नाट्य मंचन के साथ हुआ स्व. वकार फारूकी स्मृति नाट्य समारोह का समापन
उज्जैन, अग्निपथ। 22 जून से प्रारंभ हुए स्व. वकार फारूकी स्मृति नाट्य समारोह की समापन संध्या पर 26 जून की शाम ‘चिडिय़ा घर’ का मंचन हुआ। कालिदास अकादमी के अभिरंग नाट्यगृह में मंचित ‘चिडिय़ा घर’ नाटक सामाजिक व्यंग्य पर आधारित रहा जो अंत में राजनीतिक व्यंग्य में बदल गया।
वकार फारूकी नाट्य एवं फिल्म संस्थान उज्जैन द्वारा आयोजित स्व. वकार फारूकी स्मृति नाट्य समारोह में आयोजित इस नाटक में जो आदमी इस नाटक का केंद्रीय पात्र है, वह सीधा सरल, मानवीय और नैतिक गुणों से भरपूर है। लेकिन भ्रष्ट व्यवस्था के दमन चक्र से त्रस्त होकर विद्रोही बन जाता है। इस नाटक की शैली प्रतीकात्मक रही जो दर्शकों को वर्तमान समय और समाज के कई चेहरे और परिस्थितियां दिखा गई। सभी चरित्रों ने भ्रष्ट व्यवस्था को उजागर किया, व्यंग्य में से सहज ही हास्य पैदा होता रहा। लेकिन यह सभी को झकझोरने और तिलमिलाने वाला था। कई प्रश्न खड़े करता है। इस नाटक का अंत जितना पैना है उतनी ही मार्मिक कविता भी है।
सत्य कहने वालों का क्या हश्र होता है, आदमी को जानवर बनाकर पिंजड़े में कैद कर दिया जाता है। इस प्रतीकात्मक नाटक में बहुविध अर्थ खुले जो चिडिय़ाघर और जानवर और आदमी होने के नए आशय को प्रकट कर गए।
इस नाटक में आदमी की भूमिका दिलशाद फारूकी, दूसरा आदमी सूर्यदेव ओल्हन, तगड़ा आदमी किशोर यादव, सिक्योरिटी गार्ड उदित प्रताप सिंह सेंगर. चौकीदार सुभाष नागर, निरीक्षक दीपेंद्रसिंह ठाकुर, सहायक तुषार सोलंकी, अमीर आदती दिलीप अकोदिया, हैप्पी प्रज्वलितसिंह चौहान, सुंदरी 1 चक्षु यादव, सुंदरी 2 सलोनी राठौर, विभिषण विशाल मेहता, सत्यवादी हर्ष मेहता, सुरक्षाकर्मी समीर मालवीय, सुरक्षा कर्मी उदितसिंह सेंगर नजर आए।
मंच निर्माण विशाल मेहता, सूर्यदेव ओलहन ने किया। प्रकाश परिकल्पना ब्रज भूषण उदासी, संगीत अंशुल भटनागर, भविष्य द्विवेदी, गिटार एवं गायन निश्चय धाकड़, ऋषभ, वस्त्र विन्यास सलोनी राठौर, बासूरी चिन्मय, सिंथेसाइजर यथार्थ चौधरी, वस्तु विन्यास हर्ष मेहता, रूपसज्जा पंकज आचार्य, सहायक निर्देशक विशाल मेहता रहे और निर्देशन दिलशाद फारूकी का रहा।