एक पेड़ मां के नाम अभियान की उड़ा रहे धज्जियां
उज्जैन, अग्निपथ। शहर के पाटीदार ब्रिज पहुंच मार्ग के दोनों ओर नगरनिगम ने खजूर के पेड़ लगवाये थे। लेकिन इन पेड़ों को पानी देना भूल गये। लिहाजा आधे से ज्यादा पेड़ बड़े होने के बावजूद भी सूखकर गिर गये। एक पेड़ मां के नाम अभियान के अंतर्गत जोरशोर से पौधे लगाने का काम चल रहा है। इस पहुंच मार्ग के दोनों ओर गड्ढे भी पौधारोपण के लिये खोद दिये गये, लेकिन अभी तक लगाये नहीं गये हैं। लगता है कि नगरनिगम के जिम्मेदार दूसरी जगहों पर पौधारोपण करवाने के चक्कर में यहां पर गड्ढे खुदवा कर भूल गया है।
पुराने शहर के निवासियो को फ्रीगंज जाने के लिये चामुंडा चौराहा स्थित ब्रिज की अपेक्षा पाटीदार ब्रिज से जाना पास पड़ता है। लिहाजा इस ब्रिज से प्रतिदिन हजारों वाहन गुजरते हैं। कई लोग पैदल ही इस ब्रिज से फ्रीगंज जाकर अपना काम कर लेते हैं। पाटीदार ब्रिज जाने के लिये दो मार्ग हैँ- एक कोयला फटक से होकर तो दूसरा ढांचा भवन से होकर।
सडक़ के दोनों ओर फुटपाथ भी बनाये गये हैं। इसके पीछे नगरनिगम ने कुछ साल पहले करीब दो दर्जन खजूर के पौधों का रोपण किया था। शुरुआत में तो पानी देकर इनकी खूब देखभाल की गई। लेकिन जब वह मध्यम आकार लेने लगे तो नगरनिगम ने इनकी सुध लेना छोड़ दिया। पानी देने के लिये जो टैंकर आता था, वह भी आना बंद हो गया। केवल कागजों पर डीजल की खपत लिखी जाने लगी। किसी भी जिम्मेदार ने इस ओर देखना उचित नहीं समझा।
अब दो दर्जन पेड़ों में से आधे से ज्यादा पानी के अभाव में सूखकर जमींदोज हो गये हैं। आसपास के रहने वाले लोग यहां पर सुबह के समय मार्निंग वॉक के लिये आते हैं। लेकिन जमीन पर पड़े सूखे पेड़ों को देखकर उनको दुख होता है। सडक़ की दूसरी ओर बड़ी संख्या में काफी दूर पेड़ लगे हैं। ऐसे में ताजी हवा नहीं मिल पाती है।
अब नये गड्ढे खोदे, नहीं किया पौधारोपण
इन पहुंच मार्गों के दोनों ओर एक पेड़ मां के नाम अभियान के तहत पौधारोपण के लिये गड्ढे तो खोद दिये गये हैं। लेकिन पौधारोपण नहीं किया गया है। लगता है कि नगरनिगम के जिम्मेदार यहां पर गड्ढे खुदवा कर इसको भूल गये हैं। मार्निंग वॉक स्पाट होने के कारण यहां पर पेड़ लगाने की नितांत आवश्यकता है।
ताकि अधिक से अधिक संख्या में लोग यहां ताजी हवा लेने आयें। लेकिन एक पेड़ मां के नाम अभियान को इस तरह से पलीता लगाया जा रहा है। पौधे तो लगा दिये गये हैं, लेकिन यदि आगे इनकी सुध नहीं ली गई तो इस अभियान को चलाने से कोई लाभ होने वाला नहीं है। क्योंकि पौधों को पेड़ बनने में 4 से 5 साल का समय लगता है। ऐसे में इतनी बड़ी संख्या में लगाये गये पौधों की नगरनिगम और लोग सुध ले पायेंगे।