झाबुआ। ज़ीरो टॉलरेंस से लेकर संगठन को सर्वोपरि मानने वाली सत्ताधारी भाजपा में जीरो टॉलरेंस से लेकर संगठन में क्या स्थिति है इसका उदाहरण भाजपा के सर्वोच्च संगठन को उस आदिवासी बहुल जिले झाबुआ में देखने मिल सकता जहां 2003 के बाद से वर्तमान तक भगवा का बोल बाला है।
वैसे तो इस जिले में भाजपा के संगठनात्मक चुनाव से लेकर जिले में थोपे गए जिलाध्यक्षों का इतिहास स्वयं संगठन जनता है। किंतु किसी भी जिलाध्यक्ष ने संगठन की लक्ष्मण रेखा उर्फ मर्यादा को इतना तार तार नहीं किया जितना वर्तमान जिलाध्यक्ष के कार्यकाल में संगठन की मान मर्यादाएं और आमजन तो ठीक अब अनुसांगिक संगठन स्वयं को जनता के हित में सडक़ पर उतर कर किये गए कार्यों का विरोध कर संगठन की मर्यादा को बचाने का प्रयास करते हुए पुतला दहन कर सार्वजनिक आक्रोश व्यक्त करना पड़ा। सम्भवत: यह किसी भाजपा जिलाध्यक्ष के कार्यकाल में नहीं हुआ होगा।
जिले में अधिकांश जिलाध्यक्षों को किसी न किसी आरोप में हटना पड़ा, जिनके कारण भी अलग-अलग है। कुछ इस तरह के आरोप वर्तमान जिलाध्यक्ष पर भी लगे लेकिन संभागीय और प्रदेश संगठन ने इस बार क्या ठानी की लगातार आरोपों की जद में जकड़ते जिलाध्यक्ष को बदलने का नाम ही नहीं ले रही। जिलाध्यक्ष के कार्यकाल में मंडल स्तर से लेकर जिला कार्यकारिणी घोषित करने के साथ ही जिले की बामनिया पंचायत की महिला मानसिक और शारीरिक शोषण का आरोप लगा चुकी है।
तो एक अन्य महिला जिसका पति भाजपा का ही सदस्य है कि पत्नी ने भी शारीरिक शोषण के आरोप लगाए। जिसकी आडियो सोशल मीडिया पर भी खूब वायरल हुआ तो समाचारों की भी सुर्खियां बना। इसके साथ ही जिले में गठित मण्डल अध्यक्ष से लेकर जिला कार्यकारिणी को लेकर भी कुछ भाजपाइयों ने सोशल मीडिया पर खुल कर नाराजगी जताई। सोशल मीडिया की नाराजगी पर गत माह हुए तबादलों ने मोहर लगा दी। तबादलों की आपसी तकरार ही संगठन की लक्ष्मण रेखा पार करने की सत्यता उजगर कर गयी।
तबादलों की तकरार के चलता भाजपा के प्रथम पायदान के संगठन ने कांग्रेसी विचारधारा के कर्मचारियों और उनके रिश्तेदारों जिनका तबादला प्रशासनिक हुआ था के तबादले निरस्त या संशोधित हुए इसी को लेकर अभाविप को जनता के समर्थन में सडक़ पर उतर आक्रोश व्यक्त करते हुए न चाह कर भी पुतला फूंकना पड़ा।
अभाविप के इस आक्रोश के बाद भी सर्वोच्च संगठन जिला भाजपा का उद्धार नहीं करती तो तय है इसका असर आगामी समय में आलीराजपुर जिले की जोबट विधानसभा के होने वाले चुनाव में तात्कालिक परिणाम तो मिलेंगे ही, साथ ही आने वाले विधानसभा चुनावों में भी खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। बताते हैं तबादलों की तकरार की मुख्य वजह जिले के विभिन्न मंडलों में बनाए गए नौसिखिये मण्डल अध्यक्षों के साथ ही मौकापरस्त लोगों को जिला कार्यकारिणी में शामिल करना बताया जा रहा है।
खैर तबादलों की तकरार को भी सर्वोच्च संगठन जिलाध्यक्ष पर महिला द्वारा लगाए आरोपों की तरह सरकारी स्तर पर निपटा कर जिलाध्यक्ष को क्लीन चिट देगी या अन्य पूर्व जिलाध्यक्षों की तर्ज पर नए जिलाध्यक्ष का फैसला अचानक होगा यह वक्त ही तय करेगा। वक्त तय करने में देर न लगे अन्यथा अभी तो छात्र संगठन सडक़ पर आया भविष्य के देर न हो जाए कहीं देर न हो जाए तराना गाते हुए जमीनी भाजपाइयों को भी पार्टी हित में विरोध व्यक्त करना पड़े।