परिवर्तित कर्मचारी बीमा चिकित्सालय में व्यवस्था के अभाव में तोड़ रहे दम नवजात
देवास। कोरोना की तीसरी लहर की आशंका बनी हुई है। कलेक्टर चन्द्रमौली शुक्ला भी पिछले दिनो इसे लेकर मीडिया कार्यशाला में आशंका जता चुके है। बच्चो के लिये खतरनाक बतायी जा रही इस तीसरी लहर से निपटने के लिये रणनीति बनायी जा रही है। सतर्कता, सजगता बनाएॅ रखने की समझाइश दी जा रही है, लेकिन देवास में बच्चो के लिये जानलेवा बताई जाने वाली कोरोना की तीसरी लहर से पूर्व ही जन्म लेने वाले शिशुओं की जान पर बन आई है। उज्जैन रोड स्थित कर्मचारी बीमा चिकित्सालय में व्यवस्था के अभाव में नवजात शिशु जन्म तोड़ रहे है।
बीते मार्च, अप्रैल में कोरोना की महामारी ने जब भयावह रूप धारण कर लिया था। शासकीय एवं निजी चिकित्सालयों में जब मरीजो को भर्ती करने के लिये जगह कम पडऩे लगी थी। जिला प्रशासन एवं क्राइसिस कमेटी द्वारा महात्मा गांधी जिला चिकित्सालय को पूर्ण रूप से कोरोना ग्रस्त मरीजों के लिये बनाये रखते हुए प्रसूती सहित अन्य बीमारियों का उपचार कर्मचारी बीमा हॉस्पिटल में परिवर्तित कर दिया गया था।
जिला प्रशासन द्वारा उपचार का स्थान तो परिवर्तित कर दिया गया, लेकिन वहां आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध नहीं करायी गयी। जिसके कारण जन्म लेने वाले शिशुओं एवं प्रसूताओं की जान संकट में फंसी हुई है गौरतलब है कि जच्चा की प्रस्तुति करवाने वाली डॉक्टर्स, नर्सेज एवं मेडिकल स्टाप पर किसी प्रकार की लापरवाही का आक्षेप नहीं है। डॉक्टर्स, नर्सेस द्वारा अपनी और से सुचारू एवं सफल प्रसुति के लिए भरपूर प्रयास किये जा रहे है, लेकिन प्रसूति के पश्चात जन्म लेने वाले बच्चे के स्वास्थ्य में किसी प्रकार की परेशानी हो तो उपचार के लिये उसे तुरंत जिला चिकित्सालय रैफर किया जाता है।
हर तीसरे-चौथे शिशू को एमजीएच किया जा रहा रैफर
स्थिति यह है कि हर तीसरे-चौथे बच्चे को रेफर किया जा रहा है। शहर के यातायात को पार करते हुए 108 एम्बुलेंस या अन्य चार पहिया वाहन से कर्मचारी राज्य बीमा चिकित्सालय से जिला अस्पताल तक ले जाने में करीब 15 मिनट लग जाते है। जिला अस्पताल में वाहन से उतारकर भागते हुए भी आईसीयू कक्ष तक ले जाने एवं डॉक्टर द्वारा देखने या जांच करने तक करीब 20 मिनट का समय लग जाता है। यह समय नवजात शिशुओं पर भारी पड़ रहा है।
विगत दिवस प्रतिभा पति धीरज सेन ने कर्मचारी बीमा चिकित्सालय में ऑपरेशन के माध्यम से बेटी को जन्म दिया। शिशु की सांस नली एवं फेफड़ों में समस्या थी। डाक्टर ने कहा इसे तुरन्त जिला चिकित्सालय ले जाया गया, परिजन तुरन्त दौड़ते हुए 108 एम्बुलेंस के माध्यम से लेकर गये, लेकिन कर्मचारी बीमा हॉस्पिटल से जिला अस्पताल ले जाने के बीच खर्च हुए करीब 20 मिनट का समय शिशु पर भारी पड़ गये।
एमजीएच के आईसीयू में डॉक्टर ने शिशु की धडक़न को चैक किया और अफसोस प्रकट करते हुए शव परिजनो को सौंप दिया गया। परिजन रोते हुए शिशु को लेकर कर्मचारी बीमा हॉस्पिटल लाये और एक घंटे तक गेट पर बैठकर बिलखते रहे, इसके पश्चात मुक्तिधाम जाकर अंतिम संस्कार किया।
ऑपरेशन के कारण जन्म देने वाली पांच दिन तक अस्पताल में भर्ती मां बच्ची को देखने की जिद करती रही, लेकिन परिजनों द्वारा उसके स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए प्रसुता को नहीं बताया गया कि उसकी बच्ची जन्म लेते ही व्यवस्था के अभाव में वापस चली गयी।
जिला प्रशासन, स्वास्थ्य विभाग एवं जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों को इस और तुरन्त ध्यान दिया जाकर परिवर्तित बीमा चिकित्सालय में सम्पूर्ण व्यवस्था उपलब्ध करवायी जानी चाहिए, ताकि जन्मने वाले नवजात शिशुओं पर से मौत के संकट टल सके…।
इनका कहना है
जिला चिकित्सालय कोविड-19 के मरीजो से लगभग खाली हो चुका है। हम शीघ्र ही पुन: कर्मचारी बीमा चिकित्सालय में की गयी प्रसूति एवं उपचार की समस्त अस्थायी व्यवस्थाओ को जिला चिकित्सालय में शिफ्ट कर रहे है। -डॉ. एम.पी.शर्मा, मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी