अर्जुन सिंह चंदेल
अब खाने की बातें कम की जायेगी यात्रा लम्बी हो चली है हरि अनंत हरि कथा अनंता की तरह इस लिये आज समापन की कोशिश की जायेगी। थेक्कड़ी की होटल ‘ऐलीफेंट रूट’ में सुबह का नाश्ता करके हमारा दल निकल पड़ा एलेप्पी के लिये जो केरल का अजूबा है। थेक्कडी से अलेप्पी की दूरी 155 किलोमीटर है और लगभग 4-5 घंट का लगना था। यात्रा 13 अगस्त हो चली थी यात्रा का चौथा दिन।
एलेप्पी की कहानी कुछ अलग है, इसका जन्म पहली शताब्दी में बताया जाता है। 16-17 वीं शताब्दी में डच व पुर्तगाली मसालों के व्यापार हेतु यहाँ आये, सन् 1774 वीं में केशवदास जी ने अपनी बुद्धिमता से यहाँ पर बंदरगाह का निर्माण किया और बैक वाटर में परिवहन के लिये पूरे शहर में नहरों का निर्माण कर जलमार्ग तैयार किया।
मलयालम में इसे अलाप्पुझा के नाम से जाना जाता है। 80 किलोमीटर लंबे जलमार्ग में जिले की 6 नदियां मिलती है, साइड में ही 2195 वर्ग किलो मीटर में फैली वेम्बनाड झील है। 1.30 बजे के आसपास हम एलेप्पी पहुँच ही गये। साफ सुथरी सडक़ें, नारियल के पेड़, केले के पत्ते और हाऊस बोट नजर आने लगे थे।
अपने राम इटली का ‘वेनिस’ तो देख नहीं पाये पर सौभाग्य से भारत के वेनिस का नजारा जरूर दिखायी दे रहा था। हमारी टेम्पो टे्रवल्र बहुत ही सुंदर महलनुमा इमारत के सामने रूकी वह ही हमारी अलेप्पी की मंजिल थी होटल ‘हवेली’ जैसा नाम वैसी ही सुंदरता। होटल हवेली के सामने ही सडक़ के दूसरी ओर बैक वाटर नजर आ रहा था। होटल रूम बहुत साफ सुथरे और शानदार थे। लंच के लिये आधा घंटा बाद नीचे जाना था। यहाँ एलेप्पी में सिर्फ बैकवाटर में बोट से सवारी करनी थी और कुछ था नहीं।
भोजन करने के बाद 4 बजे हम सभी ‘जेटी’ (बोट स्टैण्ड) पहुँच गये। तीन घंटे हमें बोट पर ही रहकर आनंद करना था। बोट में संगीत की भी व्यवस्था थी। जलमार्ग में दोनों ओर ग्रामीण भारत की तस्वीर दिखायी दे रही थी। हाऊस बोट भी नजर आ रहे थे और हाँ आपको यह जानकर हैरानी होगी कि सडक़ पर दौडऩे वाली सिटी बसों की तरह पानी में भी केरल सरकार की सिटी बोट चल रही थी जिसमें बकायदा निर्धारित स्थानों पर यात्रियों के रूकने के लिये शेड बने हुए थे। बच्चे-महिलाएं सभी उन बोटों में बैठ रहे थे।
लार्ड कर्जन ने अलेप्पी को ‘पूर्व का वेनिस’ नाम दिया था
बोट चालक ने बताया कि यहाँ से कोट्टायम, कोल्लम और अन्य छोटे शहरों के लिये नाव चलती है। अँग्रेज लार्ड कर्जन ने अलेप्पी को ‘पूर्व का वेनिस’ नाम दिया था। प्रत्येक वर्ष ओणम पर्व पर यहाँ होने वाली ‘सर्प नाव दौड़’ विश्व स्तर पर प्रसिद्ध है। इसके चालू होने के पीछे की कहानी है कि सन् 1952 में तात्कालीन प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू यहाँ आये थे तब एलेप्पीवासियों ने अपने लाड़ले नेता का स्वागत करने के लिये ‘सर्प नाव दौड़’ का आयोजन किया था नेहरू जी को यह बहुत पसंद आयी थी और तभी से यह परंपरा चालू हुयी।
बोट पर डाँस
समुद्र की तरह अथाह जल राशि नजर आ रही थी। वातावरण मादक हो चला था शाम की आहट होने लगी थी। मदमस्त संगीत ने साथियों के पैरों को थिरकने पर मजबूर कर दिया। जोश धीरे-धीरे पूर्र शबाब पर आ रहा था बोट पर डाँस चालू हो गया था दल के क्या बूढ़े-क्या जवां सभी मादक संगीत पर थिरकने लगे। खूब धमाल किया। लौटकर आने का मन नहीं कर रहा था, पर 7 बजे बोट बँद कर दी जाती है ताकि मछुआरे जाल बिछाकर रात भर में मछलियों का शिकार कर सके।
बोट का किराया 2 हजार रुपये
यहाँ पर एक बोट का किराया 2 हजार रुपये है चाहे फिर आप अकेले बैठे या 15 लोगों का दल। शाम को 7 बजे होटल हवेली आ गये। टीम में दो-तीन संगीत प्रेमी भी थे उनकी प्रतिभा को भी देखना था। होटल वाले से निवेदन करके एक वातानुकूलित हाल 45 मिनट के लिये लिया गया, जिसमें स्पीकर लगे हुए थे। हमारे इंदौर मित्र ने समाँ बाँध दिया। दल की एक और पुणे निवासी महिला सदस्य ने भी भजनों की शानदार प्रस्तुति दी।
करीब एक घंटे तक चला कार्यक्रम, मजा आ गया। बाद में सबने भोजन किया और दिन भर की थकान के कारण सोने चले गये। यात्रा के पाँचवें दिन हमें कोचिन पहुंचना था जो मात्र 55 किलोमीटर दूर ही था।
सुबह आराम से उठे और नाश्ता किया जिसमें विशेष रूप से ‘पट्टु’ था जो चावल का बना हुआ और बहुत स्वादिष्ट था, इसके अलावा काडला कढ़ी और केरल के पराठे और भाप में उबाले गये केरले प्रमुख आकर्षण थे। अब हमें एलेप्पी छोडऩा था और पूरे कार्यक्रम की सबसे छोटी 55 किलोमीटर की यात्रा कर कोचीन पहुँचना था। पर सबसे ज्यादा कष्टदायक यही यात्रा थी। 50 किलोमीटर की यात्रा में साढ़े तीन घंटे लग गये।
कोचीन के मुख्य एम.जी. मार्ग पर होटल ‘मर्सी’ हमारी यात्रा का अंतिम पड़ाव थी। होटल पहुँचकर खाना खाया और घूमने निकल गये। गंदे समुद्र तट और वास्को डी गामा की समाधि, चर्च के अलावा कुछ नहीं था। अपने को तो नहीं जमा। लौटकर कुछ मित्रों ने खरीददारी की और रात्रि भोजन कर सो गये। सुबह नाश्ता करके एयरपोर्ट के लिये निकल पड़े जो होटल से 40 किलोमीटर दूर था। लगभग 12.30 बजे तक पहुँच गये वहाँ भोजन पश्चात 4 बजे की फ्लाईट पकडक़र चैन्नई होते हुए इंदौर और सडक़ मार्ग से इंदौर से उज्जैन घर वापस आ गये एक और यादगार यात्रा संस्मरणों के साथ समाप्त।