शहर में जगह-जगह गोपालकों ने की गोवर्धन पूजा, सुहाग पड़वा पर्व मना
उज्जैन, अग्निपथ। दीपावली पर्व के साथ ही मंगलवार को सुहाग पड़वा पर श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति द्वारा चिन्तामण जवासिया में संचालित गौशाला में मंगलवार को गोवर्धन पूजा की गई। इस दौरान यहां मौजूद गायों की आकर्षक साज-सज्जा की गई थी। मंदिर की गौशाला में करीब दो सौ गाय हैं। इधर ग्रामीण और शहर के इलाकों में भी गायों का पूजन कर गोवर्धन पूजन किया गया।
दीपावली पर्व के साथ आने वाले गोवर्धन पूजन का पर्व इस बार मंगलवार को मनाया गया। इस दिन घरों में गोबर से गोवर्धन बनाकर पूजन किया जाता है। श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति की गौशाला में भी दीपावली पर्व के बाद गोवर्धन पूजा की जाती है। मंगलवार को चिंतामन जवासिया स्थित गौशाला में मंदिर समिति द्वारा गोवर्धन पूजन किया गया। इसके बाद गौधन का पूजन भी किया गया।
इस अवसर पर श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति के सहायक प्रशासक मूलचंद जूनवाल, आरपी गेहलोत, महाकालेश्वर वैदिक प्रशिक्षण एवं शोध संस्थान के प्रभारी डॉ. पीयूष त्रिपाठी, गौशाला प्रभारी गोपाल सिंह कुशवाह, अन्नक्षेत्र प्रभारी मिलिंद वैद्य, मनीष तिवारी, कमलेश सिसोदिया, विनोद चौकसे ने भी गौशाला की गाय का पूजन किया। इस मौके पर गौशाला, लड्डू प्रसाद निर्माण ईकाई के कर्मचारी उपस्थित थे।
इस्कान मंदिर में भी हुई गोवर्धन पूजा
मंगलवार को इस्कान मंदिर में गोवर्धन पूजा और अन्नकूट का आयोजन हुआ। दोपहर में राधा-माधव मंदिर में गोवर्धन पर्वत की आकृति सजाकर पूजन-आरती के बाद छप्पन भोग का आयोजन किया गया। इस दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने मंदिर पहुंचकर दर्शन लाभ लिया। इस्कान मंदिर प्रशासन द्वारा श्रद्धालुओं को प्रसाद का वितरण भी किया गया।
गोवर्धन पूजन का महत्व
गोवर्धन पूजा की परंपरा द्वापर युग से चली आ रही है। उससे पूर्व ब्रज में इंद्र की पूजा की जाती थी। मगर भगवान कृष्ण ने गोकुल वासियों को तर्क दिया कि इंद्र से हमें कोई लाभ नहीं प्राप्त होता। वर्षा करना उनका कार्य है। इसलिए इंद्र की नही गोवर्धन की पूजा की जानी चाहिए। इसके बाद इंद्र ने ब्रजवासियों को भारी वर्षा से डराने का प्रयास किया। श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर उठाकर सभी गोकुलवासियों को उनके कोप से बचा लिया। श्रीकष्ण ने सातवें दिन गोवर्धन पर्वत को नीचे रखकर ब्रजवासियो से आज्ञा दी कि अब से प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा कर अन्नकूट का पर्व उल्लास के साथ मनाओ। इसके बाद से ही इंद्र भगवान की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करने का विधान शुरू हो गया है। यह परंपरा आज भी जारी है।