नागदा, अग्निपथ। झारखंड में सम्मेदशिखर तीर्थ स्थल को पयर्टक स्थल घोषित करने की अधिसूचना के विरोध में जैन समाज रैली निकालकर राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री एवं झारखंड के मुख्यमंत्री को संबोधित ज्ञापन एसडीएम आशुतोष गोस्वामी को सौंपा।
ज्ञापन में यह भी बताया गया कि प्रकाशित गजट पर हमारी मुख्य आपत्तियाँ अधिसूचना के मुख्य पेज नं. 2 में प्रकाशित है कि ‘पारसनाथ वन्य जीवन अभ्यारण्य‘ का एक भाग जैन धर्म का ‘पवित्रतम स्थल‘ माना जाता है। दुनियाभर से बड़ी संख्या में जैन तीर्थयात्री वहां नियमित रूप से आते है। अभ्यारण्य का सौन्दर्यात्मक महत्व है और वे वन्य जीवन अनुसन्धान और शिक्षा के लिए व्यापक दायरा उपलब्ध कराते है और इनमे संपन्न पारिस्थितिकी पर्यटन(इको टूरिज्म) में मदद करने की काफी क्षमता है।
अनादिकाल से शाश्वत जैन सिद्ध क्षेत्र को वन्यजीव अभ्यारण्य घोषित कर इसके मात्र एक भाग में तीर्थस्थल लिखने और सम्मेद शिखर या 29 जैन तीर्थकरो की मोक्षस्थली न लिखने और माना जाता लिखकर तीर्थ की प्राचीन स्वतंत्र पहचान नष्ट करने का प्रयास, क्यों ? समस्त सकल जैन समाज की ओर से राजेन्द्र कांठेड़, राजेश धाकड, सुनील जैन, प्रकाश जैन सांवेरवाला, हेमन्त कांकरिया एवं मनीष व्होरा ने भारत सरकार से मांग की है कि सरकार के इस निर्णय से सम्मेद शिखर पर पर्यटन स्थल बनाने से पूरे क्षेत्र की पवित्रता और पावनता को झटका लगेगा।
जैन आचार्य एवं समाजजनों द्वारा इसे धार्मिक आस्था पर प्रहार बताया है। सम्मेद शिखर को पर्यटन स्थल न बनाया जाए बल्कि इस पूरे क्षेत्र की पवित्रता गरिमा एवं श्रद्धालुओं की धार्मिक भावनाओं का ख्याल रखा जाए और इसे एक धार्मिक स्थल ही बने रहने दिया जाना चाहिए। समाज का मानना है कि ये पहाड़ उनका धार्मिक स्थल है। पर्यटल स्थल घोषित करते ही यहां पर पर्यटकों की भीड़ में मांस और शराब का सेवन का चलन बढ़ेगा। इससे धार्मिक स्थल की पवित्रता प्रभावित होगी। सम्मेद शिखर ऐसे पावन और पवित्र स्थल पर पर्यटन स्थल बनने से रोका जाना चाहिये। ज्ञापन का वाचन अभय चोपडा ने किया एवं आभार हर्षित नागदा ने माना।