उज्जैन निवासियों के कंठों की प्यास बुझाने वाला 2250 मिलियन क्यूबिक फुट (एमसीएफटी) क्षमता वाला गंभीर बांध जो शहर से 16 किलोमीटर दूर स्थित है अपनी आयु के 30 वर्ष पूर्ण कर चुका है। अभियांत्रिकी भाषा में कहें तो गंभीर बांध जवानी की आयु पूरी कर वृद्धावस्था की ओर बढ़ चला है।
तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव एवं मध्यप्रदेेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा जी की मौजूदगी में सन 1991 में इसका लोकार्पण हुआ था। मध्यप्रदेश के इतिहास का यह इकलौता बांध है जिसे सिंचाई विभाग ने न बनाकर लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ने एक चुनौती के रूप में स्वीकार कर बनाया था।
बांध के लोकार्पण समारोह के दौरान यह बताया गया था कि यदि लगातार 3 वर्षों तक भी वर्षा नहीं हो तब भी उज्जैनवासियों को पानी की आपूर्ति निर्बाध रूप से जारी रहेगी, साथ ही आने वाले 50 वर्षों के लिये उज्जैन की जलप्रदाय व्यवस्था के समाधान की बात कही गयी थी। उज्जैन की भोली भाली जनता ने इन बातों पर विश्वास भी कर लिया था। 1991 में शहर की प्यास बुझाने के लिये 4 एमसीएफटी पानी की आवश्यकता होती थी जो अब 30 वर्षों में बढक़र 9 एफसीएफटी हो गयी। तब शायद 8-10 उच्चस्तरीय पानी की टंकियां हुआ करती थी। जिनकी संख्या अब बढक़र 48 हो गयी है।
990 हेक्टेयर भूमि पर निर्मित गंभीर बांध का जलसंग्रहण क्षेत्र लगभग 1152 वर्ग किलोमीटर है जिसमें से 538 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र उज्जैन जिले का है शेष इंदौर जिले का है। गंभीर बांध के साथ विडम्बना यह है कि बांध का संधारण तो पीएचई (खंड) मप्र शासन करता है, बांध में भरा पानी नगर निगम उज्जैन के अधीन पीएचई (संधारण) लेकर शहर को प्रदाय करता है। देखा जाये तो बांध का मालिक मध्यप्रदेश शासन है, परन्तु बांध में भरे पानी की चोरी रोकने का काम निगम के पीएचई अमले को करना होता है।
जिस गंभीर बांध को 50 वर्षों तक के लिये पर्याप्त बताया जा रहा था वह 15 वर्षों तक भी नहीं चल पाया। वर्ष 2003 में इस शहर ने अभूतपूर्व जलसंकट झेला है जब सप्ताह में सिर्फ एक दिन जलप्रदाय होता था। गंभीर बांध का जलस्तर शून्य हो गया था, बांध के जलभराव वाले क्षेत्र में जीपे दौड़ती देखी जा सकती थी, संगीनों के साये में टेंकरों से जल वितरण की नौबत आ गयी थी। ठीक इसी दृश्य की पुनरावृत्ति वर्ष 2008 में भी इस शहर ने देखी है।
यदि वर्षाकाल में गंभीर बांध की जलसंग्रहण क्षमता 2250 एमसीएफटी से 25 गुना से अधिक जल गेट खोलकर बहाना पड़ता है। 3 वर्ष चलने की जगह 12 माह भी नहीं चल पाता है पानी, हर बार उज्जैनवासियों के लिये दो माह भारी पड़ते हैं, लगभग 100-125 एमसीएफटी पानी की कमी रह जाती है। पानी की निरंतर चोरी जो कि 20 किलोमीटर लंबे बेक वाटर के किनारे बसे 40 गांव के किसानों द्वारा की जाती है।
सोयाबीन, गेहूं के अलावा कई प्रकार की उगायी जाने वाली सब्जियों के लिये बांध से रोके गये पानी को ही लिया जाता है। इसके अलावा पानी के दुरुपयोग एवं जगह-जगह फूटी पाइप लाइनों से हजारों गैलन पानी बर्बाद हो जाता है। जिसके कारण जलसंग्रहण क्षमता वर्षाकाल आने के पहले ही दम तोड़ देती है।
क्या हम गंभीर बांध की जल संग्रहण क्षमता 2250 एमसीएफटी से बढ़ा सकते हैं? तो इस प्रश्न का जवाब हां में है। पहला तरीका तो गंभीर बांध की ड्राईंग डिजाईन में ही है हम इसके टापअप को 30 सेंटीमीटर तक ऊंचाकर सकते हैं, जिसमें बिना केचमेंट (जलभराव) एरिया बढ़े जल संग्रहण की क्षमता लगभग 75 एमसीएफटी बढ़ायी जा सकती है इसके लिये हमें सिर्फ खरेट ग्राम स्थित पुलिया को 4 इंच ऊंचा करने की जरूरत होगी। इस छोटे से प्रयास से गंभीर बांध की जल संग्रहण क्षमता 2250 एमसीएफटी से बढक़र 2325 एमसीएफटी हो जायेगी।
दूसरा विकल्प गंभीर बांध के अप स्ट्रीम (ऊपर) में हमारे पास बामोरा, लेकोड़ा, चंद्रावतीगंज स्थित तालाब है जिनमें वर्षाकाल में जल संग्रहण कर लिया जाये और उसे सुरक्षित रखकर आवश्यकता पडऩे पर छोड़ा जाये तो इन तीनों तालाबों का पानी सीधे गंभीर बांध तक पहुंचता है जो 50-60 एमसीएफटी के करीब होता है जो हमें राहत दे सकता है। अदूरदर्शी योजना के कारण नागरिकों के गाढ़े खून पसीने की कमाई के 532 करोड़ रुपये पिछले 15 वर्षों में क्षिप्रा को प्रवाहमान और प्रदूषण मुक्त बनाने में खर्च कर चुकी है परंतु हालात अभी भी वैसे ही हैं।
432 करोड़ का नर्मदा क्षिप्रा लिंक योजना का झुनझुना भी क्षिप्रा को प्रदूषण से नहीं बचा पाया। यदि यह योजना पूरी तरह से सफल होती तो उज्जैन के नागरिकों को यह जलसंकट नहीं झेलना पड़ता।
इन सब हालातों के बीच गंभीर बांध के विकल्प के रूप में क्षिप्रा नदी पर ग्राम आलमपुर उड़ाना और सेवरखेड़ी के बीच प्रस्तावित 1250 एमसीएफटी क्षमता वाले सेवरखेड़ी बांध योजना से ही आशा की किरण नजर आती है। 12 वर्ष पूर्व जल संसाधन विभाग द्वारा 450 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाले सेवरखेड़ी बांध को शासन ने मंजूरी दे दी थी। इस योजना में सेवरखेड़ी, आलमपुर उड़ाना, भंवरी, बोलासा, निकेवड़ी, खोकरिया, सिमलिया, देवराखेड़ी, बिलोदा, सिलोदा, कासमपुर सहित 17 गांवों की 7000 हेक्टेयर जमीन डूब क्षेत्र में जा रही थी।
डेम निर्माण के लिये बड़ौदा की एक कंपनी को आर्डर भी मिल गया था, परन्तु भारतीय जनता पार्टी के एक जनप्रतिनिधि ने पर्दे के पीछे से किसानों के आक्रोश को भडक़ाया और विरोध प्रदर्शन करवाया जिसके फलस्वरूप शासन को अपने कदम पीछे लेना पड़े। मध्यप्रदेश शासन ने सेवरखेड़ी बांध हेतु 450 करोड़ की राशि स्वीकृत कर 100 करोड़ की राशि भी मुहैया करा दी जो परियोजना निरस्त होने के कारण वापस लौटानी पड़ी।
यह बात सोलह आने सही है कि यदि उज्जैन को यह सौगात मिलती है तो किसानों को अपनी कुर्बानी देनी पड़ेगी। 30 ग्रामों के ग्रामीण प्रभावित हो रहे हैं जिसमें से अधिकांश दक्षिण विधानसभा के मतदाता भी हैं, इन्हीं मतदाताओं के नाराज होने के भय से ही नेता अपने हाथ पीछे खींच लेते हैं। परंतु यह सेवरखेड़ी बांध उज्जैन के भविष्य के लिये अतिआवश्यक है।
गंभीर भरोसे लायक नहीं रहा, नर्मदा-क्षिप्रा योजना केवल स्नान तक ही सीमित है संचालन-संधारण इतना मंहगा है कि उसका बोझ सरकारें नहीं उठा पायेंगी। सेवरखेड़ी बांध की योजना को जिसकी जल संग्रहण क्षमता गंभीर की क्षमता 2250 एमसीएफटी के आधे से अधिक 1250 एमएसीएफटी ही है और जिससे बिना बिजली का उपयोग ग्रेवेटी के माध्यम से पानी लाया जा सकता है बहुत जनोपयोगी है। जरूरत है दृढ़ राजनैतिक इच्छाशक्ति वाले जनप्रतिनिधि की जो ‘भागीरथ’ बनने के साथ ही ‘शिव’ की तरह विषपान करने की भी क्षमता रखता है।