पितृपक्ष की चतुदर्शी पर सिद्धवट और गयाकोठा में उमड़े श्रद्धालु

आज पितृ देव होंगे विदा, कल माता रानी पधारेंगी

उज्जैन, अग्निपथ। मंगलवार को पितृपक्ष की चतुर्दशी पर अपने पितरों को मानने वालों का सैलाब सिद्धवट और गयाकोठा पर उमड़ पड़ा। दोनों ही मोक्ष स्थलों पर श्रद्धालुओं की भीड़ देखी गई। बुधवार को सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या है। पंचांग की गणना के अनुसार इस बार महालय श्राद्ध पर्व काल पर अलग-अलग प्रकार के योग संयोग बने। आने वाले संयोग में यदि हम बात करें तो सर्वपितृ अमावस्या पर इस बार गज छाया योग का भी निर्माण हो रहा है साथ ही इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग भी बनेगा।

चतुदर्शी पितृों के लिए अमावस्या की ही तरह मोक्ष दायिनी होती है। इसी के चलते सिद्धवट और गयाकोठा पर श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा। यहां तक कि दोनों की मोक्ष धाम पर पैर रखने की जह तक नहीं बची थी। श्रद्धालु किसी भी तरह से अपने पितरों के निमित्त मोक्ष का भाव रखकर तर्पण पिंडदान करवाने को उत्सुक दिखे। सिद्धवट पर तो प्रेतशिला के चलते यहां पर सुबह से ही श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा। कहने को तो यहां पर पुलिस कर्मी तैनात किए गए थे। लेकिन मंदिर समिति के सदस्यों ने व्यवस्था को संभालते हुृए श्रद्धालुओं को दर्शन करवाए। लोग अपने पितरों के निमित्त दूध और जल लेकर भगवान को अर्पित करते रहे। इस अवसर पर लोगों ने दान पुण्य भी किया।

गज छाया योग के साथ ही आज सर्वार्थ सिद्धि योग

पं. अमर डिब्बावालाा ने बताया कि धर्म शास्त्रीय मान्यता के अनुसार देखें तो जब सूर्य का हस्त नक्षत्र पर परिभ्रमण हो साथ ही अमावस्या तिथि का संयोग हो और यदि बुधवार जैसे शुभ वार की साक्षी हो तो गज छाया योग बनता है। हालांकि गणना में भी अलग-अलग प्रकार के मत प्राप्त होते हैं फिर भी अमावस्या तिथि, सूर्य का हस्त नक्षत्र पर परिभ्रमण और शुभ दिवस की साक्षी इन्हें प्रमुख बताया गया है। इस बार बुधवार के दिन हस्त नक्षत्र के साथ अमावस्या का पूरा योग गज छाया योग का निर्माण कर रहा है। ऐसे समय कुतप काल में यदि पितरों के निमित्त श्रद्धा व्यक्त की जाए जिसके अंतर्गत पितरों के निमित्त तर्पण विधान, पिंड दान, ब्राह्मण भोजन, गाय, कौवा श्वान भिक्षुक को भोजन का दान तथा तीर्थों पर वैदिक ब्राह्मण को वस्त्र, पात्र का दान करने से पितरों को उसका पुण्य फल प्राप्त होता है।

क्या है गज छाया योग

पौरााणिक मान्यताओं के अनुसार गज छाया योग के संबंध में अलग-अलग दृष्टिकोण सामने आते हैं। गज का अर्थ हाथी होता है । हाथी की छाया से संबंधित जो आकृति बनती है उस आकृति का संबंध नक्षत्र मंडल से जुड़ा हुआ है। हस्त नक्षत्र का एक अर्थ हाथ भी है और हस्त नक्षत्र का एक अर्थ गज आकृति भी माना जाता है। नक्षत्र मंडल में जब हस्त नक्षत्र पर सूर्य का परिभ्रमण होता है तब इस प्रकार की आकृति का अनुक्रम बनता है जो पितृ कर्म के लिए विशेष माना गया है। इसमें भी अमावस्या तिथि में भी अपरान्ह की साक्षी सिद्धि कारक रहती है।

कुंज छाया योग

महाभारत के अनुशासन पर्व में इस योग का संबंध बड़े विस्तार से दिया गया है यही नहीं यम स्मृति में भी इसका प्रभाव पितृलोक के लिए दर्शाया गया है। गज छाया को ही कुंज छाया भी कहा जाता है। नक्षत्र मेखला में हस्त नक्षत्र को लघु व क्षिपृ संज्ञक नक्षत्र की संज्ञा दी गई है इसके तारों की संख्या 5 है और इसकी आकृति हाथ के समान है। इसलिए यह नक्षत्र आशीर्वाद प्रदाता बताया गया है।

ग्रह गोचर में ग्रहों की परिभ्रमण की स्थिति और नक्षत्र पर इसका प्रभाव अलग-अलग प्रकार के घटनाक्रम को बनाता है यह भी विशेष माना गया है कि इस दौरान यदि कोई महापर्व या पितृ पर्व आता है तो वह विशेष महत्वपूर्ण बन जाता है क्योंकि यह समय सतयुग त्रेता युग द्वापर युग में विशेष तौर पर इसकी महत्ता को दर्शाता आ रहा है इस दृष्टि से कलयुग में इस प्रकार के योग का संयोग बनना बहुत ही दुर्लभ है। ऐसी स्थिति में इस प्रकार के योग में पितरों को विष्णु लोक की प्राप्ति हेतु विशेष श्राद्ध की प्रक्रिया करनी चाहिए।

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