नए नियमों से सीहोर में गिट्टी क्रेशर संचालक परेशान

राजस्व हानि का खतरा, कलेक्टर को सौंपा ज्ञापन

सीहोर, अग्निपथ। सीहोर जिले के गिट्टी क्रेशर संचालक सरकार द्वारा बनाए गए नए नियमों से मुश्किल में हैं। इन नियमों का पालन करना उनके लिए टेढ़ी खीर साबित हो रहा है, जिससे उद्योग ठप होने की कगार पर है और प्रदेश को राजस्व का नुकसान हो रहा है। गुरुवार को जिला क्रेशर एसोसिएशन ने इन समस्याओं को लेकर कलेक्टर को एक ज्ञापन सौंपा और जिओ टैगिंग से पहले विसंगतियों को दूर करने तथा रॉयल्टी में स्टांप ड्यूटी समाप्त करने की मांग की।

एसोसिएशन के सदस्य, जिनमें समाजसेवी सुरेन्द्र रल्हन, भारत गुप्ता, पंकज गुप्ता, राजेश राजपूत सहित अन्य प्रमुख संचालक शामिल थे, ने बताया कि उनका संगठन 1963 से स्टोन क्रेशर उद्योग के विकास और उसकी चुनौतियों के समाधान के लिए काम कर रहा है। उन्होंने कहा कि मौजूदा हालात में उद्योग चलाना बेहद मुश्किल हो गया है, जिससे उत्पादन में कमी आई है और सरकार को भी राजस्व का नुकसान हो रहा है।

सुधारों का आग्रह

क्रेशर संचालकों ने सरकार से निम्नलिखित प्रमुख सुधारों का आग्रह किया है। वे चाहते हैं कि माइनिंग प्लान में रॉयल्टी की मात्रा बढ़ाने पर लगने वाली स्टांप ड्यूटी को या तो खत्म किया जाए, या उसकी गणना वर्तमान भूमि के सरकारी मूल्य पर की जाए। अभी इसकी गणना अनुमानित उत्पादन क्षमता पर रॉयल्टी दर से होती है, जो कि अनुचित है।

इसके अलावा, राजस्व विभाग द्वारा सैटेलाइट सर्वे से किए जा रहे भूमि सीमांकन के बजाय राजस्व और खनिज विभाग का संयुक्त अभियान चलाया जाए, जिससे वास्तविक स्थिति में अंतर न आए और अवैध उत्खनन के मामले न बनें।

रॉयल्टी क्लियरेंस प्रक्रिया में संशोधन की मांग

एक और बड़ी समस्या पर्यावरण स्वीकृति में देरी है। वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के आदेशों का मध्य प्रदेश में सही से पालन न होने के कारण कई खदानों को पर्यावरण अनुमति नहीं मिल पा रही है, जिससे वे अवैध घोषित हो रही हैं। अन्य राज्यों में पुरानी खदानों को मान्यता मिली है, लेकिन मध्य प्रदेश में विभागीय निर्णय में देरी हो रही है। रॉयल्टी क्लियरेंस प्रक्रिया में भी संशोधन की मांग की गई है। पीडब्ल्यूडी और एमपीआरडीसी जैसे सरकारी विभाग सीधे कम मूल्य पर रॉयल्टी की कटौती कर लेते हैं, जिससे ठेकेदार खदानों से रॉयल्टी नहीं लेना चाहते और पट्टेदार अवैध श्रेणी में आ जाते हैं।

एनओसी की वैधता तक ही ईसी दे प्रदूषण नियंत्रण मंडल

प्रदूषण नियंत्रण मंडल से एनओसी की समस्या भी है। प्रदूषण नियंत्रण मंडल द्वारा एनओसी खदान की वैधता तक दी जाती है, लेकिन हर दो महीने में ईसी प्राप्त करना संभव नहीं है, क्योंकि इसमें ही दो महीने लग जाते हैं। एनओसी के अभाव में उत्पादन बंद करना पड़ता है। संघ ने अनुरोध किया है कि एनओसी की वैधता तक ही ईसी देने के निर्देश दिए जाएं।

साथ ही, पूर्व में स्वीकृत खदानों पर नए नियम पिछली तारीख से लागू न किए जाएं, क्योंकि यह न्याय के विरुद्ध है। डीआईए से प्राप्त ईसी की वैधता से संबंधित प्रकरण सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है, और इसकी वैधता हर दो महीने के लिए बढ़ाई जाती है (वर्तमान में 28 जुलाई 2025 तक वैध है)।

इन गंभीर समस्याओं के समाधान न होने के कारण इंदौर, भोपाल, धार, देवास, झाबुआ, अलीराजपुर, खंडवा, बुरहानपुर, आगर, शाजापुर, सीहोर सहित कई जिलों में स्टोन क्रेशर ओनर्स एसोसिएशन ने अनिश्चितकालीन उत्पादन और विक्रय बंद कर दिया है। एसोसिएशन ने शासन से इन समस्याओं का शीघ्र समाधान करने की अपील की है, जिससे न केवल पट्टाधारकों को राहत मिलेगी, बल्कि सरकार को भी राजस्व हानि से बचाया जा सकेगा।

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