जलविहार करते महाकाल डूबने से बचे, नौका में भर गया था पानी

फव्वारे के नीचे आने के कारण जल भराया, लोग वीरभद्र अखाड़ा तोडऩे का परिणाम बता रहे

उज्जैन, अग्निपथ। उमा सांझी महोत्सव में भगवान महाकाल और पार्वती को कोटि तीर्थ कुंड में नौका विहार कराया जाता है। लेकिन मंदिर गलियारों में चर्चा है कि नौका विहार के दूसरे दिन सोमवार सुबह कुंड में नौका डूबी हुई मिली। लोग इसको प्राचीन वीरभद्र अखाड़ा तोडऩे का परिणाम बता रहे हैं। लेकिन सहायक प्रशासक ने केवल नौका डूबना बताया। उनका कहना है कि भगवान महाकाल कुंड में नहीं डूब पाए।

उमा-सांझी महोत्सव में भगवान महाकाल और मां पार्वती को रविवार 3 अक्टूबर की रात को नौका विहार कराया गया था। सोमवार 4 अक्टूबर की सुबह देखा तो नौका विहार वाली नाव डूबी हुई थी। मन्दिर प्रशासन ने इस घटना को छिपाने का पूरा प्रयत्न किया, पर दर्शनार्थियों ने देख लिया और खबर फैल गई।

यह पहली बार है कि जब नौका विहार करते नौका डूब गई हो। कुछ लोग इस घटना को वीरभद्र अखाड़ा तोडऩे का फल भी बता रहे हैं, तो कई इसे सामान्य घटना। लेकिन इसको लेकर मंदिर के पुजारी-पुरोहितों में नौका डूबने को लेकर खासी चर्चा व्याप्त है।

हालांकि इस मामले को स्थिति पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हो पाई कि नौका के साथ भगवान महाकाल (जटाशंकर)डूबे अथवा नहीं। लेकिन देखने वाली दर्शनार्थी ने ही इस बात का खुलासा किया कि नौका विहार करते भगवान महाकाल डूब गए हैं।

डूबी नहीं, फव्वारे का जल भरा

मामले की जानकारी देते हुए मंदिर के सहायक प्रशासक प्रतीक द्विवेदी ने बताया कि भगवान महाकाल की नौका डूबी नहीं थी, वरन तैरते हुए तालाब के फव्वारे के पास जाने के कारण उसमें फव्वारे का जल भरा गया था और नौका जल के समतल हो गई थी। लेकिन भगवान महाकाल की प्रतिमा डूबी नहीं थी। सुबह के वक्त नौका को बाहर निकलवा कर अपनी जगह पर स्थापित करवाया और नौका बांधने वाले कहार खेमचंद को आगे से चेतावनी देते हुए ठीक तरह से काम करने की हिदायत दी गई। उन्होंने यह भी बताया कि नौका पूरी तरह से डूबने का सवाल नहीं उठता क्योंकि नौका को दोनों छोरों से रस्सी के सहारे बांधा जाता है। जिससे डूबने की संभावना नहीं रहती।

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