फिर सस्ता होने लगा कच्चा तेल:मोदी सरकार में बीते 7 सालों में कच्चा तेल 41% सस्ता हुआ लेकिन पेट्रोल 27 और डीजल 43% महंगा हुआ

नई दिल्ली। कोरोना महामारी और ओपेक देशों के तेल उत्पादन बढ़ाने पर राजी होने के चलते कच्चे तेल की कीमत एक बार फिर कम होने लगी हैं। बीते 1 महीने में ही इसके दामों में इसकी कीमत में 9% की कमी आई है। पिछले महीने मार्च में कच्चा तेल 69 डॉलर प्रति बैरल पर थीं। जो अब 63 डॉलर से भी कम पर आ गई हैं। हालांकि इस दौरान जनता को पेट्रोल-डीजल की बढ़ी हुई कीमतों से कोई खास राहत नहीं मिली है। बीते 1 महीने में पेट्रोल 61 पैसे और डीजल 60 पैसे सस्ता हुआ है।

केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने रविवार को कहा था कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम घटेंगे तो उसका पूरा फायदा हम ग्राहक को देंगे। हालांकि मोदी सरकार में बीते 7 सालों में कच्चा तेल 41% सस्ता हुआ लेकिन पेट्रोल 27 और डीजल 43% महंगा हुआ है। ऐसे में आने वाले दिनों में पेट्रोल-डीजल कितना सस्ता होता है ये देखने वाली बात होगी।

55 रुपए तक जा सकता है कच्चे तेल का दाम
केडिया एडवाइजरी के डायरेक्टर अजय केडिया कहते है कि देश और दुनिया में कोरोना महामारी एक बार फिर फैलने लगी है। इसके चलते कई जगहों पर लॉकडाउन लगाया गया है। इससे पेट्रोल-डीजल की मांग में गिरावट आने की संभावना है। इसके अलावा ओपेक देशों ने मई से तेल उत्पादन बढ़ाने की बात भी कही है। ऐसे में कच्चा तेल आने वाले महीनों में 55 डॉलर तक आ सकता है।

मोदी सरकार ने बीते 7 सालों में नहीं दिया सस्ते कच्चे तेल का फायदा
आपको तो पता ही होगा कि पेट्रोल-डीजल कच्चे तेल से बनता है। और कच्चे तेल के दामों का असर पेट्रोल-डीजल कीमतों पर सीधे तौर पर पड़ता है। मई 2014 में जब मोदी पहली बार प्रधानमंत्री बने, तब कच्चे तेल की कीमत 106.85 डॉलर प्रति बैरल थी। वहीं अभी कच्चे तेल की कीमत 63 डॉलर प्रति बैरल पर है। इसके बावजूद भी पेट्रोल के दाम घटने के बजाए बढ़कर 100 रुपए प्रति लीटर के पार पहुंच गए हैं।

कच्चा तेल सस्ता होने पर जनता को ज्यादा फायदा मिलना मुश्किल
हमारे देश में अभी पेट्रोल का बेस प्राइज 32.79 रुपए और डीजल का बेस प्राइज 34.46 रुपए लीटर है। ये वो जिस रेट पर रिफायनरी सरकार को पेट्रोल-डीजल बेचती हैं। इसके बाद केन्द्र और राज्य सरकार इस पर भारी भरकम टैक्स वसूलती हैं। इसके बाद ये तेल कंपनियों के पास जाता है। तेल कंपनियां अपना मुनाफा बनाती हैं और पेट्रोल पंप तक पहुंचाती हैं।

ऐसे में अगर कच्चा तेल सस्ता होता भी है तो पेट्रोल-डीजल के बेस प्राइज में कमी आएगी। इस पर एक्साइज ड्यूटी (केंद्र सरकार द्वारा लगने वाला टैक्स) फिक्स लगाई ही जाएगी। इसके बाद राज्य सरकारें भी इस पर भारी टैक्स (वैट) वसूलती हैं। यानी पेट्रोल-डीजल महंगा है नहीं इसे टैक्स लगाकर महंगा बनाया जाता है।

टैक्स कम किए बिना ज्यादा राहत संभव नहीं जानकार कहते है कि देश और दुनिया में कोरोना महामारी एक बार फिर फैलने लगी है। इसके चलते कई जगहों पर लॉकडाउन लगाया गया है। इससे पेट्रोल-डीजल की मांग में गिरावट आने की संभावना है। इसके अलावा मई ये तेल उत्पादक देशों ने तेल उत्पादन बढ़ाने की बात कही है। ऐसे में कच्चा तेल आने वाले महीनों में 55 डॉलर तक आ सकता है।

अगर कच्चे तेल के दाम 55 डॉलर पर आ भी जाते हैं तो भी पेट्रोल के दाम में ज्यादा कमी नहीं आएगी। क्योंकि इस साल 27 जनवरी को जब कच्चा तेल 55 डॉलर के करीब था तब दिल्ली में पेट्रोल 86.30 और डीजल 76.48 रुपए प्रति लीटर था। वहीं अभी पेट्रोल 90.56 और डीजल 80.87 रुपए पर हैं।

मोदी सरकार ने पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी 3 गुना और डीजल पर 7 गुना बढ़ी
केंद्र सरकार एक्साइज ड्यूटी के जरिए टैक्स लेती है। मई 2014 में जब मोदी सरकार आई थी, तब केंद्र सरकार एक लीटर पेट्रोल पर 10.38 रुपए और डीजल पर 4.52 रुपए टैक्स वसूलती थी। ये टैक्स एक्साइज ड्यूटी के रूप में लिया जाता है।

मोदी सरकार में 13 बार एक्साइज ड्यूटी बढ़ाई गई है, लेकिन घटी सिर्फ तीन बार। आखिरी बार मई 2020 में एक्साइज ड्यूटी बढ़ी थी। इस वक्त एक लीटर पेट्रोल पर 32.90 रुपए और डीजल पर 31.80 रुपए एक्साइज ड्यूटी लगती है। मोदी के आने के बाद केंद्र सरकार पेट्रोल पर तीन गुना और डीजल पर 7 गुना टैक्स बढ़ा चुकी है।

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