महाकाल लोक में महाघोटाला : 97 करोड़ का एस्टीमेट, 225 करोड़ के काम

25 प्रतिशत कर सकते हैं रिवाइज, ठेकेदार पर मेहरबानी कर 125 फीसदी बजट बढ़ा दिया

उज्जैन, अग्निपथ (हरिओम राय)। भूतभावन भगवान महाकालेश्वर के नाम पर तैयार किये गये महाकाल महालोक में जिस कदर भ्रष्टाचार किया गया उसे देखकर लगता है मानों जिम्मेदारों को महाकाल का भी भय है। अग्निपथ को मिली खास जानकारी में सामने आया है कि महाकाल महालोक में लगाई गई हर मूर्ति-खंबा या रैलिंग पर प्लानिंग के साथ लाखों रुपए की चपत लगाई गई है। जिम्मेदारों की कारगुजारियां देखिए, इन्होंने 97.71 करोड़ रुपए के एस्टीमेट को बढ़ाकर 225 करोड़ रुपए कर दिया है। यानी 125 प्रतिशत रिवाइज कर दिया।

वहीं मूर्ति निर्माण में इस तरह खेल किया गया ताकि पकड़ में नहीं आये, लेकिन कहते हैं ना महाकाल के दरबार में तुरंत न्याय होता है और हर करतूत का हिसाब देना होता है। 28 मई को चली आंधियों में सिर्फ महाकाल महालोक की मूर्तियां नहीं उड़ी हैं, बल्कि महाकाल के आंगन में मनमर्जी करने वाले हर शख्स के चेहरे से भी परत हट रही है।

भव्य, दिव्य, अलौकिक आदि लोकलुभावन शब्दों के जरिए महाकाल के भक्तों को गुमराह करने वालों की कारगुजारियां अब फाइलों से बाहर आना शुरू हो गई है। आज हम पाठकों के समक्ष पेश कर रहे हैं महाकाल महालोक में मूर्तियों व अन्य कार्यों के लिए जारी किये गये टेंडर में किस तरह मनमानी की गई, उसकी प्रामाणिक जानकारी। आगे के अंकों में भी आपको काली करतूतों की जानकारी मिलती रहेगी, पढ़ते रहिए दैनिक अग्निपथ…।

कायदा न कानून-हम ही हैं सरकार

मृदा (महाकाल-रुद्रसागर इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट एरिया) फेज-१ के तहत विकास और निर्माण कार्य के लिए टेंडर वर्ष 2018 में तत्कालीन अधीक्षण यंत्री हंसकुमार जैन ने तैयार किया। जिसमें अनुमान पत्रक यानी एस्टीमेट 97.71 करोड़ रुपए का था। जिसकी स्वीकृति तात्कालीन स्मार्ट सिटी सीईओ अवधेश शर्मा एवं तत्कालीन कार्यपालिक निदेशक (ईडी) प्रतिभा पाल ने प्रदान की।

वर्क आर्डर मार्च 2019 में जारी किया गया था। स्मार्ट सिटी के अधिकारियों को पीडब्ल्यूडी. मैन्यूअल के मुताबिक एस्टीमेट मेें 25 प्रतिशत रिवाइज का अधिकार हैं। यहां पर कायदे-कानून की धज्जियां उड़ाते हुए 97.71 करोड़ के कार्य को 225 करोड़ तक रिवाइज कर दिया गया। यानी 125 प्रतिशत बढ़ौत्तरी।

  • टेंडर में रेट के साथ इस बात का उल्लेख नहीं है कि आयटम क्या रहेगा। मूर्तियों के स्पेसिफिकेशन का उल्लेख भी नहीं किया गया है। अफसरों ने लाभ का मार्जिन निकालने के लिए दरों में काफी असमानता रखी गई है।
  • पीडब्ल्यूडी मैन्यूल अनुसार रेट प्रतिशत आधार पर बुलवाए गये। जबकि टेण्डर की दर आयटम के प्रति नग के आधार पर बुलवाई जाना थी, जिसमें प्रत्येक मूर्ति के स्पेसिफिकेशन का उल्लेख किया जाना अति आवश्यक था।
  • सुनियोजित तरीके से कांक्रीट की मूर्तियों का कार्य नहीं करवाया गया, पत्थर की भी मात्र 10 मूर्तियां बनवाई गई, क्योंकि पत्थर-कांक्रीट की मूर्ति में ठेकेदार को अधिक फायदा नहीं था जबकि फायबर की मूर्ति में ठेकेदार को 150 से 250 प्रतिशत का फायदा ठेकेदार को हुआ है।

फाइबर मूर्ति 10 फीट की 5.50 लाख, अगर एक फीट बढ़ कर 11 की जाये तो रेट 10 लाख

अनुमान पत्रक में पत्थर-सीमेन्ट की मूर्ति की दर काफी कम रखी है, जबकि उनकी तुलना में फायबर की मूर्ति की दर अधिक रखे गये हैं। उदाहरण के लिये कांक्रीट की मूर्ति 18 फीट की एवं 25 फीट की एक ही दर 15 लाख रुपए रखी गई है। इसी प्रकार पत्थर की मूर्ति की दरों में एक-एक फीट के अन्तर पर राशि में 25 हजार की बढ़ोत्तरी की गई है। वहीं फायबर की मूर्ति जो कि काफी कम लागत में बनती है, उसमें प्रत्येक एक फीट के अन्तर पर राशि 2 लाख से लेकर 4.50 लाख तक का अन्तर रखा गया है।

अनुमान पत्रक के सब सेक्शन 11 में स्टोन वर्क में मूर्ति बनाए जाने का प्रावधान किया गया था, उनके रेट इस प्रकार हैं-

फायबर की मूर्ति

  • 9 फीट – 25 नग
    (3.50 लाख रु.प्रति नग)
  • 10 फीट – 25 नग
    (5.50 लाख रु. प्रति नग)
  • 11 फीट – 25 नग
    (10 लाख रु. प्रति नग)
  • 15 फीट – 25 नग
    (12 लाख रु. प्रति नग)

पत्थर की मूर्ति

  • 4 फीट – 20 नग
    (1.50 लाख रु. प्रति नग)
  • 5 फीट – 20 नग
    (1.75 लाख रु. प्रति नग)
  • 6 फीट – 20 नग
    (2 लाख रु. प्रति नग)

कांक्रीट की मूर्ति

  • 18 फीट – 15 नग
    (15 लाख रु. प्रति नग)
  • 25 फीट – 15 नग
    (15 लाख रु. प्रति नग)

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