धार, अग्निपथ। भोजशाला को लेकर हिंदू फ्रंट फार जस्टिस द्वारा लगाई गई याचिका पर सोमवार सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई टल गई। अब मार्च या अप्रैल में कोर्ट सुनवाई की अगली तारीख देगा। तब ही याचिका पर सुनवाई संभव है। याचिकाकर्ता की ओर से बताया जाना था कि भोजशाला का मुद्दा और इस परिसर की प्रकृति काशी-मथुरा व अयोध्या के समान है।
इसका धर्मस्थल उपासना अधिनियम से कोई संबंध नहीं है। इसलिए मूल याचिका को ही सुना जाए। सुप्रीम कोर्ट द्वारा सर्वे की रिपोर्ट के क्रियान्वयन पर जो रोक लगाई गई है, उसे हटाना चाहिए। किंतु सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजीव कुमार खन्ना की कोर्ट नंबर एक में सुनवाई नहीं हो पाई है।
दरअसल इस सर्वे के दौरान ही कमाल मौला वेल फेयर सोसाइटी ओर से अब्दुल समद द्वारा एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई थी। इसकी सुनवाई के बाद 1 अप्रैल 2024 सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि हाई कोर्ट के आदेश से जो सर्वे हो रहा है, वह यथावत जारी रहे। लेकिन इमारत को मूल स्वरूप में ही रखा जाए। जबकि सर्वे की रिपोर्ट प्रस्तुत की जाए लेकिन इस पर हाई कोर्ट आगामी कोई कार्रवाई नहीं करें। एएसआइ की रिपोर्ट आने के बाद भी अभी मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।
100 दिन चला था सर्वे
याचिकाकर्ता आशीष गोयल ने बताया कि हिंदू फ्रंट फार जस्टिस द्वारा 2022 में भोजशाला के हिंदू समाज को पूर्ण अधिकार देने के लिए हाई कोर्ट इंदौर खंडपीठ 2022 में याचिका दायर की गई थी। हमने सर्वे करवाने की मांग की थी। कोर्ट ने सर्वे का आदेश दिया था। धार की ऐतिहासिक भोजशाला को लेकर 22 मार्च 2024 से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) ने सर्वे शुरू किया गया था, जो करीब 100 दिन तक चलाया गया। इसके बाद एएसआइ ने 15 जुलाई 2024 रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी थी। इस रिपोर्ट के क्रियान्वयन पर सुप्रीम कोर्ट की रोक है।
लागू नहीं
याचिकाकर्ता आशीष गोयल हिंदू पक्ष यानी हिंदू फ्रंट फार जस्टिस संस्था के माध्यम से विभिन्न तर्क रखे जाएंगे। इसमें यह भी मांग की जाएगी कि भोजशाला धर्मस्थल उपासना अधिनियम से संबंधित नहीं है। 1991 में बने इस अधिनियम में यह उल्लेख है कि एएसआइ द्वारा संरक्षित स्थान पर यह अधिनियम लागू नहीं होता है। भोजशाला का संरक्षण एएसआइ द्वारा किया जा रहा है। इसलिए यह मथुरा व काशी समान ही यह मामला भी है।
सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश द्वारा विभिन्न धार्मिक स्थलों की सुनवाई एक साथ की जाने की व्यवस्था में इसे शामिल नहीं किया जाए। आगामी कार्रवाई के लिए जो सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाई थी, उसे हटाया जाए।