हे कर्मयोगी! तुम्हें शत् शत् नमन

shivpratap shingh (dainik agnipath)

दैनिक अग्निपथ के संस्थापक, पूज्य पिताजी मूर्धन्य पत्रकार ठाकुर शिवप्रताप सिंह जी ठीक आज से 26 वर्षों पूर्व दुनिया को अलविदा कह गये। समय इतनी तेज गति से भाग रहा है कि 26 वर्ष गुजर जाने का पता ही नहीं लगा। वैसे भी दुनिया के इस रंगमंच पर कुछ शख्सयितें सबसे हटकर ही कार्य करने आती है और अपने जाने के बाद अपने पीछे यादों की भीनी-भीनी महक छोड़ जाती है जिसके कारण वह लंबे अर्से तक याद किये जाते हैं। शायद पिताजी ने भी कुछ ऐसा ही जीवन जिया।

सन् 1934 से पत्रकारिता का अलख पूरे देश में जगाने की शुरुआत कलकत्ता से की। उसके बाद नई दिल्ली, मुंबई, नागपुर, अकोला, अजमेर, इंदौर के बाद महाकाल की नगरी को अपना अंतिम आशियाना बनाया। बहुत ही साधारण जीवन जीने वाले, दिखावे और प्रदर्शन से दूर सादा जीवन उच्च विचार के गाँधी जी के सिद्धांतों का अक्षरश: पालन करने वाले ठाकुर साहब पत्रकारों की भीड़ में भी अपनी लेखनी की तेज धार की बदौलत अलग ही नजर आते थे।

उत्तरप्रदेश के जिला रायबरेली के बहुत छोटे से गाँव में जन्मे पूज्य पिताजी ने जीवन भर शोषितों पीडि़तों के लिये अपनी लेखनी चलाई, सामंती, आतंकी प्रवृत्तियों का सदैव प्रतिकार किया, बड़े से बड़ा गुंडा भी ठाकुर शिवप्रताप सिंह के नाम से थर्राता था। इंदौर के पुरानी पीढ़ी के लोग बाबू शुक्ला जिसे डॉन कहा जाता था उसे भी पिताजी ने नाकों चने चबवा दिये थे।

छोटे कद के होने के बावजूद भी 24 इंची ऊँची सायकल की ही मृत्यु पर्यन्त सवारी की। सादगी इतनी कि जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। एक बार नगर निगम के कर्मचारी घनश्याम शर्मा पिताजी के पासे आये। उन्हें तात्कालिक निगम आयुक्त को कुछ विभाग संबंधी कार्य था पिताजी ने आयुक्त को फोन लगाया तो उन्होंने कहा मैं अभी बंगले पर ही हूँ आप आ जाइये। पिताजी निगम कर्मचारी घनश्याम शर्मा की सायकल के पीछे कैरियर पर ही बैठकर आयुक्त से मिलने चल दिये। बाद में निगम आयुक्त को पता चलने पर उन्होंने स्वयं की गाड़ी से पिताजी को घर भिजवाया।

जीवन भर संघर्षों के पथ के अनुगामी रहे पिताजी ने जीवन के उत्तरार्ध में 1 दिसंबर 1989 को ‘अग्निपथ’ को चुना और इसका बीजारोपण किया ताकि उनकी लेखनी की आग की तीव्रता बरकरार रहे। समय के पाबंद ठाकुर साहब के जीवन की एक घटना उज्जैनवासी कभी विस्मृत नहीं कर पायेंगे। वर्षों पूर्व उज्जैन में पत्रकारों के एक संगठन ने स्थानीय विक्रम कीर्ति मंदिर में सात वरिष्ठ पत्रकारों का सम्मान समारोह का आयोजन किया था। उसमें बतौर मुख्य अतिथि तात्कालीन मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा आने वाले थे।

समय चार बजे का निर्धारित किया गया था। ठाकुर साहब निर्धारित समय से 5 मिनट पूर्व ही आयोजन स्थल पर पहुँच गये थे। लगभग 45 मिनट इंतजार करने के बाद पूज्य पिताजी ने उस सम्मान समारोह का बहिष्कार यह कहते हुए कर दिया कि जिस मुख्यमंत्री को समय की कद्र करना नहीं आता हो मैं उनके हाथों सम्मानित नहीं होना चाहता।

ठाकुर साहब का रौद्र रूप देखकर आयोजकों ने काफी अनुनय विनय की परंतु पिताजी नहीं माने और आयोजकों से बोले मेरे साथी कर्मचारी कारखाने (प्रेस को कारखाना कहकर संबोधित करते थे) में मेरा इंतजार कर रहे होंगे। यह कहकर कार्यक्रम स्थल से चले आये। मुख्यमंत्री पटवा जी सवा घंटे देरी से सम्मान समारोह में पहुँचे। तात्कालीन अधिकारियों ने उन्हें सम्मान समारोह की घटना से अवगत कराया।

तब मुख्यमंत्री जी ने अपने भाषण की शुरुआत में ही देरी से आने के लिये सार्वजनिक रूप से माफी माँगी और पिताजी के नाम का उल्लेख किया। दूसरे दिन मध्यप्रदेश शासन के प्रतिनिधि बतौर तात्कालीन काबीना मंत्री बाबूलाल जी जैन और जिलाधीश, संभागायुक्त ने घर आकर शाल-श्रीफल से पिताजी का सम्मान किया और मुख्यमंत्री पटवा जी के अफसोस प्रकट करने की भावना से अवगत कराया।

पिताजी द्वारा रोपित अग्निपथ भले ही अन्य औद्योगिक घरानों के अखबारों की तरह चमक-दमक नहीं रहा हो परंतु फिर भी पूज्य पिताजी जो कि स्वयं पत्रकारिता का विश्वविद्यालय थे उनके चरणों में बैठकर पत्रकारिता सीखे उनकी पत्रकारिता की बगिया के फूल चाहे वह स्व. महेश बागी, क्रांति कुमार वैद्य, राजेन्द्र पुरोहित, नरेश सोनी, एस.एन. शर्मा, सतीश गौड़, संतोष नागर, ब्रजेश परमार, हरिओम राय, कैलाश मिश्र नादान, अंसार अनंत, संदीप पांडला, ब्रज रामावत, प्रशांत अंजाना, रवि मंडलोई, नरेन्द्र सिंह बैस ‘अकेला’, योगेन्द्र सिंह भदौरिया, भूपेन्द्र नकवाल, रामसिंह चौहान, राजीवसिंह भदौरिया, रवि चंद्रवंशी, नेमीचंद भावसार, अरुण चंद्रवंशी, जितेन्द्रसिंह चौहान, कमल चौहान, सुधीर नागर हो। पत्रकारिता जगत में विभिन्न प्रतिष्ठित समाचार पत्रों में अपनी खुशबू से पत्रकारिता को महका रहे थे।

दैनिक अग्निपथ और चंदेल परिवार को अपने संस्थापक पर गर्व है कि भले ही धन संपत्ति के मामले में हम कम हो परंतु पूज्य पिताजी ने पत्रकारिता के क्षेत्र में जो नाम और शोहरत कमाई है वह बड़े-बड़े स्वनाम धन्य बड़े समाचार पत्रों के संपादकों के नसीब में नहीं है।

पुराने शहर को नये शहर से जोडऩे वाला ठाकुर शिवप्रताप सेतु सदैव हमें पूज्य पिताजी की याद तो दिलाता ही है साथ ही समय की पाबंदी, सादगीपूर्ण जीवन और शोषित पीडि़तों की रक्षा के साथ ही अनाचार, आतंक, अत्याचार के प्रतिकार की भी याद दिलाता है।

‘दादा’ की आज भले ही भौतिक उपस्थिति ना हो परंतु उनकी सूक्ष्म मौजूदगी हरदम हमारा पथ प्रदर्शन करती है और जब-जब उन्हें ऐसा लगता है कि हम ‘अग्निपथ’ से जरा भी विमुख हो रहे हैं तब-तब वह हमें सही राह दिखाते हैं। उनका आशीष सदैव अग्निपथ और चंदेल परिवार पर बने रहने के कारण ही हम अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर हो पा रहे हैं।

स्वर्गीय ठाकुर शिवप्रताप सिंह जी की 27वीं पुण्यतिथि पर चंदेल परिवार, अग्निपथ परिवार उनके श्रीचरणों में अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करता है।
– अर्जुन सिंह चंदेल

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