केवीके में सौ से ज्यादा किसान रोज फोन पर फसल, खाद, बीज की ले रहे सलाह
उज्जैन, अग्निपथ। संभाग की सबसे नकद फसल सोयाबीन की बुवाई का समय निकट आने के साथ ही किसानों की सक्रियता बढ़ गई है। उज्जैन कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) पर प्रतिदिन सौ से ज्यादा किसान फोन करके कृषि वैज्ञानिकों से सलाह से रहे हैं कि इन साल नुकसान से बचने के लिए क्या-क्या उपाय करें।
कृषि विज्ञान केंद्र के प्रधान वैज्ञानिक आरपी शर्मा का कहना है कि हम रोजाना 100 से ज्यादा किसानों को उनकी समस्या का समाधान बता रहे हैं। सभी किसानों को फसल विविधिकरण के प्रोत्साहित किया जा रहा है। वहीं उन्हें सलाह दी जा रही है कि वे सोयाबीन की नई किस्मों के बीजों का इस्तेमाल करें। प्रजातियों को बदलें, जिससे उनकी पैदावार अच्छी हो।
पिछली बारिश में पुरानी किस्मों को सबसे ज्यादा नुकसान : केवीके के वैज्ञानिकों के खेत विजिट में सामने आया था कि जिन किसानों ने पुरानी वैरायटी लगाई थी, बारिश और आंधी तूफान की वजह से उनकी सबसे ज्यादा फसल को नुकसान हुआ था। दस साल से ज्यादा पुरानी वैरायटी को किसानों छोडऩे की सलाह दी गई है। दो साल पहले कुछ नई वैरायटियों को किसानों से लगाने की सलाह दी गई थी। इसमें 2034,2029 आदि वैरायटी शामिल है।
इस साल 15 किस्में अधिसूचित
इस वर्ष विभिन्न क्षेत्रों के लिए कुल 15 किस्मों को अधिसूचित किया गया है। जिनमें से एमएसीएस 1407, एनआरसी 130, आरएससी 10- 46, आरएससी 10-52 एवं एएमएसएमबी 5-18 की अनुशंसा मध्य क्षेत्र के लिए की गई हैं। इसके अतिरिक्त हाल ही मेंम मध्य क्षेत्र के लिए 4अन्य किस्मों एनआरसी138, एएनआरसी 142, आरवीएसएम 2011-35एवं एएमएस 100-39, की पहचान की
गयी है जिससे कृषकों के पास कई प्रकार की किस्मों के विकल्प उपलब्ध हैं।
मुनाफे के लिए किसान बदले बुवाई की तकनीक
कृषि वैज्ञानिकों की सलाह है कि सोयाबीन की फसल का ज्यादा उत्पादन लेने के लिए किसान को बुवाई की तकनीक में बदलाव करना चाहिए। परंपरागत तकनीक को छोड़ते हुए आधुनिक तकनीक के इस्तेमाल से किसान ज्यादा लाभ ले सकते हैं।
प्रगतिशील किसान योगेंद्र कोशिक कहते हैं कि अब प्रति बीघा 3 से चार क्विंटल ही उत्पादन सोयाबीन का हो रहा है। यानी 12 से 15 हजार रुपए बीघा मिलता है। इसमें पांच हजार रुपए तक खर्चा आ जाता है। किसान और उसके परिवार की मेहनत अलग है। जबकि मक्का 10 से 15 बीघा में आती है। दोनों का हिसाब बराबर आता है। परन्तु मक्का लगाने से खेत की उर्वरकता क्षमता बढ़ जाती है।
भूमि की उर्वरता बचाने के लिए दूसरी फसल लगाएं
एक ही खेत में बार-बार सोयाबीन की पैदावार लेने से जमीन की उपजाऊ क्षमता कम हो जाती है। इसके लिए किसानों को सलाह दी जाती है कि वे खेतों में कभी मूंग,कभी उड़द और कभी मक्का की फसल का भी उत्पादन लें। परन्तु संभाग में 90 प्रतिशत रकबा सोयाबीन का ही है। इससे किसानों को ज्यादा लाभ नहीं मिल पा रहा है।
नुकसान के डर से नहीं बदलते किसान फसल
संभाग में पहले ज्वार की फसल की बुवाई बहुत अधिक होती थी। परन्तु अब गिने-चुने किसान ही इसे लगाते हैं। इसके पीछे का कारण कम रकबे में फसल लगने से पक्षी फसल को नुकसान पहुंचाते हैं। कौशिक कहते हैं कि अगर कृषि विभाग और अन्य जानकार क्लस्टर में इसे लगाने के लिए किसानों को प्रेरित करें तो किसानों को फायदा मिल सकता है। कम से कम एक हजार बीघा में इसे लगाने पर किसान की फसल को पक्षियों से नुकसान नहीं होगा।
मूंग,उड़द के बाद दूसरी फसल ले सकते
जो किसान मूंग,उड़द की फसल लेते हैं। उन्हें 80 दिन बाद दूसरी फसल लेने का मौका मिल जाता है, क्योंकि दोनों ही फसले जल्दी पक जाती है। उड़द पर खर्च ही 1500 रुपए आता है। वहीं मूंग पर 4 से 5 क्विंटल का उत्पादन मिल जाता है।
किसान बाजार से बीज खरीद सकते हैं। अभी सरकार की कोई स्कीम नहीं आई है। पिछले जो नुकसान हुआ था, उस तरह इस बार नुकसान न हो इसके लिए किसानों को अच्छे किस्म के बीज से बुवाई करनी होगी। कृषि वैज्ञानिकों की सलाह के मुताबिक उत्पादन लें। – सीएल केवड़ा, उपसंचालक, कृषि विभाग उज्जैन।
18 से 21 मई तक 160 कृषि विभाग के अफसरों,किसानों को सोयाबीन उत्पादकता बढ़ाने के लिए जलवायु स्मार्ट प्रौद्योगिकी और पद्धतियों का इस्तेमाल करने का ऑनलाइन प्रशिक्षण दिया गया है। हर सप्ताह किसानों को संस्थान से सलाह दी जाती है। किसान उसके अनुसार उत्पादन करेंगे तो लाभ ज्यादा और नुकसान कम होगा। -डॉ बीयू दुपारे, प्रिंसिपल साइंटिस्ट, इंडियन इंस्टीट्यूट सोयाबीन रिसर्च सेंटर इंदौर