उज्जैन, अग्निपथ। श्री महाकालेश्वर मंदिर में 25 जुलाई से श्रावण मास के चलते उत्सव मनाया जाएगा। लेकिन अभी तक इसको लेकर जिला प्रशासन ने कोई ठोस निर्णय नहीं लिए हैं। न ही मंदिर प्रबंध समिति की बैठक की है। इसके साथ ही पालकी विस्तारीकरण के चलते कहां से निकाली जाएगी इस बात पर भी निर्णय लिया जाएगा। लेकिन यह सब आखिर क्यों किया जा रहा है। जबकि श्रद्धालुओं को कोरोना के चलते दर्शन करने की अनुमति नहीं होगी। केवल परंपरा के लिए तो इसका निर्वहन मंदिर में पालकी घुमाकर भी किया जा सकता है।
बाबा महाकाल की पहले सवारी 26 जुलाई को दूसरी 2 अगस्त को तीसरी 9 अगस्त को चौथी 16 अगस्त को पांचवी 23 अगस्त को छठी 30 अगस्त को और सातवीं सवारी 6 सितंबर को निकाली जाएगी। इस बार 7 सवारियां भगवान महाकाल की निकाली जाएंगी। जिनका रूट पूर्व वर्ष की भांति ही रहेगा। हालांकि कोरोना के चलते इस बार भी सवारी निकालने के दौरान श्रद्धालुओं की संख्या सीमित मंदिर प्रशासन रखेगा लेकिन पालकी मंदिर के किस द्वार से निकाली जाएगी। इस बात पर मंथन करना आवश्यक है। क्योंकि मंदिर के जिस द्वार से पालकी निकलती है, उसके सामने बड़े-बड़े गड्ढे हैं और मंदिर विस्तारीकरण कार्य के तहत निर्माण सामग्री पड़ी हुई है। ऐसे में इस द्वार से पालकी निकालना मुमकिन नहीं है।
गौरतलब रहे कि कोरोना संक्रमण के बावजूद बड़ी संख्या में श्रद्धालु भगवान महाकाल की सवारियों को देखने के लिए उज्जैन आते हैं। इसके लिए मंदिर प्रशासन ऑनलाइन व्यवस्था के तहत श्रद्धालुओं को दर्शन करवाने की सुविधा प्रदान करता है। लेकिन इस बार पालकी निकालना परेशानी का सबब बन सकता है।
श्रद्धालुओं का प्रवेश करना पड़ेगा बंद
सवारी निकालने के दौरान पालकी मुख्य चौराहे से होते हुए बड़ा गणेश मंदिर और फिर यहां से नृसिंह घाट होते हुए राम घाट पहुंचेगी। ऐसे में 4 नंबर गेट से श्रद्धालुओं का प्रवेश बंद करना पड़ेगा। मंदिर की व्यवस्था प्रभावित होगी और श्रद्धालुगण भी मंदिर में प्रवेश करने की जगह सवारी को देखने के लिए भीड़ बढ़ाएंगे। अब देखना यह है कि पालकी को मंदिर प्रशासन किस रास्ते से बाहर निकलता है और अंदर लाता है। केवल एक मार्ग मंदिर प्रांगण से देवास वाली धर्मशाला होते हुए महाकाल प्रवचन हॉल गेट ही शेष रह गया है। यहीं से मंदिर के अधिकारी सवारी निकाले जाने पर मंथन कर रहे हैं।
ऑनलाइन दर्शन सुविधा बढ़ानी होगी
श्री महाकालेश्वर मंदिर में फिलहाल सुबह 6 बजे से लेकर रात्रि 8 बजे तक 3500 श्रद्धालुओं को ऑनलाइन बुकिंग की सुविधा प्राप्त है। लेकिन श्रावण मास शुरू होते ही देश सहित विदेश से बड़ी संख्या में श्रद्धालु भगवान महाकाल के दर्शन को आएंगे जिसके चलते ऑनलाइन दर्शन बुकिंग की संख्या मंदिर प्रशासन को बढ़ानी पड़ेगी। इसके साथ ही 250 रुपए शीघ्र दर्शन काउंटर भी बढ़ाने पड़ेंगे।
मंदिर में भी निभाई जा सकती है परंपरा
श्री महाकालेश्वर मंदिर में कोरोना के चलते सीमित संख्या में श्रद्धालुओं को प्रवेश दिया जा रहा है। साथ ही सवारी के दौरान पंडे पुजारियों की संख्या भी सीमित रखी जाएगी। वहीं सवारी रूट भी छोटा रहेगा और श्रद्धालुओं को कोरोना का भय दिखाकर भगवान महाकाल के सवारी दर्शन भी नहीं करने दिए जाएंगे। ऐसे में आखिर जिला प्रशासन इतनी मशक्कत क्यों कर रहा है। परंपरा का निर्वहन मंदिर में भी किया जा सकता है।
मंदिर के सभामंडप में पूजन पश्चात सवारी को मंदिर प्रांगण में लाया जाकर यहीं से वापस कोटितीर्थ कुंड लाया जाए। यहां पर इसके जल से भगवान का पूजन अर्चन किया जाए और वापस भगवान को उनके स्थान पर स्थापित कर दिया जाए। इस तरह से भगवान महाकाल की सवारी निकाले जाने की परंपरा का निर्वहन भी होगा और जो इस पर लाखों रुपए खर्च हो रहे हैं, वह भी बच जाएंगे।