बम…
मेरे अस्पताल को बम से उड़ाने की धमकी दी थी। यह रहस्योंदघाटन पिछले सप्ताह हुआ। जब प्रदेश के स्वास्थ्य मुखिया का आगमन हुआ था। तब एक अस्पताल संचालक ने यह बात कही। डॉ. की बात सुनकर वहां मौजूद हर कोई आश्चर्य में था। खुद प्रदेश के स्वास्थ्य मुखिया अचरज में आ गये। उन्होंने सवाल कर लिया। किसने दी थी यह धमकी-कब दी थी-उसका नाम बताएं। बस यह सवाल सुनकर शिकायत करने वाले की बोलती बंद हो गई। जोश-जोश में झूठ तो बोल गये, मगर नाम बताने की बारी आई तो चुप हो गये। वहां मौजूद सभी डॉक्टर उनका मुंह देखने लगे। मगर उनकी जुबान नहीं हिली। यह वही संचालक है, जिन पर 1 पेटी का जुर्माना हुआ है-नपती भी हुई है। लेकिन झूठ बोलकर फंस गये। तो अब चुप है। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हंै।
हमको भी बताओ…
बात एक बार फिर स्वास्थ्य मुखिया की है। जिनसे मिलने प्रतिनिधिमंडल गया था। विषय था-अपने उम्मीद जी पर अकुंश लगाओ। शिकायत तब हुई, जब उम्मीद जी निकल गये। सभी ने सोचा कि स्वास्थ्य मुखिया उनकी बातों पर ध्यान देंगे। मगर खुद डॉ. से मंत्री बने मुखिया ने पलटवार किया। उन्होंने एक डॉ. से पूछ लिया। पहले तो यह बताओ कि…1 पेटी की कीमत वाला इंजेक्शन कौनसा आता है। हम भी डॉ. रह चुके हैं। हमको भी नहीं पता है। यह सवाल सुनते ही शिकायत करने गये डॉक्टरों का चेहरा देखने लायक था। जाते-जाते स्वास्थ्य मंत्री ने आपसी समन्वय बनाकर काम करने की सलाह दी और बैठक के लिए निकल गये। शिकायत करने वाले अब गुनगुना रहे हैं…बड़े बेआबरू होकर तेरी कूचे से हम निकले…मगर हमको तो अपनी आदत के अनुसार चुप रहना है।
सवाल…
तो अपने सीधे-सादे मामाजी दबाव में आ गये। अपने वजनदार जी विकास पुरुष और पहलवान के। जिन्होंने जिद करके घोषणा करवा ली। राजनीति में घुटे-घुटाये मामाजी ने भी घोषणा कर दी। जिसके बाद श्रेय लेने की होड़ शुरू हुई। वजनदार जी ने जिद और पहलवान ने पुराने पत्रों का हवाला देकर श्रेय लिया। विकास पुरुष भी चलती गाड़ी में सवार हो गये। घोषणा वाले दिन, सोशल मीडिया पर ऐसा लग रहा था। जैसे…बस…आज घोषणा हुई-कल कॉलेज तैयार-और परसो से इलाज शुरू। मगर किसी ने भी अपनी साइट पर यह नहीं लिखा कि…मेडिकल कॉलेज कब तक तैयार होगा। अगले 2023 के पहले या फिर उसके भी बाद। यही आम जनता का सवाल है। आखिर घोषणा पर अमल कब होगा। क्योंकि सभी को पता है कि… अपने मामाजी घोषणावीर हंै। आम जनता केवल यह जानना चाहती है कि…अमल कब तक होगा? इस सवाल पर तीनों माननीय चुप हैं। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।
इज्जत…
शनिवार को कमलप्रेमियों की इज्जत दांव पर लग गई थी। कारण-वर्चुअल पत्रकारवार्ता का आयोजन रख दिया था। अपने विकास पुरुष-वजनदार-पहलवान-ढीला-मानुष और लेटरबाज जी ने। बकायदा सोशल मीडिया पर सूचना डाल दी गई। मगर उसी दिन पंजाप्रेमी पूर्व मुख्यमंत्री आये थे। जिन्होंने सर्किट हाऊस पर खबरचियों को बुला लिया। अब कमलप्रेमी नेता दुविधा में पड़ गये। वर्चुअल-वार्ता खतरे में पड़ गई। नतीजा तत्काल फैसला बदला। संगठन की वार्ता को तत्काल सरकारी भवन में बुला लिया गया। ऐसा हम नहीं खुद कमलप्रेमी बोल रहे हंै कि इज्जत दांव पर लग गई थी। जो नया कदम उठाने से बच गई। वरना, वर्चुअल में कोई भी नजर नहीं आता। अब इसमें हम क्या कर सकते हैं। हम तो बस आदत के अनुसार चुप रहेंगे।
किसने बनवाया…
आखिरकार पीटीएस में सामाजिक संगठनों के सहयोग से ऑक्सीजन प्लांट तैयार हो गया। उन सभी को बधाई। जिन्होंने तन-मन-धन से सहयोग किया। मगर अब बारी श्रेय लेने की है। जिसमें अपने कमलप्रेमी हमेशा अव्वल रहते है। तभी तो अपने विकास पुरुष ने पोस्ट अपलोड कर दी। विधायक निधि की सौगात। जबकि इसे स्थापित करने में सामाजिक संगठनों ने भी सहयोग दिया है। बेचारे समाजसेवी संगठन आश्चर्य में है। मगर चुप है। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।
मेरे अंगने में…
यह गीत तो हमारे अधिकांश पाठकों ने सुना होगा। मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है। यह गीत कमलप्रेमी गुनगुना रहे हैं। जिसके पीछे कारण भी उचित है। जिले में कहीं भी कोविड सेंटर का शुभारंभ हो। वहां पर यह त्रिमूर्ति…विकास पुरुष-वजनदार और लेटरबाज जी, हमेशा नजर आते हैं। मगर जब बात अपने विकास पुरुष के दक्षिण की आती है। तो विकास पुरुष को मेरे अंगने में…वाला गीत याद आ जाता है। नतीजा वजनदार जी और लेटरबाज जी को तत्काल अलग कर दिया जाता है। केवल विकास पुरुष ही नजर आते हैं। तभी तो कमलप्रेमी गुनगुना रहे हंै, लेकिन हमको तो आदत के अनुसार चुप रहना है।
पीछे बैठो…
अपने मामाजी की बैठक में हर कोई खुद को वीआईपी समझता है। इसीलिए प्रथम पंक्ति की कुर्सी पर बैठना अपना अधिकार समझता है। जैसे अपने ढीला- मानुष और लेटरबाज जी समझ बैठे। बैठक शुरू होने के पहले ही आ गये और प्रथम पंक्ति की कुर्सी पर जम गये। अपना अधिकार समझकर। इधर प्रशासन के लिए यह नई मुसीबत खड़ी हो गई। व्यवस्था के अनुसार दोनों के लिए पीछे की पंक्ति में कुर्सी थी। आखिरकार, प्रशासन को कड़ा कदम उठाना पड़ा। दोनों को निर्देश दिये कि … पीछे बैठो। तभी तो तस्वीर में पीछे बैठे दोनों नजर आये थे। जिसके बाद दोनों ही चुप है। तो हम भी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
तस्वीर…
हर तस्वीर के 2 पहलू होते हैं। आगे जो दिखता है। पर्दे के पीछे कुछ और होता है। जैसे इस तस्वीर को गौर से देखिए। जिसमें मंगलनाथ वाले बाबा खड़े नजर आ रहे है। जबकि प्रदेश के स्वास्थ्य मुखिया के साथ विकास पुरूष- वजनदार जी आदि बैठे है। तस्वीर देखकर यही लगता है कि…नये नवेले कमलप्रेमी बाबा की इज्जत क्या है। यह तस्वीर का एक पहलू है। अब दूसरा पहलू भोजन पर नजर आया। कमलप्रेमियों ने यहां पर भी बाबा को नजर अंदाज कर दिया था। मगर प्रदेश के स्वास्थ्य मुखिया ने पहले ही बाबा के साथ हुई लापरवाही को देख लिया था। इसलिए उन्होंने बाबा को स्पेशल नाम लेकर भोजन की टेबल पर बुलवाया। साथ में भोजन किया और जाते-जाते कमलप्रेमियों को बोल गये। यह हमारे खास व्यक्ति है। जिसके बाद कमलप्रेमी चुप हैं। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।
वीआईपी…
मामाजी के आगमन पर, जब ढीला- मानुष और लेटरबाज जी खुद को वीआईपी मानकर प्रथम पंक्ति में बैठ सकते हैं। तो चुने गये जनप्रतिनिधि की तो बात ही अलग है। जैसे अपने महिदपुर के बड़बोले नेताजी। बैठक के दौरान उनको लघुशंका लगी। तो वह वीआईपी व्यवस्था की तरफ बढ़ गये। मगर इस बार कोरोना के चलते व्यवस्था सख्त थी। अपने उम्मीद जी ने वीआईपी जगह पर चौकीदार बैठा रखा था। नतीजा…अपने बड़बोले नेताजी को रोक दिया गया। बेचारे…आश्चर्य में पड़ गये। मगर मजबूरी थी तो…जनरल का ही उपयोग करना पड़ा। जिसके बाद अपने बड़बोले जी नाराज है, मगर चुप है। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हंै।
साधुवाद…
अपने उम्मीद जी को एक नहीं अनेकों बार साधुवाद। जिन्होंने पहली दफा इतना सख्त कदम उठाया। अपने उम्मीद जी ने इस बार इतनी सख्ती दिखाई कि…बैठक के अंदर की तो बात छोडि़ए…बृहस्पति भवन में भी किसी भी छर्रे को प्रवेश नहीं मिला। जबकि अंदर जाने के लिए कई छर्रे मौजूद थे। कुछ ने तो विवाद भी किया। मगर अपने उम्मीद जी की सख्ती के चलते लाचार हो गये। सभी को बाहर ही रुकना पड़ा। अपनी इस कदर हुई बेईज्जती पर अब सभी छर्रे चुप हैं। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।
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प्रशांत अंजाना
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