गुड्डू कलीम हत्याकांड की कहानी – 3 : अच्छे पति और पिता की भूमिका नहीं निभा पाया गुड्डू

गुड्डू कलीम हत्याकांड

उज्जैन, (अर्जुनसिंह चंदेल), अग्निपथ।  गुड्डू के चाल चलन को देखकर घर वालों को चिंता होने लगी क्योंकि परिवार की कोई आपराधिक पृष्ठभूमि नहीं थी। घरवालों ने निर्णय लिया कि यदि शादी कर दी जाये तो हो सकता है गुड्डू कलीम सुधर जाये। इसी कारण 24 वर्ष की उम्र में सन् 1980 में उसका विवाह कर दिया गया। परंतु विवाह के पूर्व ही उस पर दो दर्जन से अधिक आपराधिक प्रकरण दर्ज हो चुके थे।

शादी के बाद गुड्डू के यहां दो संतानें पैदा हुयी। बड़ा बेटा आसिफ और छोटा बेटा दानिश। आसिफ के जन्म के बाद गुड्डू कुछ संभलने की कोशिश कर ही रहा था कि सन् 1990 में परिस्थितियों ने फिर मोड़ ले लिया, शायद ऊपर वाले को कुछ और ही मंजूर था। खेत पर रहने वाले गुड्डू के बड़े भाई सलीम की हत्या हो गयी। परिवार सदमे में आ गया। सलीम भाई के एक बेटा और बेटी है। फिर 93-94 में गुड्डू के बड़े भाई रशीद ने खडग़सिंह की हत्या कर दी और सजा दौरान उनकी भी मौत हो गयी। हंसता-खेलता पूरा परिवार तहस-नहस हो चुका था। तीन भाइयों में कलीम अकेला बचा था।

गुड्डू के किरदार को समझने के लिये पाठकों को उसके अतीत के बारे में जानना और समझना बहुत जरूरी है। कलीम के बारे में मेरा इतना लिखने का उद्देश्य उसका महिमामंडित करना कदापि नहीं है, मकसद सिर्फ इतना है कि पाठकों के समक्ष वह सारी परिस्थितियां रख सकूँ ताकि निर्णय लिया जा सके कि उससे कहाँ चूक हुयी? और हम निर्णय पर पहुँच सके कि उसकी खौफनाक मौत के लिये क्या वह पूरी तरह जिम्मेदार था।

दोनों भाइयों की मौत से गुड्डू टूट-सा गया था। अवसाद के इन दिनों में फिर वही आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों ने उसे संबल दिया। गुड्डू के दोनों बेटे अब धीरे-धीरे बड़े होने लगे थे। घर का माहौल पढ़ायी लिखायी का था ही नहीं तो शिक्षा से कोई लेना-देना हो ही नहीं सकता। फिर कोट मोहल्ले की संगत। गुड्डू कलीम के दोनों बच्चे चाहकर भी पढ़ायी नहीं कर सके।

कलीम की जेल यात्राएं फिर से चालू हो गयी थी। स्वयं के दो बच्चों रशीद भाई के दो बेटों और सलीम भाई के एक बेटे-बेटी परवरिश का पूरा दायित्व नीलोफर पर आ पड़ा। नीलोफर अपने इस दायित्व का निर्वहन सही ढंग से कर पायी या नहीं यह यक्ष प्रश्न है। चूँकि नीलोफर का इंदौर स्थित परिवार भी शिक्षित नहीं है इस कारण एक अच्छे संस्कार देना कठिन कार्य था।

कलीम के पास अब रुपये पैसों की कमी नहीं थी। हफ्ता वसूली से लेकर अवैध शराब विक्रय जैसे अवैध धंधे अब उसकी क्षत्र छाया में फलने-फूलने लगे थे। जरुरतमंद और मजबूर लोगों की टीम अब उसकी सरपरस्ती में थी। थाने वालों के लिये भी वह दूध देती गाय बन चुका था। शहर के सारे अपराधी उसे अच्छी तरह से जानते ही थे। परंतु पैसे की हवस ने उसे अंधा बना दिया था।

अपराधी बन चुका कलीम गुड्डू स्वयं के जीवन प्रबंधन में फेल होता जा रहा था, ना तो वह अच्छे पति और ना ही अच्छे पिता की भूमिका का निर्वहन कर पा रहा था। मासूम आसिफ और दानिश पर भी घर के माहौल का अच्छा असर नहीं पड़ रहा था। आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों का घर आना-जाना बच्चों के दिलों दिमाग पर गलत प्रभाव डाल रहा था। रात-दिन जुए की लत के कारण गुड्डू कई दिनों तक घर नहीं आता था। जुआ खेलने के लिये मुंबई पड़ा रहता था। धीरे-धीरे बच्चे उसी माहौल के अभ्यस्त हो चले। इस बीच वर्ष 2000 आ गया और गुड्डू पार्षद बन गया। फिर क्या हुआ

अगले अंक 4 में…

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