कश्मीर घाटी में नहीं रहे अब 90 के दशक जैसे हालात

कश्मीर घाटी में नहीं रहे अब 90 के दशक जैसे हालात

घाटी से लौटकर अर्जुन सिंह चंदेल

भारत माता के सिर के ताज कश्मीर घाटी में अब सन् 1990 के दशक जैसा भय और आतंक का माहौल नहीं रहा। कश्मीर की वादियों में अब प्यार और अपनत्व की भावना के साथ जगह-जगह शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में भारतीय झंडे शान से लहरा रहे हैं। लेखक के आठ दिवसीय जम्मू-कश्मीर यात्रा के दौरान जो मैदानी हकीकत सामने आयी उससे सुधि पाठकों को रूबरू कराना बहुत जरूरी है।

अपनी कश्मीर यात्रा दौरान कभी आतंकवादियों के गढ़ रहे अनंतनाग, राजौरी, रियासी, उधमपुर, सूरनकोट, नौशेरा, पुलवामा जैसे स्थानों से गुजरने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। अपनी 14 सदस्यीय टीम के साथ टेम्पो टे्रवल्स पर जिस पर शान से भारतीय तिरंगा पूरी यात्रा दौरान लहराता रहा उसे हर स्थान पर कश्मीरियों का प्यार, दुलार, सम्मान, स्नेह मिला।

अपने पत्रकारिता धर्म का निर्वहन करते हुए पूरी यात्रा दौरान होटल मालिक (श्रीनगर) से लेकर गुलमर्ग में संपन्न किसान होने के बावजूद अतिरिक्त समय में घोड़ों की सवारी का कार्य करने वाले मोहम्मद मकबूल भट्ट से कश्मीर समस्या की जड़ से लेकर उसके निदान तक पर लंबी और सार्थक चर्चा की, पूरी आठ दिवसीय यात्रा दौरान कश्मीर के लोगों के आत्मीय प्रेम ने मन को बहुत सकून दिया।

पर्यटकों को बेहद प्यार करने वाले वहां के हर व्यापारी चाहे वह होटल का मालिक हो या डल झील में शिकारा चलाने वाला छोटा सा मजदूर उम्मीद से अधिक आतिथ्य सत्कार देते हैं। मात्र १५०/- रुपये प्रति व्यक्ति के मान से लगभग 2 घंटे तक डल झील की पर्यटकों को सैर कराने वाले रशीद की यह बात कि ‘बाबूजी आप के कुर्ते पर एक भी दाग इस धरती पर नहीं लगने देंगे चाहे इसके लिये हमारे खून की बूँद बहाने पड़ी’ यह सुनकर हमारे सीने गर्व से चौड़े हो गये। और सचमुच उन गरीब शिकारे वालों ने जितना मेहनताना हमसे लिया उससे कहीं अधिक सेवा हमारी की। श्रीनगर में घूमते हुए हर जगह हमें सम्मान और प्यार मिला। श्रीनगर से 80-90 किलोमीटर दूर गुलमर्ग में मेरी मुलाकात मोहम्मद मकबूल भट्ट से हो गयी परिचय होने के बाद उस अनजान मकबूल से गजब का लगाव पैदा हो गया।

मन में घुमड़ रहे सवालों को मैंने दिल खोलकर मकबूल के सामने रख ही दिया। मैंने पूछ ही लिया इतने अच्छे भाइचारे के माहौल के बाद आखिर समस्या क्या है? मकबूल ने एक भारतीय मुसलमान की ओर से जवाब देते हुए बताया कि इस समस्या के पीछे मुस्लिमों के तथाकथित धार्मिक नेता और हमारे देश के राजनेता ही जिम्मेदार हैं।

भ्रष्टाचार व अपने स्वार्थों में लिप्त कुछ मुस्लिम संगठन अपने निजी कारणों से भोले-भाले व गरीब मुसलमानों को बहला-फुसलाकर और बेरोजगार नवजवानों को अपना शिकार बनाकर अनैतिक कार्य करवाते थे जिसके कारण ही कश्मीर पूरे भारत में बदनाम था। और कुछ गलतियां सेना और अर्धसैनिक बलों से भी हुयी जिन्होंने दोषियों के साथ निर्दोष नवयुवकों को भी मौत के घाट उतार दिया जिसके कारण यहाँ ज्यादा गुस्सा और तनाव व्याप्त हो गया था।

वर्तमान हालात पर मकबूल खुश है पर्यटकों को अपना भगवान मानने वाले उस इंसान ने हमें अपने घर जो गुलमर्ग से 20 किलोमीटर दूर है चलने का आग्रह किया और कहा मेरी अखरोट की खेती है आप जितना चाहे ले जा सकते हैं। मकबूल के आतिथ्य प्रेम ने हम सबका दिल जीत लिया।

इसी तरह श्रीनगर में होटल कश्मीर ओरियन्ट के मालिक एम.बी.ए. पास असरार भाई ने बताया कि अब हालात पहले से बहुत बेहतर हैं। धारा 370 समाप्त होने के बाद श्रीनगर में जमीनों के भाव में आग लग गयी है। प्लाटों, दुकानों की कीमतों में 25 से 50 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी हो गयी है। भविष्य में वह कश्मीर की और अधिक खुशहाली की उम्मीद रख रहे हैं।

माता खीर भवानी बूढा अमरनाथ, शिवखोड़ी के दर्शनों पश्चात यात्रा का अंतिम पड़ाव माता वैष्णोदेवी का दरबार था जहाँ जम्मू-कश्मीर की बदहाली की वह तस्वीर नजर आती है जिसे देखकर दिल पसीज जाता है शायद अधिकांश माता के भक्त इस तस्वीर को देख नहीं पाते।

किसी समय माता के दरबार में भक्तों को पहुँचाने के लिये लगभग 12 हजार घोड़े रहते थे जिसमें से अधिकांश मुस्लिम नवजवान थे जो अब घटकर 5-6 हजार के बीच रह गये हें। घोड़ों के खाने की चीजों की बढ़ती महंगाई और उनके रख-रखाव में बढ़ रहे अंधाधुंध खर्च के कारण यह संस्था तेजी से कम हुयी है। मात्र कुछ रुपयों की खातिर यात्रियों को घोड़े पर बैठाकर लगभग 25 किलोमीटर की यात्रा कराने वाले यह मुस्लिम नवजवान कद-काठी से किसी फिल्मी अभिनेता से कम नहीं लगते हैं पर आजादी के 75 वर्षों बाद भी जम्मू-कश्मीर बेरोजगारी का दंश झेल रहा है इस कारण यह दृश्य नजर आ रहा है।

मात्र 3-4 हजार के लिये कश्मीरी नवजवान 4 लोग मिलकर पालकी से देशभर से आये श्रद्धालुओं को माँ के दरबार तक ले जाते हैं। अपने कंधों पर बैठाकर वह 12.5 किलोमीटर की चढ़ायी चढ़ते और 12.5 किलोमीटर उतरते हैं। महीने में कई दिनों उन्हें सवारी भी नहीं मिलती है और फाँके मारना पड़ते हैं।

माता के दरबार से आते समय कई मुस्लिम नवयुवक मात्र 20-20 रुपये में आपके पेरों की मालिश करने के लिये गिड़गिड़ाते नजर आते हैं। तब मन को बहुत तकलीफ होती है और दिल पूछता है क्या यह है मेरा आधुनिक हिंदुस्तान?

90 के दशक में पनपे आतंकवाद के लिये कहीं न कहीं यह बेरोजगारी और सामाजिक, आर्थिक मानसिकता भी जिम्मेदार रही होगी। समय के साथ मानव के आक्रोश ने भी दम तोड़ दिया है अब कश्मीरी ही सेना और अर्धसैनिक बलों को आतंकियों की सूचना दे रहे हैं जिसके कारण घाटी में लगभग 70 प्रतिशत आतंकवादी मारे गये हैं और जो बचे हैं वह मौत के करीब हैं। घाटी के निवासियों का विश्वास अर्जित करने के कारण ही सेना और अर्धसैनिक बल सफलता अर्जित कर रहे हैं। उम्मीद है घाटी से पूरी तरह शांति जल्द होगी।

Next Post

नगर निगम अध्यक्ष के वार्ड में बांटे 24 परिवारों को नोटिस, अध्यक्ष से पूछा तक नहीं

Sun Sep 11 , 2022
नगर निगम में हावी लालफीता शाही, मामला गोवर्धन सागर की जमीन पर अवैध अतिक्रमण का उज्जैन, अग्निपथ। नगर निगम में भले ही कहने को नया बोर्ड बन गया है, महापौर और नगर निगम अध्यक्ष के साथ कुल 55 जनप्रतिनिधियों के हाथ में निगम की कमान आ चुकी है लेकिन लालफीता […]