भारतीय ज्ञान परंपरा एवं भाषा पर केंद्रित शिक्षा समागम का शुभारंभ राज्यपाल पटेल ने किया
उज्जैन, अग्निपथ। मध्यप्रदेश के राज्यपाल मंगु भाई पटेल ने उज्जैन में कहा कि उज्जैयिनी की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक परंपरा सदियों से गौरवपूर्ण रही है। यहां भगवान श्री कृष्ण की शिक्षा स्थली, कालिदास की साहित्य अवदान, विक्रमादित्य की समृद्धि, वराहमिहिर, ब्रह्मपुत्र और भास्करार्चा जैसे अनेक विद्वानों के कार्यों से यह नगरी सुशोभित रही है। यहां की ज्ञान परंपरा अद्भूत है।
राज्यपाल मंगू भाई पटेल बुधवार को विद्या भारती उच्च शिक्षा संस्थान एवं विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा उज्जैन में आयोजित शिक्षा समागम कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के स्वर्ण जयंती सभागार में संबोधित कर रहे थे। राज्यपाल पटेल ने कहा कि युवा पीढ़ी को स्वावलंबी बनाने के लिए भारतीय भाषाओं का सहारा लिया है। पश्चिम की आंधी में भी भारतीय ज्ञान परंपरा सतत प्रवाहमान है। उन्होंने कहा कि देश में आज क्या परिस्थिति है। सभी जानते हैं। समाज में तीन तरह की स्थिति है इनमें प्रवृत्ति, संस्कृति और विकृति यह तीन चीज के माध्यम से समाज देखा जाता है। इसमें विकृति को कैसे सुधारना है या देखा जाना है। राज्यपाल ने नई शिक्षा नीति पर चर्चा करते हुए कहा कि अपनी संस्कृति को बचाने की जरूरत है।
आजादी के अमृत महोत्सव में 75 वें वर्ष में नई शिक्षा नीति के माध्यम से कई ऐसी बातें रखी गई है, जो नए बच्चों को जानकारी में नही है। उन्होने कहा कि विद्या भारती कई वर्षों से प्रयत्न कर रही है। सुखद गौरव का विषय है कि भारतीय ज्ञान परंपरा के लिए संयुक्त रूप से आयोजन किया गया है। आज के बच्चे अमेरिका का इतिहास जानते है, लेकिन भारत का इतिहास जानते नहीं है। उन्होंने कहा कि भारत देश की संस्कृति है वसुंधैवकुटुंबकम। हमें समाज में फैली विकृति को हटाना है। कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पुस्तक एक्जाम वॉरियर्स का विमोचन भी अतिथियों ने किया।
कार्यक्रम के प्रारंभ में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक के कुलपति प्रो. प्रकाशमणि त्रिपाठी ने भी संबोधित किया। शिक्षा समागम की प्रस्तावना विद्या भारती उच्च शिक्षा संस्थान के राष्ट्रीय महामंत्री प्रो.नरेंद्र कुमार तनेजा ने दिया। कुलपति प्रो. अखिलेश कुमार पांडेय ने स्वागत भाषण दिया। कार्यक्रम का संचालन प्रो.शैलेंद्र कुमार शर्मा ने किया व आभार कुलसचिव डॉ. प्रशांत पुराणिक ने माना।
उज्जैन नगरी पुरातत्व की दृष्टि से महत्वपूर्ण
कार्यक्रम में उच्च शिक्षा मंत्री डॉ मोहन यादव ने कहा कि उज्जैन नगरी भौगोलिक और पुरातात्विक दृष्टि से प्राचीन नगरी में शुमार है। यह प्राचीन नगरी में महत्वपूर्ण है। यहां ज्ञान परंपराओं के अनेक उदाहरण है। उन्होंने कहा कि सम्राट विक्रमादित्य की 32 पुतलियां भी ज्ञान की ही बात करती थी। विक्रमादित्य के साथ बेताल का नाम आता है। बेताल कोई भूत नही थे, बेताल ज्ञानी व्यक्ति रहे है। बेताल पच्चीसी की एक-एक कहानी में विशेषता है और ज्ञान की बात करती है।
डॉ यादव ने कहा कि उज्जैन में स्थित वेधशाला में सूर्य और चंद्रमा की चाल की गणना, यहां लगे यंत्रों के माध्यम से ज्योतिषिय जानकारी मिलती है। डॉ यादव ने विक्रम विश्वविद्यालय के संग्रहालय के नवीनीकरण के बाद पुरातत्वविद् विष्णु श्रीधर वाकणकर के नाम पर संग्रहालय के नामकरण करने की घोषणा की।
संग्रहालय नवीनीकरण कार्य का भूमि पूजन किया
बुधवार को विक्रम कीर्ति मंदिर परिसर में स्थित पुरातत्व संग्रहालय को संवारने के लिए भूमिपूजन कार्यक्रम में राज्यपाल मंगुभाई पटेल शामिल हुए। कार्यक्रम में उच्च शिक्षा मंत्री डॉ.मोहन यादव, सांसद अनिल फिरोजिया, महापौर मुकेश टटवाल, नगर निगम अध्यक्ष कलावती यादव, कुलपति प्रो. अखिलेश कुमार पाण्डेय, कुलसचिव डॉ. प्रशांत पुराणिक, उत्खनन अधिकारी डॉ. रमण सोलंकी,कार्यपरिषद सदस्य संजय नाहर, विनोद यादव मौजूद थे।
पुराने इतिहास के अवशेष संग्रहालय में मौजूद है
उत्खनन अधिकारी डॉ. रमण सोलंकी ने बताया कि पुरातत्व संग्रहालय में उज्जैन के इतिहास से जुड़े कई तथ्य मौजूद हैं। उच्च शिक्षा मंत्री डॉ मोहन यादव के प्रयास से संग्रहालय को अत्याधुनिक रूप देने एवं संरक्षित प्रतिमाओं तथा अवशेषों को संरक्षित रखने के लिए 14 करोड़ की राशि स्वीकृत की गई है। इस राशि से संग्रहालय में रखी पुरातात्विक धरोहर जिसमें 5 लाख साल पुराना विश्व प्रसिद्ध हाथी का मस्तक, गैंडे का सींग, दरियाई घोड़े का दाँत, जंगली भैंसे का जबड़ा एवं अन्य 200 जीवाश्म (फॉसिल्स) एवं अन्य अवशेष प्रमुख हैं। इन्हें विभिन्न वीथिकाओं में प्रदर्शित किया जाएगा।
इसके अलावा संग्रहालय में भीमबेटका के पुरातात्विक उत्खनन में डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर द्वारा एकत्रित आदिमानव द्वारा निर्मित प्रस्तर औजारों को भी प्रदर्शित किया जाएगा। मौर्य पूर्व युगीन उज्जैन के राजा चण्डप्रद्योत के काल में निर्मित लकड़ी की दीवार एवं बंदरगाह के अवशेष के रूप में गढक़ालिका क्षेत्र स्थित क्षिप्रा नदी के तट से प्राप्त 10 काष्ठ लठ्ठे जो कि 2600 वर्ष पूर्व के है।
उज्जैन के ग्रामीण क्षेत्रों कायथा, महिदपुर, आजादनगर, रूनीजा, सोडंग, टकरावदा के उत्खनन के साथ प्राप्त चार हजार वर्ष पुरानी पुरातात्विक सामग्री के अलावा संग्रहालय में दुर्लभ 472 प्रस्तर प्रतिमाएँ जो मौर्य काल से लेकर मराठा काल तक की हैं। इन्हें भी नवनिर्मित वीथिकाओं में प्रदर्शित कर संग्रहालय को भव्य स्वरूप दिये जाने की योजना बनाई गई है।