प्रकृति से दूर होना विकृति का कारण: डॉ. शर्मा

विक्रम विश्वविद्यालय में मैप कास्ट के सहयोग से दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन।

विक्रम विश्वविद्यालय में मैप कास्ट के सहयोग से अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन।

विक्रम विश्वविद्यालय में मैप कास्ट के सहयोग से अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी

उज्जैन, अग्निपथ। आयुर्वेद में मनुष्य की प्रकृति की पहचान न सिर्फ रोगों के उपचार के लिये आवश्यक है। इसे आधुनिक आनुवांशिक अनुसंधान के साथ एकीकृत भी किया जा सकता है। प्रत्येक मनुष्य की प्रकृति पृथक होती है प्रकृति का परिचय एवं उसकी पहचान का कार्य आयुर्वेद में विस्तार से वर्णित है। उन्होंने बताया कि प्रकृति से दूर होना विकृति का कारण बनता है।

यह बात शासकीय धनवंतरी मेडिकल कॉलेज उज्जैन के व्याख्याता प्रोफेसर आशीष शर्मा ने विक्रम विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ़ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी सभागार में ‘फ्यूचरिस्टिक साइंस एंड टेक्नोलॉजी ब्रिजिंग ट्रेडीशनल एंड मॉडर्न रिसर्च’ पर आयोजित दो दिवसीय संगोष्ठी में कही।

मध्य प्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद द्वारा प्रायोजित संगोष्ठी का आयोजन विक्रम विश्वविद्यालय के रसायन एवं जैव रसायन अध्ययनशाला, भौतिकी अध्ययनशाला तथा फार्मेसी विभाग के संयुक्त तत्वावधान में किया गया।

उद्घाटन समारोह के अवसर पर उज्जैन उत्तर के विधायक अनिल जैन कालूहेड़ा, आईआईटी इंदौर के प्रोफेसर रजनीश मिश्रा, प्रोफेसर कमलेश दशोरा, रसायन व जैव रसायन अध्ययनशाला की आचार्य प्रोफेसर उमा शर्मा, डॉ. स्वाति दुबे, डॉ. नवीन नागराजन उपस्थित थे।

आयुर्वेद औषधियां के तत्व निर्यात करें

इस मौके पर अल्केमी हेल्थकेयर के निदेशक डॉ. संजय ज्ञानी ने कहा कि यदि आज की पीढ़ी ने आयुर्वेद के ज्ञान को नई दिशा में अग्रसर किया तो हम विश्व में अपनी जीत हासिल कर सकते हैं हमारे प्राचीन ज्ञान परंपरा के आधार पर यदि आयुर्वेदिक औषधियों के तत्व को निकाल कर निर्यात किया जाए तो निश्चित ही हम भारत को विश्व में सर्वोपरि कर सकते हैं। हेमचंद्र आचार्य उत्तर गुजरात विश्वविद्यालय की प्रोफेसर संगीता शर्मा, पंडित रवि शंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर के प्रोफेसर इंद्रपाल करभाल ने भी संबोधित किया।

ऑटिज्म परामर्श सत्र

प्रथम दिवस पर ऑटिज्म परामर्श सत्र का आयोजन किया गया। डॉ. नवीन नागराजन यूनिवर्सिटी ऑफ़ उटाह, अमेरिका ने ऑटिज्म बच्चों की पहचान एवं उनके समाधान के विषय में अभिभावकों से चर्चा की। इस सत्र के दौरान डॉक्टर्स का पैनल जिसमें डॉक्टर सुभाष गर्ग, डॉ प्रियंका गर्ग, डॉ विवेक सिरोलिया उपस्थित थे। मनोविकास विशेष विद्यालय के स्पेशलिस्ट भी मौजूद थे।

द्वितीय दिवस के प्रथम सत्र में डॉ मनमोहन सतनामी, पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर ने दाता एक्सेप्टर पेयर्स ऑफ़ नैनो मैटेरियल्स फॉर डेवलपमेंट का फ्रंट बेस्ट सेंसर विषय पर चर्चा की। डाॅ. अरूप नियोगी, यूनिवर्सिटी आफ इलेक्ट्रॉनिक साइंस एंड टेक्नोलॉजी, चीन द्वारा ऑनलाइन वक्तव्य दिया गया।

डॉ. विपुल बिहारी साहा, एग्जीक्यूटिव बोर्ड मेंबर आईयूपीएसी ने आईयूपीएसी एवं उनके बहुआयामी गतिविधियों पर व्याख्यान दिया।

डॉ प्रियूषा बागदरे ने रेडियोथेरेपी तकनीकों में अत्याधुनिक प्रगति और कैंसर एवं उसके उपचार पर विस्तृत जानकारी प्रदान की।‌

अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन सत्र में विक्रम विश्वविद्यालय के कुलगुरु डॉ. अर्पण भारद्वाज तथा कार्य परिषद सदस्य डॉ. मंजूषा मिमरोट, वरुण गुप्ता, डॉ राजेश कुशवाहा, कार्यक्रम की समन्वयक डॉ उमा शर्मा एवं सह समन्वयक डॉ स्वाति दुबे एवं कमलेश दशोरा रहे। कुलसचिव डॉ. अनिल कुमार शर्मा ने भी संबोधित किया।

यह बोले कुलगुरु

कुलगुरु डॉक्टर अर्पण भारद्वाज ने इस दौरान सतत विकास के 17 बिन्दुओं के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि विद्यार्थियों  के उत्कर्ष के लिये जरूरी है कि मानव जाति कल्याण हेतु कार्य किए जाएं।  उन्होंनेे स्वागत के दौरान फूलों की जगह पौधे भेंट करने का सुझावदिया।

एब्स्ट्रेक्ट बुक का विमोचन

अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी की एब्स्ट्रेक्ट बुक का विमोचन किया गया। तत्पश्चात पोस्टर विजेताओं को पुरस्कार वितरण किए गए।

अतिथि परिचय संगोष्ठी की समन्वयक डॉ. उमा शर्मा एवं उप समन्वयक डॉ. स्वाति दुबे ने दिया। अतिथियों को स्मृति चिन्ह डॉ. दर्शना मेहता, डॉ. कोमल शर्मा एवं डॉ. प्रज्ञा गोयल द्वारा प्रदान किए गए। संचालन कर्णगी ठाकुर एवं अरीशा खान द्वारा किया गया। आभार डॉ. निश्चल यादव ने माना।