प्रधानमंत्री बोले- पुरानी बिल्डिंग के इतिहास के साथ यथार्थ को भी स्वीकारना होगा
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार (10 दिसंबर) को संसद भवन की नई बिल्डिंग का भूमिपूजन किया। नए भवन में लोकसभा सांसदों के लिए लगभग 888 और राज्यसभा सांसदों के लिए 326 से ज्यादा सीटें होंगी। पार्लियामेंट हॉल में कुल 1,224 सदस्य एक साथ बैठ सकेंगे। मौजूदा संसद 1921 में बनना शुरू हुई थी, 6 साल बाद यानी 1927 में बनकर तैयार हुई।
मोदी के भाषण की अहम बातें
आज का दिन ऐतिहासिक
आज 130 करोड़ से ज्यादा भारतीयों के लिए बड़े सौभाग्य और गर्व का दिन है, जब हम इस ऐतिहासिक पल के साक्षी बन रहे हैं। आज का दिन भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में मील के पत्थर की तरह है। भारतीयों द्वारा, भारतीयता के विचार से ओतप्रोत भारत के संसद भवन के निर्माण का शुभारंभ लोकतांत्रिक परंपराओं के अहम पड़ावों में से एक है। हम भारत के लोग मिलकर अपनी संसद के नए भवन को बनाएंगे। इससे पवित्र और क्या होगा, जब भारत अपनी आजादी के 75 वर्ष का पर्व मनाएं तो उस पर्व की साक्षात प्रेरणा हमारी संसद की नई इमारत बने। साथियों नए संसद भवन का निर्माण नूतन और पुरातन के सहअस्तित्व का उदाहरण है।
लोकतंत्र के मंदिर को नमन
यह समय और जरूरतों के अनुरूप खुद में परिवर्तन लाने का प्रयास है। मैं वो क्षण कभी नहीं भूल सकता, जब 2014 में एक सांसद के तौर पर पहली बार मुझे संसद में आने का मौका मिला। लोकतंत्र के इस मंदिर में कदम रखने के पहले सिर झुकाकर इस मंदिर को नमन किया था।
पुरानी संसद ऐतिहासिक
हमारे वर्तमान संसद भवन ने आजादी के आंदोलन के बाद स्वतंत्र भारत को गढ़ने में अहम भूमिका निभाई है। आजाद भारत की पहली सरकार का गठन भी यहीं हुआ और पहली संसद भी यहीं बैठी। इसी भवन में संविधान की रचना हुई, लोकतंत्र की पुनर्स्थापना हुई। संसद की मौजूदा इमारत स्वतंत्र भारत के हर उतार-चढ़ाव, चुनौतियों, आशाओं, उम्मीदों का प्रतीक रही है। इस भवन में बना प्रत्येक कानून, संसद में कही गई गहरी बातें हमारे लोकतंत्र की धरोहर हैं।
पुरानी बिल्डिंग विश्राम चाहती है
संसद के शक्तिशाली इतिहास के साथ ही यथार्थ को भी स्वीकारना उतना ही आवश्यक है। ये इमारत अब करीब-करीब 100 साल की हो रही है। बीते दशकों में इसे अपग्रेड किया गया। इस प्रक्रिया में दीवारें तोड़ी गईं, साउंड सिस्टम, आईटी सिस्टम, जगह बढ़ाने के लिए दीवारें हटाई गईं। इतना कुछ होने के बाद संसद का ये भवन अब विश्राम मांग रहा है।
नए भवन में नई व्यवस्थाएं होंगी
सांसदों से मिलने के लिए संसदीय क्षेत्र से लोग आते हैं, तो अभी संसद भवन में लोगों को दिक्कत होती है। आम जनता को अपनी कोई परेशानी अपने सांसद को बतानी है तो इसके लिए स्थान की कमी महसूस की जाती है। भविष्य में हर सांसद के पास ये सुविधा होगी कि वो अपने क्षेत्र को लोगों से पास ही मुलाकात कर सकें। जैसे नेशनल वॉर मेमोरियल ने राष्ट्रीय पहचान बनाई है, वैसे ही संसद का नया भवन अपनी पहचान स्थापित करेगा।
भारत में लोकतंत्र की जड़ें गहरी
लोकतंत्र भारत में क्यों सफल है और क्यों कभी लोकतंत्र पर आंच नहीं आ सकती, ये बात हमारी हर पीढ़ी को जानना-समझाना आवश्यक है। दुनिया में 13वीं शदाब्दी में रचित एक किताब मैग्नाकार्टा की चर्चा होती है, लोग इसे लोकतंत्र की बुनियाद बताते हैं। भारत में बासवेश्वर जी (कर्नाटक) का अनुभव मंडपम इससे पहले ही 12वीं शताब्दी में आ चुका था। उन्होंने कहा था कि अनुभव मंडपम राज्य और राष्ट्र की उन्नति के लिए सभी को एकजुट होकर काम करने के लिए प्रेरित करती है। ये लोकतंत्र का ही एक स्वरूप था। 10वीं सदी के चोल काल में चट्टानों पर पंचायत व्यवस्था उल्लिखित है।