एक बहुत लंबे अर्से बाद मेरे प्यारे शहर उज्जैन ने रौनक देखी है। वैसे तो सावन मास के पहले ही दिन से शहर में देश भर के श्रद्धालु आना शुरू हो गये थे परंतु आज सावन के दूसरे सोमवार को तो शहर की रंगत अपने पूरे शबाब पर थी। महाकाल मंदिर की ओर जाने वाले सारे रास्ते खचाखच भरे हुए थे। इंदौर गेट, स्टेशन क्षेत्र, मालीपुरा और महाकाल मंदिर के आसपास की सारी होटलें हाऊसफुल थी, ई-रिक्शा, ऑटो रिक्शा वाले, रेस्टोरेन्ट, भोजनालय संचालकों के चेहरे महीनों बाद खिले हुए देखने को मिले।
प्रशासन ने सिर्फ 5000 हजार श्रद्धालुओं को आनलाईन बुकिंग के माध्यम से महाकाल दर्शनों की अनुमति दी थी परंतु यह घोषणा धरी की धरी रह गयी। लगभग देर शाम तक 50 हजार लोगों ने बाबा महाकाल के दर्शनों का लाभ लिया। शहर की रौनक लौटी, बाजार गुलजार हुए, व्यवसाय चमका यह सब तो सकून देने वाली चीजें हैं पर साथ ही एक अनजाना भय भी उज्जैनवासियों को सता रहा है।
देश में कोरोना के बढ़ते मामले और विशेषकर केरल तथा महाराष्ट्र में कोरोना मरीजों की बढ़ती संख्या चिंता का विषय है। शहर में इस समय महाराष्ट्र सहित अन्य राज्यों से आने वाले धर्मालुओं की संख्या हजारों में है और डर की बात यह है कि बाहर से आने वाले दर्शनार्थियों द्वारा कोरोना गाईड लाईन का बिल्कुल भी पालन नहीं किया जा रहा है, बाहर से आने वाले यात्रियों को देखकर लगता ही नहीं कि पूरा देश कोरोना की भीषण त्रासदी झेल चुका है। सब कुछ भुलाकर आने वाले यात्री सिर्फ आनंद लेने में लगे हैं।
भौतिक दूरी तो बहुत दूर की बात है किसी के चेहरे पर मास्क तक नजर नहीं आ रहा है। कोरोना अभी पूरी तरह से भारत छोडक़र गया नहीं है, वैसे ही चिकित्सा वैज्ञानिक कोरोना की तीसरी लहर का अंदेशा जता चुके हैं, कहीं ऐसा ना हो उत्तराखंड के हरिद्वार की तरह हमारे उज्जैन पर भी कोरोना के विस्फोट का कलंक लग जाए?
जनमैदिनी पर नियंत्रण कर पाना प्रशासन के बस की बात नहीं है। प्रशासन भले ही कागजों पर दावे करे कि वैक्सीनेशन प्रमाण पत्र अनिवार्य है, मास्क लगाना जरूरी है, भौतिक दूरी रखना है, परंतु धरातल पर सारा मामला गड़बड़ है। ना टीकाकरण, ना मास्क, ना भौतिक दूरी। दर्शनार्थियों की लंबी कतार चारधाम मंदिर तक पहुँच रही है, पिछले सोमवार को तो यह कतार त्रिवेणी संग्रहालय तक थी।
निश्चित तौर पर उज्जैनवासियों के लिये यह दृश्य और हालात चिंता का विषय होना चाहिये। बाबा महाकाल से शहरवासियों की रक्षा करने की प्रार्थना के अलावा और कुछ नहीं किया जा सकता है।
एक और बात जो ध्यान देने योग्य है वह है पार्किंग समस्या, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि पुलिस और जिला प्रशासन पिछले सोमवार की तुलना में इस बार अधिक चुस्त और मुस्तैद था। भगदड़ या अराजकता जैसी स्थिति कहीं भी निर्मित नहीं हुयी, दर्शनार्थियों ने संयमित और अनुशासन में रहकर दर्शन किये परंतु वाहन पार्किंग की योजना पूरी तरह ध्वस्त हो गयी।
बाहर से आये वाहनों की रेलमपेल के कारण मंदिर के नजदीक रहने वाले निवासी भी बहुत परेशान हुए, स्थानीय लोगों के आने-जाने में जरूरत से ज्यादा असुविधा हुयी। शासन-प्रशासन द्वारा पार्किंग के लिये तय किया गया स्थान ऊँट के मुँह में जीरा साबित हुआ।
अधिकारियों को यह बात अच्छी तरह समझ लेना चाहिये कि स्मार्ट सिटी द्वारा कराये जा रहे करोड़ों-अरबों के निर्माण कार्य तभी सार्थक होंगे जब महाकाल दर्शनों के लिये बाहर से आया श्रद्धालु अपने वाहन से मंदिर के नजदीक पहुँच पायेगा। मंदिर परिसर विकास के लिये जो भी भूमि रिक्त करायी गयी है या करायी जाने वाली है उन स्थानों पर ज्यादा से ज्यादा जगह पार्किंग के लिये आरक्षित होना चाहिये क्योंकि आने वाले समय में वाहनों की बढ़ती संख्या और अधिक विकराल समस्या का रूप लेगी, एक दो मल्टी लेवल पार्किंग से कुछ नहीं होना वाला है।
पुलिस प्रशासन द्वारा महाकाल जाने वाले मार्गों को बेरिकेडस लगाकर बंद कर देना समस्या का हल नहीं है, आज भी वैसा ही हुआ हरिफाटक पुल जाने वाला मार्ग बंद कर दिया पर बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं को मंदिर जाना किस मार्ग से यह बतलाने वाला कोई बंदा नहीं था बाहर से आने वाले वाहन यहाँ-वहाँ कालोनियों में घूम रहे थे।
जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन में भी सामंजस्य का अभाव था, नगर निगम के कई कर्मचारी ड्यूटी पास होने के बावजूद भी अपने कत्र्तव्यस्थल पर नहीं पहुँच सके क्योंकि ड्यूटी पर तैनात पुलिसकर्मियों ने उनके पास को मानने से ही इंकार कर दिया। जिलाधीश आशीष सिंह जी को चाहिये कि देश के यातायात विशेषज्ञों की मदद लेकर पार्किंग हेतु एक वृहद योजना बनवायें जो कि सिंहस्थ के लिये भी लाभदायक साबित हो, स्मार्ट सिटी के अनुभवहीन इंजीनियरों के बस की यह बात नहीं है।
खैर हर अवसर में सीखने की संभावनाएँ रहती है, सुधार निरंतर रहने वाली प्रक्रिया है। पर मेरा शहर आज की तरह हमेशा ही गुलजार रहे यही दुआ परवरदिगार से करता हूँ।