फिश पॉट की तर्ज पर बना दी इंसानों को सांस देने वाली मशीन

उज्जैन के इलेक्ट्रिशियन का प्रयोग, पहले कूलर से बना चुके हैं सैनेटाइजर मशीन

उज्जैन। देश भर में बढ़ते कोरोना संक्रमण और ऑक्सीजन की कमी के कारण कई लोग अपनी जान गंवा बैठे है। परिवार के परिवार अब उजडऩे लगे है। ऐसे में उज्जैन के युवा इलेक्ट्रिशियन गौरव ने कुछ अलग कर दिखाया है। गौरव ने फिश पॉट में जैसे मछलियों को ऑक्सीजन दी जाती है वैसे ही इंसानों के लिए एक मशीन तैयार की है।

गौरव मालपानी ने बताया कि वर्तमान हालात में ऑक्सीजन के लिए लोग कई तरह के जतन कर रहे हैं। ऐसे में मुझे आइडिया आया कि जिस तरह फिश पॉट में मछलियों को ऑक्सीजन दी जाती है, वैसे ही मशीन इंसानों के लिए भी बनाई जा सकती है। मशीन में एक कम्प्रेसर लगाया गया है, जिसके द्वारा पॉट में हवा जाती है। चूंकि पॉट में पहले से आधा पानी भरा हुआ होता है और हवा जाने के बाद पॉट में यानी शुद्ध हवा से भरा जाता है। पानी और हवा मिक्स होने के बाद इसमें ऐसा सिस्टम फिट किया गया है जो ऑक्सो सेट तक यह ऑक्सीजन पहुंचाता है।

ऑक्सोसेट के माध्यम से कोई भी अपने शरीर में ऑक्सीजन कि कमी को पूरा कर सकता है। इसकी कीमत की हम बात करें तो यह आसानी से 600 से 700 रुपए में हमें मिल जाएगी। यह खास कर उन मरीजों के लिए मैंने तैयार किया है जो होम आइसोलेट है और जिनका ऑक्सीजन लेवल 7 प्रतिशत तक गिरता है। यह केवल उन्हीं के इस्तेमाल के लिए लाई जा सकती है। मशीन में ऑक्सीजन के फ्लो को कम-ज्यादा भी किया जा सकता है।

गौरव का दावा है कि अगर यह मशीन कारगार साबित हुई तो इसे बनाए जाने की विधि भी वो सोशल मीडिया पर शेयर करेंगे ताकि आम लोग घर ही इसका निर्माण कर सके।

कार के कम्प्रेसर से बनाई है बड़ी मशीन

गौरव ने बताया कि ये मशीन फिश पॉट में लगने वाले मशीन से ही बनाई है। अगर सरकार हमें इसमें मदद करती है और इसको बनाने के लिए संसाधन उपलब्ध करवाती है तो यह काफी कारगर साबित होगी। इनिशियल लेवल पर, अभी इसके साथ गौरव बड़ी मशीन पर भी काम कर रहे है। जिसमें उन्होंने अपनी कार के कम्प्रेसर का इस्तेमाल किया है। इस काम में मित्र राजू माहेश्वरी सहयोग कर रहे है।

इस पूरे मामले पर उज्जैन जिला अस्पताल के डॉक्टर ने कहा कि फिलहाल अभी मशीन हमने देखी नहीं है लेकिन इस आपातकाल में प्रैक्टिकल होना चाहिए और इस तरह की मशीनों का हम स्वागत करते हैं। हालांकि यह कितनी कारगर उन मरीजों के लिए साबित होगी जिनको ऑक्सीजन की जरूरत है वह प्रैक्टिकल के बाद ही पता चल पाएगा।

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