नेपाल यात्रा वृत्तांत-6 : जहां गौ मांस सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित होकर बिक रहा हो वह कैसा हिंदू राष्ट्र..?

अर्जुन सिंह चंदेल

कल के वृत्तांत के अंत में मैने नेपाल में एक चीज बुरी लगने का जिक्र किया था। वैसे तो पूरे नेपाल में शराब ऐसे बिकती है जैसे हमारे हिंदुस्तान में थम्सअप और पेप्सी। हर किराने और अन्य दुकानों पर शराब की बोतलें करीने से जमी हुई देखी जा सकती है। नेपाल में शराब बेचने के लिए किसी प्रकार के लाइसेंस की जरूरत शायद नहीं रहती । शराब तक तो ठीक है परंतु हिंदू राष्ट्र होने के बाद पोखरा में सार्वजनिक स्थानों पर खुले रूप से गाय, सूअर, भैंस का मांस बेचा जाता है।

मुख्य बाजारों में बाकायदा जानवरों सहित फोटो लगे हुए हैं और जानवरों के मांस टंगे हुए हैं। मन व्यथित हुआ अपने राम सोचने लगे यह कैसा हिंदू राष्ट्र? शायद भारत से नेपाल आने वाला पर्यटक जो भले ही मांसाहारी हो, यहां भोजन में रिस्क नहीं लेता होगा क्योंकि नेपाल में बकरे या मुर्गे का विक्रय होते नहीं दिखा।

जमीन पर गिरकर झरने का पानी गायब!

खैर, छोडिय़े आज यात्रा का तीसरा दिन था। सुबह फेवा लेक के नजदीक बने मारवाड़ी भोजनालय में छककर साग-पूड़ी का नाश्ता किया, भोजनालय के मालिक भारत के राजस्थानी थे। निकल पड़े हम पोखरा घूमने। सबसे पहली मंजिल थी देवी झरना। जिसका प्रवेश शुल्क था। हरियाली से भरा हुआ था पूरा क्षेत्र। सीढिय़ों से नीचे उतरने पर विशालकाय झरना नजर आया काफी ऊंचाई से पानी गिर रहा था।

आश्चर्य की बात यह थी कि बहुत बड़ी जलधारा होने के बावजूद पानी भूमिगत होकर अदृश्य हो रहा था। जल को देखना वैसे भी मन को सुकून और शांति देने वाला होता है। काफी देर तक झरने को निहारते रहे, बाहर पर्यटकों के लिए छोटा-सा बाजार था। जहां रुद्राक्ष से लेकर खुखरी, नेपाली टोपी आदि बेची जा रही थी।

देवी झरना देखने के बाद मुख्य सडक़ पार करते ही सामने गुप्तेश्वर महादेव का मंदिर था जो कि पोखरा के दर्शनीय स्थलों में से एक था। तंग गलियों से गुजरते हुए हम मंदिर के प्रवेश द्वार तक पहुंच गये। वहां जमीन के काफी संकरी सीढिय़ों से होते हुए नीचे जाना पड़ा। लगभग 150 सीढिय़ां होगी।

नीचे भगवान शंकर विराजे हुए थे। जिनके दर्शन से आत्मा प्रसन्न हुई। थोड़ा और नीचे जाने पर पानी की वह जलधारा जो देवी झरने पर अदृश्य हुई थी, झरने के रूप में नजर आयी, जो फिर थोड़ा आगे जाकर भूमिगत हो गई। मतलब पोखरा की सडक़ों के लगभग 70-80 फुट नीचे अकूत जलधारा प्रवाहित हो रही है। मन बाग-बाग हो गया। इसके बाद पहाड़ की ऊंची चोटी पर जाकर शांति स्तूप को दूर से देखा और पोखरा की खूबसूरती का नजारा लिया। शांति स्तूप के नजदीक ही एक रेस्टोरेंट में चाय की चुस्की का आनंद लिया पर रेस्टोरेंट का शैतान संचालक मूत्रालय का उपयोग करने पर 20 भारतीय रुपयों की वसूली कर रहा था, जो कि ठीक नहीं लगा।

भारत के 100 रुपए नेपाल के 160 रुपए के बराबर

एक बात और ध्यान रखिये जब भी नेपाल जायें 500 की जगह 100-100 रुपए के भारतीय नोट रखिये और थोड़ी नेपाली करंसी भी। भारत के 100 रुपए नेपाल के 160 रुपए के बराबर होते हैं। अधिकांश दुकानदार तो भारतीय नोट ले लेते हैं परंतु कुछ नाटक करते हैं व नेपाली मुद्रा की ही मांग करते हैं। दूसरी बात नेपाल में चालाक दुकानदार भारतीय 100 रुपए की जगह 150 नेपाली रुपये का भाव लगाते हैं। बहस करने पर वह 160 का रेट लगा लेते हैं। 100-100 रुपए के भारतीय नोट आसानी से चल जाते हैं। 500-500 के नोट लेने में नेपाली आनाकानी करते हैं। पोखरा की एक और हसीन शाम का वर्णन कल के अंक में…।
(शेष अगले अंक में)

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