इस कोरोना संकट के दौर में भी मजदूरी के लिए गुजरात जा रहे हैं व आ भी रहे हैं। वहीं भिंड, ग्वालियर से लेकर उत्तरप्रदेश के अनेक शहरों की बसें जिले से बेधडक़ गुजर रही है । जबकि स्थानीय स्तर पर यात्री बसों के चलने पर रोक लगाई गई है।
जिला परिवहन अधिकारी व जिला प्रशासन द्वारा मजदूरों को लेकर गुजरात जाने आने वाली बसों पर भी शर्तों के साथ निर्देश देकर कार्रवाई करना चाहिए जैसे कि निजी चार पहिया वाहन के लिए क्षमता से आधी सवारी का आदेश है इस तरह का प्रतिबन्ध इन बसों पर क्यों नहीं?
यात्री बसों पर प्रतिबन्ध का आदेश अधूरा क्यों?’
राज्य शासन व जिला प्रशासन दोनों के आदेश-निर्देश में संक्रमण न फैले इस हेतु यात्री बसों के संचालन पर प्रतिबंध लगाया गया है। वहीं निजी चार पहिया वाहन में ड्राइवर के अलावा पीछे की सीट पर केवल दो ही यात्री यात्रा कर सकते हैं। परन्तु मजदूरों को लेकर जाने व लाने के लिए जिले के हर क्षेत्र से व बाहर से प्रतिदिन यात्री बस गुजरात के लिए चल रही है। इन बसों में 60 से 70 व और अधिक तक सवारियां भरी जा रही है। जिसमें अधिकांश यात्री यहां तक कि चालक-परिचालक तक मास्क का उपयोग नहीं कर रहे है। जिससे संक्रमण फैलने का ज्यादा खतरा बना रहता है। परन्तु इन बसों पर रोक नहीं है जो जिले की हर सीमाओं व है क्षेत्र के कस्बो नगरों से गुजर रही है।
चालानी कार्रवाई बन्द हो
कोरोना महामारी के दौर में डेढ़ माह (45 दिनों) से लॉकडाउन के कारण शहरी क्षेत्र ही नहीं अपितु ग्रामीण अंचल के गरीब मजदूर वर्ग बेरोजगार होकर मुसीबत के दिन निकालने पर मजबूर हैं। परन्तु लॉक डाउन खुलने पर अब वे मजदूरी करने गांवों से दुपहिया वाहनों से आने लगे हैं। परन्तु उन्हें पुलिस की उन बेजा कार्रवाई से गुजरना पड़ रहा है जिसमें उन्हें चालान, बनाने व आर्थिक दंड भरने पर मजबूर होना पड़ रहा है। वर्तमान में यात्री बस बन्द होने से एक गांव व फलिये से 2 के बजाय 3 को भी बैठकर आना मजबूरी बनी हुई है तो इस संकट के दौर में पुलिस विभाग को भी थोड़ी मानवीय बरतना चाहिए। परन्तु चालान का दौर ऐसा चलाया जा रहा है कि मोटर व्हीकल एक्ट पूरा लागू किया जाकर टूटी इंडिकेटर, साइड ग्लास नहीं, नम्बर प्लेट नियम अनुसार लिखी नहीं, जैसे मामलों में भी उनकी मजदूरी की आधी राशि चालान में जमा हो रही है। सब्जी विक्रेता समय से 15 मिनट लेट हो रहा या रास्ते में किसी को सब्जी देने रुक गया तो उनके काटे-बाट तराजू उठा लाना व दंड की राशि वसूलना कहा तक उचित है। जिला पुलिस अधीक्षक से गरीबों का आग्रह है कि इस विषम संकट के दौर में इस तरह की कार्रवावई पर रोक लगाने के निर्देश जारी करे तो गरीब मजदूर वर्ग को राहत मिलेगी।