शहर में शीतलहर का प्रकोप जारी है और नगर निगम द्वारा अलाव की व्यवस्था भी गयी है। वहीं सामाजिक संगठन भी अपने स्तर पर फुटपाथ पर सोने वाले लोगों की व्यवस्था के लिये कंबल सहित ऊनी वस्त्रों का वितरण कर रहे हैं। लेकिन इन फुटपाथ पर सोने वाले लोगों को वहां पर सोने ही क्यों दिया जा रहा है। जबकि इनके लिये सरकार ने रेन बसेरों का निर्माण किया है।
फिर ना जाने क्यों इंदौरगेट से लेकर देवासगेट, पुराना माधव कालेज, बीएसएनएल, चामुंडा माता चौराहा आदि ऐसी जगह हैं जहां पर फुटपाथ पर सो रहे लोगों को आसानी से देखा जा सकता है कि शीतलहर उन पर किस प्रकार सितम ढा रही है। क्योंकि अलाव जलाने के बाद भी उनकी ठंड दूर नहीं हो रही है वह इसलिये कि जलाऊ लकड़ी भी उन्हें सीमित मात्रा में दी जा रही है और ऊनी कपड़ों से तो इतनी ठंड जाती नहीं। क्योंकि शीतलहर में ऊनी वस्त्र तक ठंडे हो जाते हैं।
अगर नगर निगम के आला अधिकारी ऐसे समय में एक बार यदि रेन बसेरों का निरीक्षण कर ले और वहां पर रह रहे लोगों की जानकारी एकत्रित कर ले तो सब कुछ साफ हो जायेगा कि इन रेन बसेरों में निर्धन और मजदूर वर्ग सो रहा है या बाहर से आने वाले यात्री जो कि वहां किराये का भुगतान कर रहे हैं।