सीएम हेल्पलाइन में सबसे फिसड्डी उज्जैन नगर निगम

नगर निगम

दिसंबर का निराशाजनक परिणाम बना आयुक्त के गुस्से की वजह, 15 को नोटिस जारी

उज्जैन, अग्निपथ। सीएम हेल्पलाइन (181) पर आम नागरिकों द्वारा की जाने वाली विभिन्न तरह की शिकायतो के निराकरण के मामले में उज्जैन नगर निगम की स्थिति मध्यप्रदेश में सबसे खराब स्थिति में पहुंच गई है। दिसंबर महीने की रैकिंग में उज्जैन नगर निगम मध्यप्रदेश की 16 नगर निगमों में सबसे निचले पायदान पर पहुंच गई है। इतनी बुरी स्थिति पहले कभी नहीं रही।

सीएम हेल्पलाइन पर शिकायतों के निराकरण करने वाली एजेंसियों की हर महीने राज्यशासन द्वारा रेटिंग जारी की जाती है। मध्यप्रदेश की 16 नगर निगमों की इस मामले में पृथक से रेटिंग और वेटेज स्कोर जारी किया जाता है। हाल ही के दिनों में शासन ने प्रदेश के सभी 16 नगर निगमों की रेटिंग और वेटेज स्कोर जारी किया।

सबसे अच्छा परिणाम रतलाम नगर निगम का रहा। बुरहानपुर, रीवा, छिंदवाड़ा नगर निगम दूसरे, तीसरे और चौथे नंबर पर रही जबकि सबसे घटिया परिणाम उज्जैन नगर निगम का आया। रिपोर्ट सार्वजनिक हुई आयुक्त अंशुल गुप्ता खासे नाराज हो गए। उन्होंने नगर निगम के सभी 6 जोन के प्रभारियों, सीएम हेल्पलाइन प्रभारी अधिकारी सहित 15 अधिकारियों को शोकॉज नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है।

ऐसा पहली बार हुआ है कि सीएम हेल्पलाइन की शिकायतों के निराकरण के मामले में उज्जैन नगर निगम सबसे फिसड्डी साबित हुई है। दिसंबर महीने की रेटिंग में उज्जैन नगर निगम का वेटेज स्कोर 77.32 प्रतिशत रहा है। यहां 7.27 प्रतिशत शिकायतें अब भी ऐसी है जिनका 100 दिन की अवधि के बाद भी निराकरण नहीं किया गया है।

दिसंबर में उज्जैन नगर निगम को 1028 शिकायतें मिली थी। इनमें से केवल 36.53 प्रतिशत शिकायतों का ही संतुष्टीपूर्ण निराकरण किया जा सका है। 9.84 प्रतिशत शिकायतें ऐसी थी, जिन्हें निम्न गुणवत्ता के साथ बंद किया गया। 9.52 प्रतिशत शिकायतें ऐसी थी, जिन्हें अटेंड ही नहीं किया गया।

टाटा बनी आफत

शहर में सीवरेज लाईन डालने का काम करने वाली टाटा कंपनी सीएम हेल्पलाइन की शिकायतों के मामले में नगर निगम के गले की फांस बनी हुई है। हर महीने सीएम हेल्पलाइन पर जितनी भी शिकायतें होती है, उनसे सबसे ज्यादा शिकायतें सीवरेज लाईन के काम में लापरवाही से संबंधित ही होती है।

टाटा के मामले में निगम अधिकारी भी ज्यादा कुछ नहीं कर पाते, लिहाजा इन शिकायतों को निगम अधिकारियों के स्तर पर टाला ही जाता है। यहीं रेटिंग खराब करने की बड़ी वजह भी बनता है।

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